बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।
श्रीहनुमानचालीसा के दूसरे दोहे में तुलसीदास जी ने अपने विनय का परिचय देते हुए स्वयं को बुद्धिहीन माना है और पवन कुमार अर्थात हनुमान जी का स्मरण किया है। वह याचना करते हैं कि हनुमान जी उन्हें बल, बुद्धि और विद्या का दान करें। साथ ही क्लेश और विकार का हरण कर लें।
वह कहते हैं कि स्वयं को बुद्धिहीन समझकर मैं पवनकुमार हनुमान जी का स्मरण कर रहा हूं। वह मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें तथा मुझमें निहित क्लेश और विकार का हरण कर लें। यहां स्वयं को बुद्धिहीन कहना विनयशीलता का परिचायक है। वह हनुमान जी से बल बुद्धि और विद्या तीनों की मांग करते हैं। इसमें अंतर्निहित है कि बुद्धि ही बल और विद्या को अर्जित करने वाली है। चूंकि वह बुद्धि में हीन अर्थात नीचे हैं, इसलिए बल और बुद्धि भी कम है। इसके साथ ही इसका दुरुपयोग करने वाली क्लेश वृत्ति अर्थात झगड़ालू स्वभाव तथा दुर्गुण भरने वाले विकार को दूर करना भी आवश्यक है। चूंकि यह सब कहीं अन्तस्थ होते हैं इसलिए इन्हें बलात् ले लेने की प्रार्थना की गई है।
#हनुमानचालीसा के पहले दोहे में श्री गुरु जी की वंदना के बाद रघुवीर श्रीराम को प्रणाम किया था। दूसरे दोहे में हनुमान जी को पवन कुमार कहकर स्मरण करने की बात की गई है। सुमिरों शब्द में बार बार नाम लेने की भावना निहित है।
इन दो दोहों के बाद श्री हनुमान चालीसा में चौपाई छंद चलता है।
आइए, इस शृंखला में हम भी बजरंग बली हनुमान जी का स्मरण कर उनसे प्रार्थना करें कि वह हमें बल बुद्धि और विद्या प्रदान करें।
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