बहुत पहले जब मेरा हाथ टूटा था और आपरेशन के लिए मैं इलाहाबाद के एक हस्पताल
में भरती था, वहां मुझे एक
तकरीबन सौ साल से ज्यादा उम्र की महिला मिलीं. वे सुपारी कुतर रही थीं. उनके दांत
नहीं थे, मुँह पोपला हो गया था. वे
बड़ी मुश्किल से सुपारी खा पाती थीं. हम सहज जिज्ञासु हो आये थे. बतिआने के लिए
मौका खोजा और जब हमने पूछा, उनने बताया कि दो
शौक बहुत छुटपन में लगे- एक सुपारी चबाने का और दूसरा चाय पीने का. उनने बताया कि
चाय की आदत तो मुए अंग्रेज ने लगाई. पहले घर-घर चाय की पैकेट मुफ्त में पहुँचाते
रहे. कई दफा चाय बनाकर राहगीरों को मुफ्त में पिलाते रहे. जब आदत पड़ गयी, बेचना शुरू कर दिया. अब तो बिना पिए, ठीक से आँख ही नहीं खुलती.
बीते दिन समाचारों में था कि एटीएम से अब लेन-देन करने पर प्रति व्यवहार 6
rs (छ रुपये) कट जायेंगे. मैं
सोचता रहा कि सरकार भी निजी कंपनियों की तरह ही व्यवहार करती है. पहले देश भर में
एटीएम लगा कर सबको कार्ड बाँट दिया. किसी भी मशीन से मुफ्त में पैसे निकालने की
सुविधा दी. जब हम सुविधाभोगी हो गए तो यह चार्ज थोप दिया. मैं अक्सर सोचता था कि
इस कदर तेजी से एटीएम स्थापित करने में बैंक को फायदा क्या होता है? तब यही सोच पाता था कि इससे कर्मचारियों पर काम
का बोझ कम होता होगा. लेकिन जब यह चार्ज की बात सुना, उन भद्र महिला से मुलाकात ताज़ा हो आई. अब हम यह चार्ज देने
को बाध्य होंगे.
मैं सोचता हूँ कि इसका प्रतिरोध कैसे किया जाये? एक तरीका यह समझ में आता है कि हम फिर से बैंक के नकद
काउंटर पर जमा हों, वहां लम्बी
कतारें लगें. बैंककर्मी अतिरिक्त दबाव महसूस करें. वैसे भी बैंक में कर्मचारियों
की संख्या कम है. लेकिन यह अव्यवहारिक है. हमारे पास समय कम है. आधा घंटा-एक घंटा
खड़ा होकर पैसे निकालने के मुकाबिले हम छः रूपये देना पसंद करेंगे. तो दूसरा तरीका
यह भी है कि हम महीने भर के अपने अनुमानित खर्च को एक ही बार में बैंक से निकाल
लें. इससे बैंक में एकमुश्त नकदी की कमी हो सकती है. हमारे पैसे पर खूब मुनाफा
कमाने वाले बैंक के तरल खाते पर असर पड़ेगा.
एक तरीका यह भी है कि न्यायपालिका इसका संज्ञान ले और उसी तरह मामले को निपटाए जैसे बैंक से लेन-देन करने पर sms भेजने पर चार्ज लगाने पर लिया था. बैंक यह तय कर चुके थे कि मोबाइल फोन पर sms द्वारा लेन-देन की सूचना देने के लिए ६० रूपये प्रति वर्ष काटेंगे. यह खासा आपत्तिजनक था. पहले उन्होंने इसे मुफ्त देना शुरू किया था. यह सुविधा ऑटोजेनरेटेड होती है. फिर भी बैंक इससे उगाही करना चाहते थे. न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद इसे हल किया गया. एटीएम से पैसे निकलने के मुद्दे पर भी कड़ा प्रतिवाद और हस्तक्षेप होना चाहिए.
मैं समझता हूँ कि आप इसे सहज बात मान कर अनदेखा कर देंगे लेकिन अगर ध्यान से
सोचेंगे तो इसे आजमाना जरूर चाहेंगे. अंततः यह हमारे हितों को प्रभावित करता है और
मुनाफे की संस्कृति को बढ़ावा देता है.
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