बुधवार, 10 अगस्त 2022

केशवदास की कविप्रिया से

काव्य दूषण वर्णन (तीसरा प्रभाव)

 

समझैं बाला बालकहूंवर्णन पंथ अगाध।

कविप्रिया केशव करीछमियो कवि अपराध ॥1॥

          भावार्थ :- बालकयुवक और युवती आदि के समझने के लिएइस कविकर्म के गहरेदुरूह और कठिन  मार्ग का वर्णन करने के लिए(काव्य के अंग-उपांग आदि को समझाने के लिए) कवि केशव दास ने यह कविप्रिया नामक ग्रंथ बनाया है। यदि इस अनुक्रम में कोई अपराध हो जाये तो वह क्षमा कर दिया जाना चाहिए।

अलंकार कवितान केसुनि सुनि विविध विचार।

कवि प्रिया केशव करीकविता को सिंगार ॥2॥

          भावार्थ :- कवि केशवदास कहते हैं कि कविता के अलंकरण के सम्बन्ध में विविध प्रकार के आचार्य, कवियों, काव्य मर्मज्ञ जनों के विचार सुन सुनकर उन्होंने कविप्रिया का प्रबन्धन किया है ताकि कविता का शृंगार किया जा सके। 

          कविप्रिया प्रबंध में इन्हीं स्थापनाओं के कारण केशवदास को आचार्य का पद दिया गया है और उन्हें अलंकारवादी कहा गया है। वह कविता के सौन्दर्य में अलंकारों को बहुत महत्त्व देने वाले कवि/आचार्य हैं।

चरण धरत, चिन्ता करतनींद न भावत शोर।

सुबरण को सोधत फिरतकवि, व्यभिचारीचोर॥3॥

          भावार्थ :- केशवदास इस दोहे में श्लेष अलंकार का प्रयोग करते हुए लिखते हैं कि कवि, व्यभिचारी और चोर; तीनों ही प्रकार के लोगों को सुवर्ण की चाह रहती है और वह उसे खोजते फिरते हैं। सुवर्ण की चाह में ही वह अपने पैर रखते हैं यानि किसी भी तरह का प्रयास, उद्योग करते हैं। उसके विषय में सोचते और मनन करते हैं। इस क्रम में उन्हें नींद भी नहीं आती और उन्हें हल्ला-गुल्ला, शोर कतई पसंद नहीं आता। यहाँ सुवर्ण का अर्थ चोर के लिए सोना, व्यभिचारी के लिए अच्छे वर्ण यानि रंग-रूप वाला तथा कवि के लिए काव्योचित अक्षर हैं।

राजत रंच न दोष युतकविताबनिता, मित्र।

बुंदक हाला परत ज्योंगंगाघट अपवित्र॥4॥

          भावार्थ :- कवि केशवदास का मानना है कि कवितास्त्री तथा मित्र में थोड़ा सा भी दोष हो तो वह रंच मात्र भी शोभित नहीं होते। अर्थात दोषपूर्ण होने से कविता, स्त्री और मित्र अच्छा नहीं माने जाते। जिस प्रकार मदिरा की एक बूंद पड़ते ही गंगा जल का भरा हुआ पूरा घड़ा ही अपवित्र हो जाता है।

केशवदास

          (केशवदास हिन्दी में रीतिकाल के सबसे प्रतिभाशाली कवियों में से एक हैं। रामचंद्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया, छंदमाला और जहांगीर जसचन्द्रिका उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। इनमें उनका कवि और आचार्य रूप परस्पर गुंथा हुआ मिलता है। रामचन्द्रिका उनकी कीर्ति का आधार ग्रंथ है जिसमें छंदों का बाहुल्य है। केशवदास की कविता की गूढ़ता, विशिष्टता, चौंकाने वाली सोच तथा अभिनव प्रयोग करने की प्रवृत्ति ने उन्हें कठिन काव्य का प्रेत बना दिया है। रामचन्द्रिका में इतने प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं कि रामचन्द्र शुक्ल ने इस ग्रंथ को छंदों का अजायबघर कहा है।

          यहाँ उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय के बी ए प्रथम सेमेस्टर हिन्दी के विद्यार्थियों की सुविधा के लिए उनके पाठ्यक्रम में निर्धारित केशवदास की कविप्रिया से चार छंद (दोहा) और उनका भावार्थ प्रस्तुत किया गया है ताकि उन्हें समझने में आसानी हो।)

प्रस्तुति- डॉ रमाकान्त राय

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

पंचायत राज राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, 

इटावा उत्तर प्रदेश 206001

2 टिप्‍पणियां:

Shatrughn Singh ने कहा…

स्नातक प्रथम सेमेस्टर के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी!
इस महत्त्वपूर्ण प्रयास के लिए आपको साधुवाद

डॉ रमाकान्त राय ने कहा…

स्वागत है आपका। विद्यार्थियों की सुविधा को ध्यान में रखकर यह प्रयास किया गया है।

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