बासन कब धोया जाए?
दुनिया के कई कठिन सवालों में से एक बड़ा सवाल है।
क्या भोजनोपरांत बर्तन धो दिया जाए अथवा अगला आहार पकाने से पहले? आप क्या सोचते हैं?
हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय को बासन धोने का अनुभव
था। एक कविता में लिखते हैं- "कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता
है।" लेकिन वह यह नहीं बताते कि इसे कब धोना चाहिए। अज्ञेय की एक कहानी है- रोज।
पहले यह कहानी 'गैंग्रीन' के नाम से
छपी थी। बहुत चर्चित हुई थी। उसमें जो लड़की है, मालती;
वह प्रमुख चरित्र है कहानी में- उसने बासन माँज दिए हैं लेकिन नल का
पानी चला गया है। वह अपने सहपाठी के साथ बैठी है। सहपाठी लंबे समय के बाद मिलने ही
आया है। एक जमाने में घनिष्ठ रहे मित्र की उपस्थिति में भी वह बरतन धोने के विषय
में सोचती रहती है। जब बूंद बूंद पानी आने लगता है, वह धोने
जाती है। मुझे नहीं लगता कि हिन्दी में किसी अन्य कथाकार ने इस बुनियादी पहलू पर
इतने व्यवस्थित और तफसील से कलम चलाई है।
मेरे बचपन के दिनों में एक सीनियर मिले।
वह कुछ रहस्यमयी तरीके से कहानी के अंत में स्थापना रखते थे कि खाने के बाद बर्तन
धोने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। उन्होंने बताया था कि 'मैं
तो ठोकर मार देता हूँ।' मेरे बालपन की वह बात मुझे अक्षरशः
याद है। लेकिन मैं यह कभी नहीं कर पाया। मुझे यह कभी खयाल भी नहीं आया। मैं शायद
उनकी रहस्यमयी वाणी का मर्म न जान सका। उनकी बात वैसी ही थी जैसी धर्मवीर भारती के
उपन्यास 'सूरज का सातवां घोड़ा' उपन्यास
में माणिक मुल्ला स्थापनाएं करता है। जब मैंने यह उपन्यास पढ़ा था तो मुझे उन
सीनियर की बहुत याद आयी थी। खैर, तो बासन कब धोया जाए?
मेरे घर में भी यह सवाल उठता रहता है।
महाभारत में पांडव जब वनवास कर रहे थे तो
उन्हें सूर्य द्वारा एक अक्षय पात्र मिला था। यह ताँबे
का था। कहानी में आता है कि वह पात्र खाली नहीं होता था। द्रोपदी सबको भरपेट भोजन
कराने के बाद स्वयं खाती थीं। द्रोपदी के खाने के बाद वह पात्र खाली हो जाता था और
अगले जून फिर से भर जाया करता। एक दिन ऋषि दुर्वासा अपने समूह सहित उधर से गुजरे।
वह भूखे थे। अक्षय पात्र खाली हो चुका था। घर में राशन नहीं था। उतने बड़े समूह के
लिए सुस्वादु भोजन पकाने की व्यवस्था कठिन थी। दुर्वासा बहुत क्रोधी स्वभाव के ऋषि
थे। पांडव इससे परिचित थे। वह शक्ति संचयन कर रहे थे। दुर्वासा के शाप का अर्थ था-
भविष्य की योजनाओं पर तुषारापात!
कृष्ण को याद किया गया। आते ही उन्होंने ऋषि
समूह को स्नानादि के लिए भेजा और अक्षय पात्र मंगवाया। द्रोपदी बहुत पहले ही भोजन
कर चुकी थीं। उस पात्र में अन्न का एक कण बचा था। तो सवाल वही उठा कि वह अक्षय
पात्र कब माँजा जाता था? अगर भोजनोपरांत ही माँजा जाता तो
उसमें अन्न का कण न रहता। अतः दृष्टांत बन सकता है कि द्रोपदी भी भोजनोपरांत बासन
नहीं धोती थीं। लेकिन वाशवेशिन में जूठन अच्छा भी तो नहीं लगता!
तो सवाल फिर से वहीं आकर गले पड़ता है कि–
बासन कब माँजा जाए।
आप सब के
कुछ दिलचस्प उत्तर और टिप्पणियाँ यहां दर्ज हैं- ट्विटर पोस्ट और उसपर आई
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1 टिप्पणी:
वाह..😅🐼
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