सोमवार, 30 सितंबर 2024

रावण के मन में हनुमान जी

लंका दहन कर चुके हनुमान जी की छवि रावण के मन में कैसी थी! यह सोचकर किंचित रोमांच हो आता है।

जब रावण ने कुछ गुप्तचरों को भगवान श्रीराम की सेना की टोह लेने के लिए भेजा तो उन्हें पकड़कर बानरों ने बहुत मारा। किसी किसी तरह दुहाई देकर जब वह लौटे तो रावण के बार बार पूछने पर एक ने बताया 

"जेहिं पुर दहेउ हतेउ सुत तोरा।

सकल कपिन्ह महँ तेहि बलु थोरा।।"

जिसने तुम्हारे नगर को जलाया और जिसने तुम्हारे पुत्र को मारा, वह सभी कपियों में सबसे कम बलवाला है। हनुमान जी ने रावण के पुत्र अक्षय कुमार को सबसे पहले मारा था। रावण के गुप्तचर उसे सबसे कम शक्ति वाला बताकर एक भय निर्मित करते हैं।

जब सेतु बंधन हो जाता है तो मंदोदरी रावण को समझाते हुए कहती हैं - 

बारिधि नाघि एक कपि आवा।

तासु चरित मन महुं सबु गावा।।


समुद्र लांघ कर एक बंदर आया था, उसके बारे में तो आपलोग जब तब याद करते रहते हैं। और तब आप लोगों की भूख भी मर गई थी!



अंगद राजदूत बनकर जाते हैं तो रावण हनुमान जी को याद करते हुए कहता है -

"है कपि एक महा बलसीला।।"

वही जो

"आवा प्रथम नगरु जेहिं जारा।"

तब अंगद कहते हैं कि हे रावण! जिसे आप सुभट कह रहे हैं, महान योद्धा; "सो सुग्रीव केर लघु धावन।।" वह महाराज सुग्रीव का एक छोटा सा, दौड़कर चलने वाला हरकारा है।

हनुमान जी के बारे में बात करने वाले लोगों ने भी हनुमान जी को हनुमान जी बनाया है!

कहिए हमारे साथ!

"जय हनुमान जी🙏"


#जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की

#जय_श्री_राम‌‌ 

#हनुमानजी #Hanuman

गुरुवार, 19 सितंबर 2024

आश्विन या क्वार मास

आश्विन या क्वार पंचांग का सातवां मास है। प्रखर। पितरों की स्मृति से इसका आरंभ होता है और प्रभु श्रीराम के पराक्रम तथा देवी दुर्गा के विविध रूपों से परिपूरित होकर सम्पन्न।

आश्विन मास 

बीता हुआ भाद्रपद बहुत सरस रहा। सावन से दुब्बर नहीं है भादो! यह विगत सप्ताह में प्रकट हुआ। खूब बरसात हुई। भाद्रपद मास भी कई पर्व त्योहार का मास रहा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी, गणेश चतुर्थी, तीज व्रत और त्रिमुहानी का मेला।

भाद्रपद मास कवियों को बहुत प्रिय है। विरह वेदना दिखाने के लिए भादो से उपयुक्त कोई अन्य मास नहीं - ई भर बादर, माह भादर, दहत सब अंग मोर! विद्यापति की नायिका कहती हैं। भादो की काली अंधेरी रात और "घन घमंड गरजत नभ घोरा" श्रीराम को भी डराने में सक्षम हैं। सूर की गोपियां "निसि दिन बरसत नैन हमारे!" कहकर अपना दुख व्यक्त करती हैं। भादो की काली डरावनी रात के बरसते हुए पानी में ही वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण को लेकर उफनती यमुना में उतर गए थे!

यह आश्विन मास पितरों को याद करने, उनके प्रति श्रद्धा निवेदित करने (श्राद्ध कर्म) और तर्पण करने से शुरू होता है। जिउतिया भी इसी बीच में पड़ेगा।

आश्विन मास का आकाश निरभ्र होता है। सूर्य का प्रकाश बहुत प्रखर होकर धरती पर पड़ता है और चानी चमक उठती है। जेठ बैशाख की तपती दुपहरी सह लेने वाले किसान क्वार के महीने में दोपहर को खेतों में जाने से बचते हैं। रातें, ओस वाली हो जाती हैं इसलिए वह रात को बाहर खुले आकाश में सोने से भी बचते हैं! धरती इस महीने धूप पाकर अगले कुछ महीने तक शीत के प्रभाव में रहेगी।

आश्विन अथवा क्वार के इस पवित्र मास का स्वागत कीजिए। पितरों को याद कर, शक्ति की मौलिक कल्पना करने का महीना है यह!

आइए शक्ति की आराधना करें!


या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता!

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः!


#क्वार #आश्विन #अश्विन #Ashvin #सातवांमहीना!

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

हीरा डोम की कविता अछूत

हीरा डोम की लिखी हुई कविता अछूत की शिकायत, जो सितम्बर 1914 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई, इस भोजपुरी कविता को हिंदी दलित-साहित्य की पहली कविता माना जाता है।


हमनी के रात-दिन दुखवा भोगत बानी,

हमनी के सहेबे से मिनती सुनाइब।

हमनी के दुख भगवनओं न देखताजे,

हमनी के कबले कलेसवा उठाइब।

पदरी सहेब के कचहरी में जाइबिजां,

बेधरम होके रंगरेज बनि जाइब।

हाय राम! धरम न छोड़त बनत बाजे,

बे-धरम होके कैसे मुंखवा दिखाइब।।


खम्भवा के फारि पहलाद के बंचवले जां

ग्राह के मुंह से गजराज के बचवले।

धोती जुरजोधना कै भैया छोरत रहै,

परगट होकै तहां कपड़ा बढ़वले।

मरले रवनवां कै पलले भभिखना के,

कानी अंगुरी पै धर के पथरा उठवले।

कहंवा सुतल बाटे सुनत न वारे अब,

डोम जानि हमनी के छुए डेरइले।।


हमनी के राति दिन मेहनत करीले जां,

दुइगो रुपयवा दरमहा में पाइबि।

ठकुरे के सुख सेत घर में सुतल बानी,

हमनी के जोति जोति खेतिया कमाइबि।

हाकिमे के लसकरि उतरल बानी,

जेत उहओ बेगरिया में पकरल जाइबि।

मुंह बान्हि ऐसन नौकरिया करत बानी,

ई कुलि खबर सरकार के सुनाइबि।।


बमने के लेखे हम भिखिया न मांगव जां,

ठकुरे के लेखे नहिं लडरि चलाइबि।

सहुआ के लेखे नहि डांड़ी हम मारब जां,

अहिरा के लेखे नहिं गइया चोराइबि।

भंटऊ के लेखे न कबित्त हम जोरबा जां,

पगड़ी न बान्हि के कचहरी में जाइब।

अपने पसिनवा के पैसा कमाइब जां,

घर भर मिलि जुलि बांटि चोंटि खाइब।।


हड़वा मसुइया के देहियां है हमनी कै;

ओकारै कै देहियां बमनऊ के बानी।

ओकरा के घरे घरे पुजवा होखत बाजे

सगरै इलकवा भइलैं जजमानी।

हमनी के इतरा के निगिचे न जाइलेजां,

पांके में से भरि-भरि पिअतानी पानी।

पनहीं से पिटि पिटि हाथ गोड़ तुरि दैलैं,

हमनी के एतनी काही के हलकानी।।

हनुमान जी का मंत्र और विभीषण

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।।


एक दूत के रूप में #हनुमानजी जब लंका में गए तो उन्होंने हर घर का सर्वेक्षण किया। "मंदिर मंदिर प्रतिकर सोधा। देखे जंहतंह अगनित जोधा।।" इसी सर्वेक्षण में उन्हें विभीषण के घर का पता मिला। दांतों के बीच जैसे जीभ रहती हो। विप्र रूप धारण कर वह उनसे मिले।

हनुमान जी को जो आठ सिद्धियां प्राप्त हैं - अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व, वशित्व। इसमें अणिमा, महिमा से रूप बदला जा सकता है। और प्रकाम्य से किसी के भी मन का भेद पाया जा सकता है। हनुमान जी ने इस सिद्धि की सहायता ली और लंका में एक ऐसा विश्वसनीय व्यक्ति खोजा, जो उनकी सहायता कर सकता था। वह विभीषण थे।

हनुमान चालीसा में आता है कि हनुमान जी का मंत्र विभीषण ने माना और लंकेश्वर हुए। बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि विभीषण उन चरित्रों में हैं, जिसे अमर होने का वरदान प्राप्त है।

जय श्री हनुमान जी!🙏 #Hanuman #हनुमानजी



शनिवार, 7 सितंबर 2024

रौद्र रूप और हनुमान जी

हनुमान जी का रौद्र रूप नहीं मिलता। वह कहीं भी क्रोधित नहीं होते। ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जब वह विचलित होकर स्वयं उद्धत हुए हों, जैसा भगवान श्रीराम समुद्र का अनुनय विनय करने के बाद हो उठे थे या योगेश्वर श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध में देवब्रत भीष्म के प्रति हो गए थे और रथचक्र धारण कर लिया था। भगवान परशुराम, बलराम आदि तो कदम कदम पर उद्धत हो जाते हैं, पृथ्वी से वीरों का संहार करने का संकल्प कर लेते हैं अथवा धरती को समुद्र में डुबो देने के लिए हल लेकर चल पड़ते हैं!


हनुमान जी का रौद्र रूप नहीं है। कठिनतम परिस्थितियों में भी वह धैर्य, जो वीरता का अनिवार्य लक्षण है, नहीं त्यागते। वह तो संहार के ही देवता हैं, साक्षात महादेव हैं। महादेव ने उमा के देह त्याग पर जो तांडव किया था, वह कितना भीषण था। हनुमान जी के समक्ष इतना उद्वेलनकारी क्षण नहीं आता। क्योंकि वह ज्ञानी भी हैं।

इसलिए जब उनकी ऐसी कूल छवियां आईं तो कलाकारों पर आक्षेप हुए कि यह उनकी प्रकृति के अनुसार नहीं है। परंतु सभ्यता संघर्ष के बीचोबीच अवस्थित, द्वंद्व झेल रहे सनातनी पक्ष को यह आवश्यक और युगानुकुल लगा। ऐसे चित्र बहुत लोकप्रिय हुए। यह हमारी आकांक्षा के अनुरूप ही है!


जय श्री हनुमान जी 🙏

#हनुमानजी #hanumanji

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

जन्माष्टमी पर विशेष


 श्रीकृष्ण के जीवन में सबसे मधुर पक्ष उनका बचपन वाला है। अगर बचपन की कलाओं को, जिसमें चमत्कारी रूप अधिक दिखता है; अलगा दें तो उत्तरजीवन में कृष्ण बहुत बड़े कूटनीतिज्ञ समझ में आते हैं। महाभारत में वह सर्वोत्कृष्ट हैं। अर्जुन उनके स्वाभाविक मित्र हैं।


भारतीय मन जहाँ श्रीकृष्ण की बाललीला में रूचि लेता है, वहीं मित्रता के लिए सुदामा का द्वितीय पक्ष चुन लेता है। मुझे कृष्ण के साथ अर्जुन की मित्रता बहुत घनिष्ठ समझ में आती है। कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा का विवाह भी उसके साथ करवाना सुनिश्चित करते हैं। हर कठिन क्षण में संबल बनते हैं! जीवन जितना जटिल है, उसमें श्रीकृष्ण जैसा मित्र होना ही दिग्विजयी बना देता है।


महाभारत में वह बिना युद्ध किए ही केन्द्र में हैं। अजातशत्रु हैं। कौरव पक्ष का कोई योद्धा कृष्ण का हन्ता बनने की नहीं सोचता। राजसूय यज्ञ में वह शिशुपाल का शिरोच्छेद कर अपनी क्षमता का परिचय दे चुके थे। सभा में किसी की हिम्मत न हुई थी कि उनके इस संहार पर प्रश्न खड़ा करे। इसीलिए जब वह दूत बनकर हस्तिनापुर जाते हैं तो कहने के सहज अधिकारी बन जाते हैं-

याचना नहीं, अब रण होगा,

जीवन-जय या कि मरण होगा।


जन्माष्टमी पर सबको श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

सोमवार, 19 अगस्त 2024

जगनिक और हिन्दू

परमाल रासो, (#आल्हा) के नैनागढ़ लड़ाई के खंड में जगनिक लिखते हैं - 


गया न कीन्हीं जिन कलियुग में, काशी घोड़ा दान न दीन।

हाँकि के बैरी जिन मारा न, नाहक जनम जगत में लीन।।

पूजा किन्हीं नहिं शंभू की, अक्षत चन्दन फूल चढाय।

फिरी गलमंदरी जिनबाजी ना, मुख ना बंब बंब गा छाय।।

भसम रमायो नहिं देही मा, कबहूं लीन सुमरनी हाथ।

सोचन लायक ते आरय हैं, जिन नहिं कबो नवायो माथ।।

(जिसने गया की यात्रा नहीं की, जिसने काशी में घोड़े का दान नहीं किया। जिसने अपने शत्रु को दौड़ाकर नहीं मारा, उसका जन्म व्यर्थ समझो। जिसने भगवान शिव की पूजा अक्षत, चंदन और पुष्प चढ़ाकर नहीं किया। जिसके गले से बम बम (भोले) की आवाज नहीं गूंजी, जिसने अपनी देह में भस्म नहीं रमाया, जिसने हाथ में सुमिरनी नहीं ली; वह आर्य सोचनीय हैं, जिन्होंने कभी इष्ट के समक्ष शीश नहीं झुकाया।)


जगनिक ने ऐसे आदर्श रखे हैं, जो एक हिंदू की पहचान है। आर्य की पहचान है। इसमें वैसे तो सब महत्त्व के हैं, पर हांक कर बैरी यानी शत्रु को मारना, भगवान शिव की पूजा और बम बम भोले का उद्घोष (आज सावन का अंतिम सोमवार और अंतिम दिन है, इसलिए विशेष रूप से उल्लेखनीय) तो बहुत विशेष है। मुझे जगनिक द्वारा भगवान श्रीराम के स्मरण का तरीका भी बहुत अच्छा लगा। वह कहते हैं कि जो भगवान शिव के पूज्य हैं और जो स्वयं भगवान शिव की पूजा करते हैं, ऐसे #श्रीराम की वंदना करता हूं।

-"को अस देवता रहें शंभू सम, जिनको पूज्यो राम उदार।"

दुर्भाग्यवश जगनिक को कुछ अधिक उल्लेखनीय छंदों के लिए ही याद किया जाता है जिसमें एक है -

बारह बरस ले कुक्कुर जीवे, और तेरह ले जिए सियार।

बरस अठारह क्षत्री जीवे, आगे जीवे को धिक्कार।।

श्रावण मास की अंतिम तिथि पर भगवान शिव के अनन्य उपासक #जगनिक को आप भी याद करें!🙏

सद्य: आलोकित!

शैलपुत्री और ब्रह्मचारिणी

प्रथमं मां शैलपुत्री! नवरात्रि के प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की आराधना का विधान है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पर्वतराज हिमालय की पुत्री के निम...

आपने जब देखा, तब की संख्या.