सुबह घना कोहरा घिरा देखकर प्रख्यात कवि राजेश जोशी की कविता याद आई -
"बच्चे काम पर जा रहे हैं।"
कविता बाद में, पहले कुछ जरूरी बातें।
इस कविता में प्रारंभ में ही आता है -
"कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह।"
लेकिन बच्चे काम पर न जाकर अगर विद्यालय ही जा रहे होते, जैसा कि बाद में दर्ज हुआ है, ऐसी कोहरे से भरी सड़क पर तो यह भी भयावह होना चाहिए।
राजेश जोशी की यह कविता उद्वेग में लिखी गई है। वह लिखते हैं कि यह हमारे समय की भयावह पंक्ति है। इसे विवरण की तरह नहीं, 'सवाल' की तरह पूछा जाना चाहिए। कितना अच्छा होता कि विवरण के प्रतिपक्ष में प्रश्न रखा जाता सवाल नहीं। तथापि।
कोहरे से ढंकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं, यह भयानक है, बच्चों को ऐसे में खेलना चाहिए। कवि प्रश्न कर रहा है कि क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें? उसका मंतव्य यह है कि बच्चों को खेलना चाहिए किन्तु इसके लिए वह गेंद के अन्तरिक्ष में गुम हो जाने का रूपक लिया है। कोहरे में गेंद ठीक से दिखती नहीं, इसलिए गेंद वाला कोई भी खेल करना अच्छा नहीं होता। अतः कोहरे के दौरान खेल का कोई दूसरा रूपक रचना चाहिए था। बच्चे कबड्डी खेल सकते थे, चिक्का या छिपने वाला कोई खेल।
कोहरे में बच्चे रंग बिरंगी पुस्तक पढ़ें, यह कामना सुन्दर है। वह खेलें, खिलौनों से; यह भी होना चाहिए। लेकिन मदरसे की इमारतों से उनका क्या लेना - देना। कवि लिखता है -
"क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें।"कविता
बच्चे काम पर जा रहे हैं - राजेश जोशी
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुज़रते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
2 टिप्पणियां:
Rajesh joshi
Bachche kaam par ja rahe hain.
Kathavarta
आपने इस कविता की बारीक पड़ताल करते हुए जरूरी प्रश्न उठाए हैं। निश्चित रूप से इन पर विचार होना चाहिए।
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