'बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी, जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी।
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार, बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी।'
आज अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का जन्मदिन है। बड़ा मशहूर और
मक़बूल शायर हुआ बहादुर शाह जफ़र। अगर अंग्रेजों ने उसे बंदी न बनाया होता और उसपर
जुल्म न ढाए होते तो उसकी शायरी में वह कशिश न आ पाती जो आज है। बहादुर शाह एक
रंगीन मिजाज शायर था जिसका सोचना था कि –
'एक ऐसा घर चाहिए मुझको, जिसकी
फ़िज़ा मस्ताना हो,
एक कोने में गजल की महफ़िल, एक में
मयखाना हो।'
लेकिन
उसे आखिरी दिनों में रहने की जगह मिली तो ऐसी कि बेचारा 'कूये यार में' 'दो गज जमीन के लिए' तरस गया। जब पहला स्वाधीनता संग्राम हुआ- लोगबाग और खासतौर पर
अंग्रेजपरस्त मानते हैं कि यह एक सैनिक विद्रोह भर था। भारत में ब्रिटिश समय में
इतिहासकार 1857 के क्रांति के विषय में लिखने से
बचते रहे थे और सर सैयद अहमद खान और विनायक दामोदर सावरकर के अलावा किसी ने इस
विषय पर उल्लेखनीय काम नहीं किया है- तो सैनिकों का जत्था नेतृत्व के लिए मुंह देख
रहा था। उनका सेनानायक कौन होगा? लंबे समय से राजतंत्र
की परिपाटी में चले आ रहे भारतीय सैनिक और लोग आजादी का बिगुल फूंक चुके थे किंतु
स्वतन्त्रता जिस चेतना की मांग करती है, वह उनमें नहीं
था। तो वह अंग्रेजों से मुक्त होकर पुनः किसी राजा की शरण में जाना चाहते थे। थोड़ा
विषयांतर करते हुए कहने का मन है कि आज भी हम राजतंत्र की उस बुनियादी ढांचे से
बाहर नहीं निकल सके हैं और लोकतंत्र में भी एक नए तरीके का वंशवाद ढो रहे हैं।
खैर, तो सैनिक जब बहादुर शाह के पास पहुंचे तो
हजरत डर गए। कहने लगे- बूढ़ा हो गया हूँ। लेकिन सैनिकों ने उनसे प्रतीकात्मक रूप से
नेतृत्व करने को कहा। काफी हील हुज्जत के बाद मान गए बहादुर शाह जफर। लड़ाई बहुत
निर्णायक दौर में थी। लेकिन स्वाधीन होने के लिए जो चेतना चाहिए थी, उसका अभाव कमजोर कर गया और यह संग्राम कमजोर पड़ गया।
तो अंग्रेजों ने बर्बरता शुरू की। भूखे बहादुर शाह की थाली में दोनों बेटों का सिर परोस दिया गया। उसे बेइज्जत किया गया और कहा गया कि तुम्हारे शमशीर में अब दम नहीं रहा। कहते हैं कि बूढ़े बादशाह ने तब बड़ा फड़कता हुआ शेर कहा था-
"हिंदीओ में बू रहेगी जब
तलक इमान की,
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग
हिन्दुस्तान की!!"
तेग तो म्यान में धर दी गयी, बहादुर
शाह को रंगून भेज दिया गया। हिंदीओ का ईमान अंग्रेजों ने गठरी में बांधकर
मैनचेस्टर पहुंचा दिया। जाने कितने बाई कितने की कोठरी में बिसूरते हुए अल्लाह को
प्यारे हुए बहादुर शाह जफ़र। कोसते रहे भाग्य को-
किस्मत में कैद थी लिखी
फसल-ए-बहार में।
मैं यदाकदा सोचता हूँ कि मुगलिया सल्तनत को अंग्रेजों ने जिस तरह
अधिग्रहित किया और शासक को तड़ीपार कर दिया, वह क्या
हर आक्रमणकारी करता है? अंग्रेज दुष्ट थे और उनका रवैया
पूर्ववर्ती सम्राटों सरीखा ही था। गुरु अर्जुनदेव को जब औरंगजेब ने सरेआम कत्ल
करवाया तो उसका तरीका भी ठीक वही था जो अंग्रेजों का था। बहादुर शाह जफ़र की गजलें
बहुत लोकप्रिय हुई हैं। दुर्भाग्य था कि यह बादशाह आखिरी मुग़ल शासक था। मैं जब
उसके प्रसंग में अंग्रेजों के विषय में सोचता हूँ तो बहुत उद्विग्न हो उठता हूँ।
अंग्रेजों ने सभ्यता सिखाने के नाम पर बर्बरता अधिक की है।
याद रहे, जब भी आप अपनी सभ्यता किसी पर थोपते हैं, आप बर्बर होते हैं।
इस बादशाह के लिए श्रद्धा का एक पुष्प अर्पित करता हूँ।
2 टिप्पणियां:
इस लेख के लिए बस एक शब्द 'वाह'
बहुत बढ़िया टिप्पणी। बधाई वार्ताकार।
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