बुधवार, 27 नवंबर 2024

कुणाल की कहानी

कल शाम वसु के साथ यूँ ही बेसबब घूमते हुए हम एक होटल के नजदीक से गुजरे। बड़े अक्षरों में वहाँ KUNAL लिखा हुआ था। वसु इन अक्षरों को पहचानने लगे हैं तो हिज्जे करने के बाद उन्होंने पूछा कि इसका क्या हुआ?

"कुणाल" मैंने बताया।
"इसका मतलब"- उनका बहुत भला प्रश्न था।
"जिसकी आँखें हमेशा 'सुंदर' देखती हैं। इसका एक अर्थ सुंदर आंखों वाली एक चिड़िया भी है।"
"किसकी आँखें पापा?" -वसु के पास बात जारी रखने के लिए प्रश्नों की अंतहीन सीरीज हैं।
"कुणाल की।" मैंने कहा। "कुणाल, सम्राट अशोक का बेटा था। उसकी माँ तिष्यरक्षिता ने उसकी आँखें फोड़वा दी थीं।"
कहानी दिलचस्प हो गयी थी। अब वसु के पास स्वाभाविक प्रश्न थे।
-"क्यों?"
मैंने कहानी याद करने की कोशिश की। हमलोगों के पास अपने इतिहास को कहने-जानने के लिए कहानियों का अभाव है। बल्कि कहा जाए तो कहानियों को कहने-सुनने के अभ्यास का अभाव है। हम किस्से और गप्प में भरोसा रखने वाले लोग हैं। तो याद आने के बाद मैंने कुछ खिचड़ी बनाकर कहानी सुना दी।
-"कुणाल जब बड़ा हुआ तो उसके विवाह का प्रस्ताव आया। कपड़े, गहने और नारियल लेकर तिष्यरक्षिता के पिता अशोक के पास आये। मजाक मजाक में अधेड़ अशोक ने कहा कि 'क्या यह प्रस्ताव मेरे लिए है?' राजसभा में यह बात हँसी के फव्वारे में उड़ गई किन्तु धार्मिक प्रवृत्ति के कुणाल ने इसे गंभीरता से लिया। उसने कहा कि मजाक मजाक में ही पिता ने तिष्यरक्षिता को अपनी पत्नी के रूप में कामना की है। अतः मैं तिष्यरक्षिता से विवाह कैसे कर सकता हूँ? राजसभा में यह हड़कम्प मचा देने वाला मसला बन गया।" वसु के लिए यह सब अब अझेल होने लगा और समझ से बाहर लेकिन वह हुँकारी भरते रहे और अपनी उत्सुकता प्रकट करते रहे तो मैंने कहानी आगे बढ़ा दी।
"राजसभा में इस स्थिति की मीमांसा हुई और तय पाया गया कि कुणाल ठीक कह रहे हैं। एक विद्वान ने महाभारत की एक कथा सुनाई।"
अब वसु को एक अन्य सिरा मिल गया था। उन्होंने चहकते हुए कहा- "एक और कहानी?"
-"हाँ, महाभारत में एक कहानी आती है कि दो भाई थे। एक संन्यासी और एक गृहस्थ। एक बार संन्यासी अपने गृहस्थ भाई से मिलने आया। गृहस्थ के बगीचे में अमरूद के पेड़ थे। उनपर अमरूद फला हुआ था। संन्यासी के मन में इच्छा हुई कि काश यह खाने को मिल जाता। और यह इच्छा प्रकट करते ही वह 'धर्मच्युत' हो गया। उसे अपनी मानसिक पतन का आभास हो गया। तो भाई के आने के बाद उसने इस गलती की बात बताई। भाई ने विचार किया और दण्ड का विधान किया कि संन्यासी के दोनों हाथ काट दिए जाएं। ऐसा ही हुआ। लेकिन उस कहानी में फिर सब चीजें सामान्य हो गयीं क्योंकि दोनों भाइयों की धर्मपरायणता ने यथास्थिति कर दिया।"
वसु को कुछ समझ में आया बहुत कुछ नहीं। लेकिन उन्होंने पूछ लिया कि कैसे हुआ यह। तो मैंने पूछा कि कुणाल की कहानी सुननी है या नहीं?
"सुननी है।"
"तो, तय हुआ कि तिष्यरक्षिता का विवाह अशोक के साथ हो। तिष्यरक्षिता कुणाल की सौतेली माँ बनकर आयी। वह क्रोध में थी। कुणाल से विवाह नहीं होने से दुःखी थी।"
"एक बार कुणाल पढ़ने के लिए उज्जैन गए। राजा अशोक ने एक पत्र लिखा और भेजा। उस पत्र में तिष्यरक्षिता ने कुछ हेर फेर कर दिया। 'अधीयु' की जगह 'अंधीयु' कर दिया था। कुणाल ने यह पढ़ा तो स्वयं ही अपनी आँखें फोड़ लीं।"
"खुद से?"
"हाँ! खुद से। पापा की बात कैसे न मानता? फिर वह संन्यासी बन गया। बहुत साल बाद अशोक के राजसभा में लौटा। अशोक ने उसके नवजात बेटे 'सम्प्रति' को मौर्य वंश का उत्तराधिकारी बना दिया। अशोक का एक बेटा महेन्द्र और बेटी संघमित्रा श्रीलंका गए।"

भारत में प्राचीन काल में बहुत से प्रतापी राजा हुए हैं लेकिन उनके प्रति उपेक्षा और विशेष दृष्टि सम्पन्न इतिहासकारों ने उनका ठीक मूल्यांकन नहीं किया। हमारी पीढ़ी और बाद की पीढ़ी शायद ही उन्हें जान पाए।

पुरानी पोस्ट।

ai generated कुणाल 


रविवार, 24 नवंबर 2024

अमर बलिदानी गुरु तेगबहादुर जी

 आज सिख परंपरा के नवें गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान दिवस है। गुरु तेग बहादुर जी का शिरोच्छेद औरंगजेब ने करवा दिया था। इसलिए कि वह मतांतरण के विरुद्ध हिंद दी चादर बन कर डट गए थे। वह हर जोर जुल्म के खिलाफ दीवार बनकर खड़े हो गए थे। औरंगजेब ने उनकी हत्या करवा दी। उनका शव पहरे में रखा गया था। तब सिखों का एक समुदाय उनका शीश लेकर भागा और करनाल होते हुए आनंदपुर साहिब पहुंच गया।


जहां शिरोच्छेद किया गया, वह जामा मस्जिद, दिल्ली के पार्श्व में ही है, लाल किले के समीप। आजकल वहां शीशगंज गुरुद्वारा है। धड़ चुराकर एक प्यारा, लखी शाह वंजारा भागा और अपने घर में उनका संस्कार किया। इसके लिए उसने अपना घर ही जला डाला। जहां उनका धड़ जलाया गया, वहां आज रकाबगंज गुरुद्वारा है।

गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए पहले उनके सामने भाई मतिदास को जिंदा आरे से चीर दिया गया, उसके बाद भाई दयाला को उबलते पानी में फेंक कर मार डाला और आखिर में भाई सतीदास को ज़िंदा जला दिया गया।

यह सब बर्बर तरीके डर, दहशत और आतंक का वातावरण निर्मित करने के लिए किया गया। औरंगजेब ने सिखों पर बहुत जुल्म किए थे। अंग भंग, सार्वजनिक रूप से हत्या, हत्या के ऐसे तरीके जिसमें आत्मा कांप जाए, वह प्रयुक्त करता रहता था। सबके सामने उसने मतिदास को आरे से चीर दिया था।

उबलते पानी में किसी को डाल दिया जाए तो उसकी क्या दशा होगी, यह अनुमान से परे है किंतु मुगल शासक इसे एक प्रचलित तरीके की तरह प्रयुक्त करते थे। इससे उनकी क्रूरता और बर्बरता तो दिखती ही थी, अन्य समुदायों के प्रति उनका दृष्टिकोण भी झलकता था। सतीदास को जिंदा जला दिया गया था।

मुगलों के ऐसे अत्याचारों से भी बिना आतंकित हुए, अडिग रहकर सिखों ने अपना संघर्ष जारी रखा। गुरु तेगबहादुर ने अपने पुत्रों का बलिदान किया।
कालान्तर में दसवें गुरु गोविंद सिंह ने सशस्त्र प्रतिरोध किया। बलिदान किए। निहंगों का गठन किया।

गुरु तेगबहादुर जी धर्म के लिए अपना बलिदान करने वाले उन महान हुतात्माओं में से हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। अडिग रहे।

आज उनके बलिदान दिवस को अपने स्मरण में रखना आवश्यक है क्योंकि सभ्यता संघर्ष के बीचोबीच यह सबसे ऊंचा आकाशदीप है।

मंगलवार, 12 नवंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा: छठीं चौपाई

 संकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन।।


छठी चौपाई


श्री हनुमान चालीसा में छठी चौपाई में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा गया है और उनके पिता केशरी का पुत्र बताया गया है। हनुमान जी को महान तेजस्वी, महाप्रतापी कहकर समस्त संसार के लिए वंदनीय भी कहा है।


हनुमान जी एकादश रुद्र हैं। यह भगवान शिव का एक स्वरूप है। इस चौपाई के "सुवन" शब्द का अर्थ कोई कोई पुष्प और कोई "स्वयं" भगवान शिव लेता है। लेकिन यह बात समझना चाहिए कि हनुमान जी स्वयं महादेव ही हैं। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सभी अध्यायों (काण्ड) के आरंभ में भगवान शिव की स्तुति की है किंतु सुंदरकांड में हनुमान जी की ही वंदना है क्योंकि वह स्वयं ही भगवान शिव हैं।

हनुमान जी के पिता महाबलशाली कपि केशरी हैं। इसलिए उन्हें केशरीनंदन कहा गया है।

हनुमान जी के व्यक्तित्व का तेज और प्रताप ऐसा है कि वह समस्त संसार में पूजनीय हैं, वंदनीय हैं।


आइए #हनुमान_चालीसा का पाठ करते हुए हम सभी हनुमान जी की वंदना करें और उनके गुणों का बखान करें।

#जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की

#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित #HanuMan #चौथी_चौपाई #चौपाई #श्री_हनुमान_चालीसा #जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की 

#चौपाई

आठवां भाग

बुधवार, 6 नवंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा: आठवीं चौपाई

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

भाग - दस


श्री हनुमान चालीसा की आठवीं चौपाई में हनुमान जी को रसज्ञ कहा गया है जो भगवान श्रीराम के चरित्र के गुणगान से आनंदित होता है। वह प्रभु श्रीराम के चरित्र का बखान सुनने के सदा आकांक्षी हैं। यह उनकी सर्वाधिक अभिरुचि का क्षेत्र है। रसिया वह है जो तत्त्व ज्ञान रखता है और उसमें आनंद का अनुभव करता है। जब पिछली चौपाई में कहा गया कि हनुमान जी विद्यावान हैं तो उनकी विद्या की चर्चा में तत्त्वज्ञान आया है। इस जीवन का सबसे मूल्यवान तत्त्व रामकथा में है।
हनुमान जी राम कथा सुनने के रसिया हैं और उनके मन मस्तिष्क में हमेशा श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता हैं। यहां यह बताने का प्रयास है कि हनुमान जी भगवान श्रीराम के अनन्य उपासक हैं। यह उपासना श्रीराम, लक्ष्मण और श्री जानकी जी के सानिध्य में है।
तुलसीदास जी ने अपने श्रेष्ठ कवित्व का परिचय यहां दिया है। वह हनुमान जी की अनन्य भक्ति का परिचय देने के लिए ऐसे पद प्रयोग करते हैं।
श्रीहनुमान चालीसा में हनुमान जी के मन में जो हैं, वह अपने संपूर्ण रूप में हम सबके मन में भी बिराजें! इसी कामना के साथ लिखिए, जय श्री हनुमान जी!

#जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की
#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित #HanuMan #आठवीं_चौपाई #चौपाई #श्री_हनुमान_चालीसा #जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की

दसवां भाग, हनुमान चालीसा शृंखला

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा

दोहा -  श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।  बरनऊं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार।  बल बुद...

आपने जब देखा, तब की संख्या.