शुक्रवार, 30 मई 2025

भारतीय न्यायपालिका का दर्पण : हावेरी कांड

भारतीय न्यायपालिका: रक्षात्मकता और जमानत के दुरुपयोग की त्रासदी भारत का संविधान विश्व के सबसे विस्तृत और समावेशी संविधानों में से एक है, जो अपनी न्यायपालिका को लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ मानता है। किंतु स्वतंत्रता के सात दशकों बाद भी यह देखना अत्यंत दु:खद है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में अपराधी न केवल कानून की कमजोरियों का लाभ उठाते हैं, बल्कि जमानत जैसे प्रावधानों के दुरुपयोग से समाज में भय और अविश्वास का माहौल बनाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बलात्कार के 31,516 मामले दर्ज किए गए, जो प्रतिदिन औसतन 86 मामलों के बराबर है। इनमें से केवल 27-28% मामलों में ही सजा हो पाई। यह आंकड़ा भारतीय न्यायपालिका की रक्षात्मक कार्यप्रणाली और लंबित मामलों के बोझ को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। कर्नाटक का हावेरी कांड इसका एक ज्वलंत उदाहरण है, जहां अपराधियों को जमानत की सहज उपलब्धता ने पीड़ितों के लिए न्याय की राह को और कठिन बना दिया। यह लेख भारतीय न्यायपालिका की कमियों, जमानत के दुरुपयोग, और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में सुधार की आवश्यकता पर गहन चिंतन प्रस्तुत करता है।

जमानत प्रणाली: स्वतंत्रता की रक्षा या अपराधियों का संरक्षण? : भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 437 और 439 जमानत के प्रावधानों को नियंत्रित करती हैं, जिनका उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना था। किंतु बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में इन प्रावधानों का बार-बार दुरुपयोग हुआ है। हावेरी कांड जैसे मामलों में अपराधियों को त्वरित जमानत मिलना इस बात का प्रमाण है कि कानून की यह उदारता अपराधियों को और अधिक उद्दंड बना रही है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में दर्ज 31,516 बलात्कार के मामलों में से 89% मामले ऐसे थे, जहां अपराधी पीड़ित से परिचित था। फिर भी, जमानत की आसान उपलब्धता ने अपराधियों को समाज में स्वतंत्र विचरण का अवसर प्रदान किया, जिससे पीड़ितों में भय और असुरक्षा का भाव और गहरा हो गया। जमानत के दुरुपयोग के पीछे कई कारण हैं। प्रथम, न्यायाधीशों की कमी और मामलों की अधिकता के कारण जमानत याचिकाओं पर त्वरित सुनवाई होती है, लेकिन गहन जांच नहीं। दूसरा, प्रभावशाली अपराधी अक्सर अपने वर्चस्व और धनबल का उपयोग कर जमानत प्राप्त कर लेते हैं। तीसरा, कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के कारण जमानत के निर्णयों पर सवाल उठते हैं।

कर्णाटक का हावेरी कांड इसका केवल एक उदाहरण है। ऐसे सैकड़ों मामले हैं, जैसे निर्भया कांड, कठुआ, और उन्नाव, जहां जमानत की सहज उपलब्धता ने समाज में आक्रोश को जन्म दिया। लंबित मामले: न्याय की बाट जोहता भारत भारतीय न्यायपालिका की सबसे बड़ी विडंबना है इसके लंबित मामलों का बोझ। 2025 तक भारत में 5 करोड़ से अधिक मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। इस देरी के कई कारण हैं: न्यायाधीशों की कमी (उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में स्वीकृत पदों का एक बड़ा हिस्सा रिक्त है), अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, और जटिल कानूनी प्रक्रियाएं। बलात्कार जैसे संवेदनशील मामलों में यह देरी पीड़ितों के लिए अन्याय का पर्याय बन जाती है। वर्षों तक सुनवाई के लिए प्रतीक्षा करना न केवल पीड़ित के मनोबल को तोड़ता है, बल्कि अपराधी को समाज में खुला घूमने का अवसर भी देता है। दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया कांड के बाद सरकार ने फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना की थी, लेकिन इनकी प्रभावशीलता सीमित रही। NCRB के अनुसार, 2018-2022 तक बलात्कार के मामलों में सजा की दर केवल 27-28% रही, जो ब्रिटेन (60.2%) और कनाडा (42%) जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है। फास्ट-ट्रैक कोर्ट में भी संसाधनों की कमी और प्रशासनिक बाधाओं के कारण देरी होती है। यह स्थिति भारतीय न्यायपालिका की समृद्धि के दावों पर प्रश्न-चिह्न लगाती है। सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव जमानत का दुरुपयोग और न्याय में देरी केवल कानूनी समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राजनीतिक संकट भी है। जब अपराधी खुलेआम घूमते हैं, तो यह समाज में भय और अविश्वास का माहौल बनाता है। विशेष रूप से महिलाएं और कमजोर वर्ग असुरक्षित महसूस करते हैं।

NCRB के आंकड़े बताते हैं कि 2022 में दिल्ली में बलात्कार के 1,204 मामले दर्ज हुए, जो कुल अपराधों का 31.2% हिस्सा है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं की असुरक्षा को रेखांकित करता है। इसके अतिरिक्त, प्रभावशाली अपराधियों को अक्सर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है। हावेरी कांड और अन्य समान मामलों में यह देखा गया कि अपराधी अपने धनबल और प्रभाव का उपयोग कर न केवल जमानत प्राप्त करते हैं, बल्कि जांच को भी प्रभावित करते हैं। यह स्थिति यह प्रश्न उठाती है कि क्या हमारा न्याय तंत्र वास्तव में निष्पक्ष और स्वतंत्र है?

सुधार की दिशा में कदमयतो धर्मस्ततो जयः” के सिद्धांत पर आधारित हमारी भारतीय न्याय व्यवस्था को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अन्याय की प्रतिमूर्ति बलात्कार के अपराधी स्वतंत्र होकर विजय यात्रा निकालने का साहस न जुटा सकें। इसके लिए निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं: गैर-जमानती प्रावधानों का सख्ती से पालन: बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में जमानत को असाधारण परिस्थितियों तक सीमित करना चाहिए। CrPC में संशोधन कर ऐसे मामलों में गैर-जमानती गिरफ्तारी को अनिवार्य किया जाए। फास्ट-ट्रैक कोर्ट की प्रभावशीलता बढ़ाना: इन कोर्ट्स के लिए अधिक संसाधन, जजों की नियुक्ति, और समयबद्ध सुनवाई की व्यवस्था होनी चाहिए। न्यायिक जवाबदेही: जमानत के निर्णयों में पारदर्शिता और तर्कसंगतता सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं। सामाजिक जागरूकता और पुलिस सुधार: पुलिस की संवेदनशीलता और जांच की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है। NCRB के अनुसार, 71% बलात्कार के मामले दर्ज ही नहीं होते, क्योंकि पीड़ित पुलिस की प्रतिक्रिया से डरते हैं। कठोर दंड की व्यवस्था: बलात्कार के दोषियों के लिए न्यूनतम 10 वर्ष की सजा को और सख्त करना चाहिए, विशेष रूप से जब पीड़ित नाबालिग हो। निष्कर्ष हावेरी कांड और इसके जैसे सैकड़ों मामले भारतीय न्यायपालिका के सामने एक दर्पण रखते हैं। ये मामले न केवल कानूनी व्यवस्था की कमियों को उजागर करते हैं, बल्कि समाज के सामने यह प्रश्न भी प्रस्तुत करते हैं कि क्या हमारी न्याय प्रक्रिया वास्तव में पीड़ितों के साथ खड़ी है? इतना विशाल संविधान और विस्तृत न्याय संहिता पाकर भी यदि हमारी न्यायपालिका समृद्ध न हो सकी, तो यह हम सभी के लिए आत्ममंथन का विषय है। बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में अपराधियों को त्वरित राहत देने की प्रवृत्ति को समाप्त करना होगा। केवल एक निर्णय की दूरी थी और अपराधी दंडित हो सकता था, किंतु ऐसा हो न सका। अब समय है कि हमारी न्याय व्यवस्था रक्षात्मक न होकर दंडात्मक बने, ताकि “यतो धर्मस्ततो जयः” का सिद्धांत सही मायनों में साकार हो।




रोविन सिंह उदीयमान कवि, चिन्तक और विचारक है. कविताओं का शहर नाम से एक सांस्कृतिक अभियान चलाते हैं. यायावरी में रूचि है. कर्णाटक के हावेरी काण्ड पर उनका यह आलेख गहरे क्षोभ से उपजा है. एक्स पर वह Rowin Singh के नाम से जाने जाते हैं. कथावार्ता पर पहली बार- संपादक

 

बुधवार, 28 मई 2025

इराज लालू यादव! नाम में क्या रखा है


    बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और राजमाता रबड़ी देवी ने अपने पौत्र और तेजस्वी यादव के नवजात शिशु का नाम इराज लालू यादव रखा है। यह घोषणा लालू यादव ने पर पोस्ट लिखकर की है। इराज का अर्थ कामदेव बताया जाता है। यह कम प्रचलित नाम है। मुझे पहली बार सुनने को मिला। क्या आपने इस नाम के किसी व्यक्ति से भेंट मुलाकात की हैलालू यादव ने लिखा है कि चूंकि बच्चे का जन्म मंगलवार को हुआ है जो हनुमान जी का दिन है तो इराज नाम उन्हीं के ऊपर है। हनुमान जी का इराज नाम मैंने नहीं सुना था। आपने पढ़ा है तो कृपया संदर्भ दें।

 


    यह नाम पूर्व मुख्यमंत्री और दादी रबड़ी देवी ने रखा है। वह एक निरक्षर किंतु सुसंस्कृत और सुरुचि सम्पन्न महिला हैं। जानकर अच्छा लगा कि लालू यादव परिवार अब नाम रखने में आंदोलनों के स्थान पर पौराणिक चरित्रों को प्राथमिकता दे रहा है। आपको ज्ञात है कि लालू यादव ने अपनी बड़ी बेटी का नाम मीसा कानून के अनुकरण में रखा है। यह बताता है कि लालू यादव को 1970 का दशक अधिक उत्तेजक लगता था। कविता 16 मई के बाद का उनपर कोई प्रभाव नहीं है और न असहिष्णुता आदि का।

 

    इराज लालू यादव एक नए ट्रेंड का सूचक नाम है। यह नव सामंती सोच को प्रकट करता है और बिहार के लोगों को बताता रहेगा कि यदि भविष्य में यह दल राजनीति में रहा तो स्वाभाविक उत्तराधिकारी इराज ही रहेगा। राष्ट्रीय जनता दल एक परिवारवाद का पोषक दल है। सच कहूं तो मुझे भी ज्ञात नहीं था कि इराज कोई शब्द है। हिंदवी की वेबसाइट पर इसका अर्थ "कामदेव" दिखा। रबड़ी देवी के बारे में कहा जाता है कि वह निरक्षर हैं किंतु पौत्र का नाम उन्होंने ही चुना है तो मैं विस्मित हूं कि वह इतनी सुसंस्कृत और सुरुचि सम्पन्न हैं! हालांकि लालू यादव ने इसका अर्थ हनुमान जी से जोड़ा है। मैं चाहूंगा कि कोई विद्वान इस नाम का संदर्भ हनुमान जी से जोड़कर दिखाए।

एक साथी बाबा जी ने बताया कि "इरा शब्द मदिरा का वाचक है "इरा सुरेव अजति विक्षिपति इति" इराज अर्थात् जो मदिरा की तरह विक्षिप्त कर देता हो,उन्मादक हो अत: यह कामदेव का पर्याय है।" जीतेन्द्र जी ने इसका अर्थ लेबनानी अथवा ईरानी बताया और कहा कि इसका अर्थ फूल या महान होता है। वह लिखते हैं कि ऑनलाइन पोर्टल पर यह अद्यतन अपडेट हो गया है. उनका एक्स पोस्ट ज्ञानवर्धक है. 


सामान्यतया उत्तर भारत में पिता का नाम जोड़ते हैं, माताजी का नाम जोड़ते हैं, बाबा का नाम जोड़ना नया प्रयोग है। लेकिन चूंकि यह नए सामंत के घर में आए युवराज हैं, इसलिए लालू यादव जैसे संस्थापक का नाम छोड़ा नहीं जा सकता।

हार्दिक शुभकामनाएं इराज लालू यादव को।

(इराज नाम लिखो तो गूगल सजेशन में इराक, ईरान, इराज़ रियाज़ आदि  रहा है।

सद्य: आलोकित!

भारतीय न्यायपालिका का दर्पण : हावेरी कांड

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आपने जब देखा, तब की संख्या.