शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता और समझ

ठाकुर गांव के कुल देवता को कहा जाता है। हर गांव में एक उपासना स्थान होता है जिसके स्वामी ठाकुर जी होते हैं। इस नाते वह गांव के मालिक होते हैं। वह गांव की रक्षा का दायित्व लेते हैं।

ठाकुर श्री राधास्नेह बिहारी

कालांतर में क्षत्रिय कुल के योद्धाओं ने गांव की रक्षा का प्रत्यक्ष श्रेय लिया और ठाकुर बन गए।

ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ठीक ही है। "चूल्हा मिट्टी का/मिट्टी तालाब की/तालाब ठाकुर का।" इस सृष्टि की हर रचना ठाकुर जी की ही है। बस उनकी कविता में ठाकुर जी के प्रति अवज्ञा का भाव है। ऐसा इसलिए कि वह तथाकथित शोषण के लिए उत्तरदायी लोगों को ही ठाकुर मान कर सपाट बयानी कर रहे हैं। वह सांस्कृतिक परंपरा से विच्छिन्न हैं। इसलिए वह समांतर अधिकार की इच्छा रखते हैं। इसी कामना से यह पीड़ा उपजी है। 

यही पीड़ा रह रहकर जिसमें जन्म लेती हैवही इसकी बात करता है। बिहार में शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर नए मार्टिन लूथर हैं। मनोज कुमार झा लूथर के पादड़ी हैं।

ठाकुर राजा रामचंद्र राय


मूल कविता

_______________

 

चूल्‍हा मिट्टी का

मिट्टी तालाब की

तालाब ठाकुर का।

 

भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का।

 

बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हल की मूठ पर हथेली अपनी

फ़सल ठाकुर की।

 

कुआँ ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत-खलिहान ठाकुर के

गली-मुहल्‍ले ठाकुर के

फिर अपना क्‍या ?

गाँव ?

शहर ?

देश ?

- ओम प्रकाश वाल्मीकि

2 टिप्‍पणियां:

Parmar Vivek singh ने कहा…

ठाकुरों के विरुद्ध इस नफरत का जबाव तो कैसे भी दिया जा सकता है । आप जैसे बौद्धिक बेईमान लोग भी जातीय कुंठा से ग्रस्त होकर अपने अपने अर्थ तलाशते हैं वो अपने आप में चिंताजनक है ।

जब सब कुछ ठाकुरों का ही था तो अंबेडकर कैसे पढ़ लिख गए ?
जब सब कुछ ठाकुर का ही था तो बिना पानी पीए ये लोग अब तक जिंदा कैसे रह पाए ?
खेत तो ठाकुर का था तो ये लोग खाते क्या थे ? हवा ?
ऐसे हजारों सवाल हैं जो इन लोगों की मूर्खता, बेईमानी को उजागर करते हैं ।

ठाकुर तो कभी जातिवादी था ही नही । 36 कौम को साथ लेकर चलते थे ठाकुर । त्रेता द्वापर में देखा जा सकता है । हां एक बात जरुर है कि इन लोगों पर इतिहास में हेय दृष्टि रही। ये हेय दृष्टि ठाकुरों ने नही रखी बल्कि ब्राह्मणों और बनियों ने भी रखी । इस हेय दृष्टि के जनक कौन है:– मनोज झा, विवेक अग्निहोत्री जैसे अनेक पोंगा पंडितों के बाप दादे ।

भारत में सिर्फ ठाकुर ही सामाजिक न्याय की बात करता है । प्राचीन काल के राजा महाराजों के वक्त से लेकर आधुनिक व्यवस्था के वीपी सिंह, चंद्रशेखर सिंह को ही देख लीजिए ।

अब ये भी पढ़ लो तुम्हारा भी कुछ ज्ञानवर्धन होगा ।

—सेना ठाकुर की,राज ठाकुर का।
देश रक्षा में बलिदान भी ठाकुर का।
तुम्हारा क्या?

—जौहर ठकुराइन का,साका ठाकुर का।
सिर भी कटा, परिवार भी न्यवछावर ठाकुर का।
तुम्हारा क्या?

—रियासत, राज्य दान दिया, वह भी ठाकुर का।
खुद के लिए ना रखा कुछ, क्योंकि दिल था ठाकुर का।
तुम्हारा क्या?

—चलाओ उसके ख़िलाफ़ एजेंडा, इतिहास भी छीनो ठाकुर का।
क्या यह देश नहीं है ठाकुर का।
तुम्हारा क्या?

—क्या यह देश नहीं है ठाकुर का।
तुम्हारा क्या?

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह बहुत सुंदर❤️💙
बाकी राजद के लोगो का काम ही क्या है पुरे बिहार को सड़ांध बनाकर रख दिया है।

सद्य: आलोकित!

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