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सोमवार, 30 सितंबर 2024

पवनसुत हनुमान

 हनुमान जी "पवनसुत" हैं। "अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।" कहकर उनका एक परिचय गोस्वामी तुलसीदास ने श्री हनुमान चालीसा में दिया है। सामान्यतया हनुमान जी की गति से हम उनके पवनसुत होने को जोड़ते हैं। इस संज्ञा में बहुत व्यापकता है। पवन की गति के साथ, उसकी व्यापकता और उपादेयता बहुत महत्त्वपूर्ण कारक है। वह सर्वत्र व्याप्त है। हनुमान जी की उपस्थिति इसी तर्क से सर्वत्र हो जाती है।

जो लोग संशय करते हैं कि हनुमान जी इतने कम समय में गंधमादन पर्वत तक कैसे पहुंचे, संजीवनी ले आए और गरुड़ को कैसे लिवा आए, उन्हें समझना चाहिए कि ऐसा व्याप्ति के गुण से हुआ।

हनुमान जी का नाम पवनसुत इसीलिए है कि उन्हें पवन की तरह व्याप्ति की विशिष्टता प्राप्त है।

वह भगवान श्रीराम को बहुत प्रिय हैं। वह सुग्रीव के सबसे अधिक विश्वासपात्र हैं। जामवंत उनके बारे में सब जानते हैं। अंगद को उनकी शक्ति मालूम है। विभीषण उन्हें देखकर सशंकित नहीं होते। रावण उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ जाता है। सीता तनिक सशंकित होती हैं किंतु उनके "भूधराकार" रूप को देखते ही पुत्रवत स्नेह प्रदान करती हैं। उन्हें आशीर्वाद देती हैं।

आज आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि, जिस दिन हमारे घर में अपने पूर्वजों को पिंडदान करते हैं; हम सब श्री हनुमान जी महाराज को सादर प्रणाम करते हैं।

आप भी कमेंट बॉक्स में लिखें - "जय श्री हनुमान!🙏"



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सद्य: आलोकित!

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