गुरुवार, 22 नवंबर 2012

रसूल हमजातोव की एक खूबसूरत पंक्ति.

बड़ा साहित्य तरकारी खरीदने की भाषा में लिखा जाता है -- यानी निपट सरल, सहज भाषा में!
 

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सद्य: आलोकित!

मौन निमंत्रण : सुमित्रानंदन पंत

स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार चकित रहता शिशु सा नादान , विश्व के पलकों पर सुकुमार विचरते हैं जब स्वप्न अजान ,             न जाने नक्षत्रों...

आपने जब देखा, तब की संख्या.