शुक्रवार, 14 जून 2019

कथावार्ता : पालतू बोहेमियन यानी मनोहर श्याम जोशी की याद

जब मैं कोई अच्छी किताब पढ़ने लगता हूँ तो यह भावना मन में घर करने लगती है कि अगर यह जल्दी ही पढ़ ली जाएगी तो कैसा लगेगा! फिर एक उदासी, सूनापन, रिक्ति का अहसास घर करने लगता है क्योंकि उसे पढ़ते समय जैसी समृद्धि रहती है वैसी उसके आखिरी शब्द पढ़ने के बाद नहीं रहेगी। बीते दिन भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित पानी पर पटकथा पढ़ते हुए भी यही भावना मन में थी और उसका एकाध निबंध अभी भी नहीं पढ़ सका हूँ।


आज उल्लेख करना है #प्रभात_रंजन की पुस्तक #पालतू_बोहेमियन की। यह कृति प्रख्यात साहित्यकार और धारावाहिक लेखक मनोहर श्याम जोशी को याद करते हुए लिखी गयी है। मैंने प्रभात रंजन द्वारा अनुदित एक किशोरी की डायरी पढ़ी है, उनका उपन्यास कोठागोई मुझे किस्सा शैली का बेहतरीन उदाहरण मानने में कोई संकोच नहीं होता। उनकी कहानियां, विशेषकर जानकीपुल ने बहुत कीर्ति अर्जित की है। यह कृति मनोहर श्याम जोशी को याद करते हुए लिखी गयी है तो इसे पढ़ने के कई कारण हैं। मनोहर श्याम जोशी को पसंद करने के कई कारण हैं। उनका उपन्यास 'कसप' किशोर जीवन का सबसे शानदार आख्यान है। जब हमने उनका उपन्यास 'हमजाद' एमए के दिनों में पढ़ा था तो हम उनसे मोहाविष्ट थे और हमजाद के चरित्रों को अपने आसपास खोजते और थुक्का फजीहत करते थे। उनकी और भी किताबें मसलन ट-टा-प्रोफेसर, क्याप और हरिया हरक्यूलिस की कहानी ने हमलोगों को बहुत आकर्षित किया था।
प्रभात रंजन की यह किताब अपने शीर्षक के कारण भी आकर्षक लगी थी और मन में इच्छा थी कि मनोहर श्याम जोशी जैसे 'असामाजिक' लेखक ने कैसा जीवन जिया, इसे जरूर जाना जाए। वह अपने लेखन के प्रति बहुत सजग थे और यही करना चाहते थे। यह समर्पण भाव उन्हें बड़ा भी बनाता है और उनके प्रति श्रद्धा भाव भी जगाता है।

प्रभात जी ने इसका हवाला देते हुए लिखा भी है कि जोशी जी अक्सर इस बात पर रंज प्रकट करते थे कि हिंदी में लेखन को लेकर समर्पण भाव का अभाव है, इसलिए उम्दा लेखन का भी टोटा रहता है।
पालतू बोहेमियन मनोहर श्याम जोशी के जीवन के कई पहलू उजागर करती है और प्रभात रंजन ने उनके साथ जिये समय को बहुत आत्मीयता और साफगोई से अभिव्यक्त किया है। यह किताब न सिर्फ जोशी जी के जीवन और लेखन के विविध पक्षों को उद्घाटित करती है अपितु लिखने,  लेखन के प्रबंधन और पढ़ने के तौर तरीके भी सिखाती है। इस किताब में कई ऐसे प्रसंग हैं जहां से नए और पुराने लेखकों को सबक मिल सकता है।
इस पुस्तक के विवरण से पता चलता है कि प्रभात रंजन उनके बेहद करीबी रहे हैं और उन्हें अच्छे से जानते बूझते रहे हैं। उन्होंने मनोहर श्याम जोशी के जीवन के कई ऐसे प्रसंगों पर विस्तार से लिखा है जब वह जरूरतमंद लोगों की आगे बढ़कर मदद करते थे और इसका श्रेय भी नहीं चाहते थे।
पालतू बोहेमियन कई दिन से पढ़ रहा था। एक अध्याय पढ़कर दूसरा कुछ पढ़ने लगता था, लेकिन आज मिले कुछ निराशाजनक खबरों के बीच इसे पढ़कर पूरा कर लिया। यह पुस्तक अपने आखिरी पन्नों में शोक विह्वल कर देती है जब मनोहर श्याम जोशी के न रहने का वृतांत लेखक शब्दबद्ध करता है।
अपने लिखे/पढ़े/अधूरा छोड़ दिये/योजना में शामिल साहित्य, पत्रकारिता, धारावाहिक और फ़िल्म को लेकर मनोहर श्याम जोशी की भावना का बेहतरीन अंकन करने में प्रभात रंजन कामयाब रहे हैं।
इस किताब की भूमिका पुष्पेश पंत ने लिखी है जो मनोहर श्याम जोशी को पहाड़ के दिनों से यानि उनके आरम्भिक संघर्ष और निर्माण के समय से जानते हैं। उनकी भूमिका इस किताब को पढ़ने का गवाक्ष भी देती है।
वैसे तो इस किताब में कई उल्लेखनीय प्रसंग और प्रेरक बाते हैं लेकिन 'क्याप' उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद लेखक को दी गयी प्रतिक्रिया उद्धृत कर इस अनुशंसा के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ कि यह किताब नवोदित और स्थापित सभी साहित्यकारों को जरूर पढ़नी चाहिए और उन लोगों को भी जो लेखकों के जीवन में झांककर उनका अंतर्मन और बाह्य जीवन जानने के इच्छुक हैं। लेखक ने साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद जब मनोहर श्याम जोशी को फोन किया तो  उन्होंने 'स्थितप्रज्ञ' भाव से कहा था- "इसमें बधाई की क्या बात है? हर बार एक ज्यूरी बैठती है और अपनी पसंद के किसी लेखक को पुरस्कार दे देती है। इस बार संयोग से ऐसी ज्यूरी थी जो मुझे पसंद करती थी। हिन्दी में पुरस्कारों का यही हाल है।"

पुस्तक का नाम- पालतू बोहेमियन मनोहर श्याम जोशी-एक याद
प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य- 125₹
भूमिका- पुष्पेश पंत

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

कथावार्ता : नया ज्ञानोदय- अप्रैल,19 अंक

        आज भारतीय ज्ञानपीठ की चर्चित पत्रिका  #नया_ज्ञानोदय मिल गयी। अप्रैल-19 का अंक। कुछ विशेष आ रहा है, ऐसी सूचना आठ दिन पहले मिली थी तो 'हबक' लिया। पढ़ लिया। उत्सुकता शमित हुई तो कुछ दूसरी चीजें भी सरसरी तौर पर गुजरीं। #हैदर_अली का राही मासूम रज़ा पर अच्छा लेख था। विजय बहादुर सिंह ने अष्टभुजा शुक्ल के निबंध संग्रह 'पानी पर पटकथा' की बढ़िया समीक्षा की है। शिवकुमार यादव ने केदारनाथ सिंह के कविता संग्रह 'मतदान केंद्र पर झपकी' पर ठीक ही लिखा है। सुभाष राय की कविताएं पसंद आईं। एक कहानी पढ़ने की कोशिश की। कहानी क्या थी एक तेयम दर्जे का बेसिरपैर वाला रूपक था। संपादकीय पढ़ने पर ध्यान लगाया। खयाल आया कि किसी ने बताया था कि मंडलोई जी की जगह मधुसूदन आनन्द को पद मिला है। देखा- इस बार का संपादकीय शुद्ध राजनीतिक है। मुझे नहीं स्मरण कि ऐसा राजनीतिक सम्पादकीय मैंने कब पढ़ा था किसी साहित्य, संस्कृति और कला को समर्पित पत्रिका में। खैर, सम्पादकीय भी कोई उल्लेखनीय दृष्टि नहीं देता। चुनाव, राजनीतिक दल, इन्दिरा गांधी, संजय गांधी, जूता उठाने, तलवे चाटने का प्रसंग, मोदी, लोकतंत्र पर संकट आदि, इत्यादि। ऐसा ही था।

      यहाँ तक तो ठीक था, सबसे अधिक परेशान हुआ #नया_ज्ञानोदय जैसी पत्रिका में वर्तनी/वाक्य विन्यास की भयंकर भूलों को देखकर। सम्पादकीय में ही "गाँधी" कई बार आया है। सही वर्तनी "गांधी" है। "राफेल" विमान वहाँ "रेफाल" है। कांग्रेस अधिकांश जगह काँग्रेस भी लिखा है।
          हैदर अली के लेख में आधा गांव उपन्यास के पात्र का नाम फुन्नन मियां की जगह "फुन्न" लिखा है। सैफुनिया "सैफनियाँ" हो गयी है।
शिवकुमार यादव के लेख में असाध्य वीणा "असाध्य पीड़ा" अंकित है। सम्भ्रान्तता के स्थान पर "सम्भ्रान्ता" छ्पा दिखा। और भी बेशुमार छपाई की भूल हैं।

             स्तरीय और प्रतिष्ठित मानी जानी वाली पत्रिकायें और प्रकाशन संस्थान भाषा और वर्तनी के प्रति इस कदर लापरवाह हुए हैं, कि एक संस्कृति ही बनती जा रही है। कवि केदारनाथ सिंह के शब्दों में कहें- "हमारे युग का मुहावरा है/ कोई फर्क नहीं पड़ता।"

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

कथावार्ता : ऐतिहासिक चरित गल्प- प्रेम लहरी

      अगर आप शाहजहांयुगीन मुगल दरबार और बनारस की कुछ अनछुई, अनकही कहानियाँ पढ़ना/गुनना चाहते हैं तो त्रिलोकनाथ पाण्डेय का उपन्यास 'प्रेम लहरी' जरुर पढ़ना चाहिए। वैसे तो यह उपन्यास पण्डितराज जगन्नाथ और उनकी प्रेयसी लवंगी को केंद्र में रखकर लिखा गया है। जगन्नाथ का मूल स्थान बनारस है, तो कहानी में बनारस अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक हलचल के साथ मौजूद है। लवंगी, शाहजहाँ और मुमताज महल की सबसे छोटी बेटी थी और सब जानते हैं कि मुगल बादशाही परम्परा में शाहजादियों का विवाह नहीं होता था; ऐसे में लवंगी अपने दरबारी कवि जगन्नाथ से प्रेम कर बैठती है और तब खुलती हैं परतें मुगल दरबार और हरम की।

     लवंगी और जगन्नाथ का प्रेम साहस और जोखिम की मिसाल है, साथ ही शाहजहाँ और दाराशिकोह की कोमल भावनाओं का भी। लवंगी मुमताज महल की आखिरी संतान होने का फायदा उठाती है और अपनी बड़ी बहन, पिता शाहजहाँ और भाई दाराशिकोह को इस बात के लिए लगभग मना लेती है कि वह उसका विवाह जगन्नाथ से कर दें। वह अपने महल में उससे बार बार मिलती है और यह अंतरंग मिलन मुगल हरमों की कहानियाँ कहता है।

        पण्डितराज जगन्नाथ की ख्याति संस्कृत में काव्यशास्त्र के मर्मज्ञ के रूप में है। रस और साहित्य के विषय में उनका मत साहित्य में समादर से लिया जाता है। उन्होंने संस्कृत और ब्रजभाषा में बेहतरीन कविताएं लिखीं और लम्बी अवधि तक मुगल दरबार की शोभा रहे जहाँ उन्हें दारा शिकोह और लवंगी को शास्त्र सिखाने का अवसर मिला। इसी में यह प्रेम परवान चढ़ा और फिर उसकी एक विशेष परिणति हुई।

      यह उपन्यास हमें जगन्नाथ के कई अनजाने/अन्चीन्हे पहलुओं से परिचित कराता है जिसमें एक दिलचस्प है उनका पहलवानी का शौक। जगन्नाथ को दण्ड बैठक और कसरत का शौक था और लवंगी का हाथ देने के बदले शाहजहाँ ने अपने दरबार के प्रमुख पहलवान से उनका द्वन्द्व रखवा दिया था। जगन्नाथ ने उसे अपने शारिरिक और योगबल से पछाड़कर विशेष स्नेह और आदर की जगह प्राप्त की थी। प्रेम कहानी के इस उतार चढ़ाव के बीच इस उपन्यास में दर्ज है मुगल संस्कृति का बहुत सा स्याह पक्ष।

        प्रेम लहरी मुगल परिवारों में सेक्स, कुण्ठा, षड्यन्त्र, यौनशोषण, हीनताग्रंथि, हिंसा, इर्ष्या और ऐसी ही बहुत सी भावनाओं का बहुत प्रमाणिक चित्रण करती है। इस उपन्यास में मुगल बादशाह की यौनपिपासा है, परिवार में इस व्याधि से पीड़ित राजकुमारियां हैं और है उनका यौन बुभुक्षा शान्त करने का अवैध उपक्रम। इसमें ऊपर से लेकर नीचे तक सब शामिल हैं। शाहजहाँ की मझली बेटी तो इस मामले में सिरमौर है। वह न सिर्फ आकंठ यौन पिपासा में संलग्न है बल्कि वह औरंगजेब को खुफिया जानकारी भी देती है।
          
         मुगल परिवार में यह सब जो नंगा नाच चलता है, इसमें कोई व्यवधान नहीं डालता। हाँ, जो इसका अंग नहीं बनता उसे मरवा दिया जाता है। शाह परिवार की धौंस ऐसी है कि कोई चूं भी नहीं कर सकता।

         उपन्यासकार ने इस स्याह पक्ष को गाढ़ा उकेरने के लिए वैद्यजी की भूमिका को बहुत यादगार रंग दिया है। वैदक शास्त्र की स्थापना प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति की धाक जमाती है। वैद्यराज जब बादशाह का सफल इलाज करते हैं तो बादशाह उनसे यौन शक्ति बढाने वाली औषधि बनाने को कहते हैं और राजकुमारियां गर्भनिरोधक लेप। वैद्यराज ऐसा सफल काम करते हैं और सबके चहेते बन जाते हैं। प्रेम लहरी इस सब विशिष्टताओं के चित्रण के साथ मुगल परिवारों में सत्ता के संघर्ष, कला और साहित्य के उत्थान और उपलब्धि आदि पर भी प्रकाश डालती चलती है। वह बताती है कि स्वर्णयुग का दावा करने वाली मुगलिया सल्तनत में उत्तराधिकार को लेकर गजब घमासान है। औरंगजेब अपने भाई दारा शिकोह का सिर अपने पिता के पास भिजवा देता है, जो आगरा के किले में बन्द है। यह इस उपन्यास के लोमहर्षक दृश्यों में से एक है।

       पण्डितराज जगन्नाथ अपनी प्रेमिका लवंगी को लेकर बंगाल भाग जाते हैं और फिर वहाँ से वापस बनारस लौटते हैं। बनारस में उन्हें छिपकर रहना पड़ता है लेकिन एक दिन गंगा स्नान के अवसर पर उन्हें पहचान लिया जाता है और वह सपत्नीक जलसमाधि ले लेते हैं।

            जो लोग इस उपन्यास को जगन्नाथ के साहित्यिक यात्रा को ध्यान में रखकर पढ़ना चाहते हैं, उन्हें भी यह उपन्यास रंजनकारी लगेगा।

          नयी दृष्टि से, भारतीय दृष्टि से एक विशेष ऐतिहासिक चरित गल्प है प्रेम लहरी।

शनिवार, 19 जनवरी 2019

कथावार्ता :

    मैंने महसूस किया है कि हमारी पीढ़ी के बहुतेरे लोग ग्रामीण जीवन के अनेक शब्दों से अपरिचित हैं। कृषि, रसोई, विभिन्न पेशे के शब्द हमारे दैनिक जीवन से दूर होते जा रहे हैं।

      आज से हम ग्रामीण जीवन से जुड़े हुए कुछ शब्दों का उल्लेख करेंगे और उनका अर्थ तथा व्यवहार का विवरण देंगे। उनके विषय में लालित्यपूर्ण चर्चा होगी। वस्तुतः ग्रामीण जीवन के शब्दों से हमारा परिचय इसलिए भी खत्म हो रहा है कि एक तो हम उस परिदृश्य से दूर होते जा रहे हैं, दूसरे पूंजीवादी संस्कृति ने न सिर्फ ग्रामीण बल्कि इसी के लगायत दुनिया भर की स्थानीय संस्कृतियों को ग्रसना शुरू किया है। फिर विज्ञान, तकनीक और सूचना के प्रचार प्रसार से जीवन शैली में बुनियादी बदलाव आ गए हैं। बाजार हमारे घर में बहुत भीतर तक पैठ बना चुका है और उपभोक्तावादी संस्कृति हमको और अधिक आश्रित करती जा रही है।
तो ऐसे समय में ग्रामीण जीवन के खजाने को लेकर आपके बीच उपस्थित रहूँगा।
कोशिश रोज किसी नए विषय पर बात करने की रहेगी।
तो इंतजार

रविवार, 6 जनवरी 2019

कथावार्ता : वन्दे मातरम् -सम्पूर्ण गीत

वन्दे मातरम्‌
सुजलाम्  सुफलाम्  मलयजशीतलाम्‌
शस्य श्यामलां मातरम्  .
शुभ्र ज्योत्स्न पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्‌
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्‌
सुखदां वरदां मातरम्‌ .. वन्दे मातरम्‌
सप्त कोटि कन्ठ कलकल निनाद करले
निसप्त कोटि भुजैध्रुत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीं नमामि तारिणीम्‌
रिपुदलवारिणीं मातरम्‌ .. वन्दे मातरम्‌
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मंदिरे मंदिरे .. वन्दे मातरम्‌
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्‌
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्‌
सुजलाम सुफलाम मातरम्‌ .. वन्दे मातरम्‌
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्‌
धरणीं भरणीं मातरम्‌ .. वन्दे मातरम्‌
गीत की प्रस्तुति देखें।

गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

पीला खून पीली रोशनाई- राही मासूम रज़ा

   
    सिदाक़त हुसैन राही मासूम रज़ा का छद्म नाम था। राही मासूम रज़ा कई छद्म नाम से लिखते थे। सिदाक़त हुसैन नाम से उनका स्तम्भ 'माधुरी' में छपता था। यह एक दुर्लभ स्तम्भ आज अरविंद कुमार के सौजन्य से प्राप्त हुआ।

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

कथावार्ता : क्रिसमस इव पर विशेष

      बीते दिन अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की यह तस्वीर देखने को मिली। बराक संता की भूमिका में हैं। इस तस्वीर को देखते हुए विचारों की श्रृंखला बन गयी। 
      अव्वल तो यह खयाल आया कि अमरीका और यूरोपीय देशों के राजनयिक यह सब सहजता से कर सकते हैं तो विकासशील देशों विशेषतः भारत जैसे देश के राजनेता ऐसा करने की हिम्मत नहीं कर सकते। धर्मनिरपेक्षता एक घटिया बहाना है। उनका स्टेटस और वीआईपी बने रहने की चाह और वोट बैंक की परवाह बड़ा कारण है।
     ईसाइयत इतनी शक्तिशाली धारा है कि दुनिया के सभी दूसरे धर्म भीषण दबाव में हैं। हिन्दू धर्म टिका है तो अपनी समृद्ध और शानदार बौद्धिक परम्परा की वजह से। इस्लाम ताकत और कट्टरता से सहज प्रतिरोधी है। जिन देशों में बौद्ध धर्म है, वह सबसे अधिक संकट से जूझ रहे हैं। शेष पर कभी संता गिफ्ट देने के बहाने हावी है तो कभी, चर्च की नौटंकी, यीशु के दरबार, अस्पताल, पब्लिक स्कूल, पढ़ाई, पाठ्यक्रम के जरिये हमलावर है। पढ़ाई लिखाई में उसने मदरसों और आश्रमों की व्यवस्था को पोंगापंथी घोषित करवा रखा है और बुद्धिविलासियों की एक जमात खड़ी कर दी है। जब हमने कहा कि एक गड़ेरिये (ईसा) की जयंती का उत्सव दुनिया भर में एक सप्ताह से अधिक मनाया जा सकता है तो देश के प्रधानमंत्री चरण सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती का उत्सव दो दिन लगातार क्यों नहीं मना सकते, तो श्रोताओं में से कुछ ने 'धिक्कार' कहा। कुछ ने कहा कि सोचने की बात है। एक ने पूछा कि तारीख में BC अगर ईसा से पहले है तो इसे MC के तुरंत बाद शुरू हो जाना चाहिए। MC माने मैरी क्रिसमस। तो इसका जवाब यह है कि ईसा का जन्मोत्सव एक सप्ताह मनाने के बाद नए वर्ष की शुरुआत मान ली जाए, इसलिए।
      ओबामा की यह छवि बेहद खूबसूरत है। वह अपने पिटारे में रखकर चलता है बाइबिल। रात के समय जब आप सोते रहते हैं, वह आपके मेधा पर छा जाता है। कहता है- विज्ञान, चिकित्सा, शिक्षा, नौकरी, रोजगार सबका स्रोत है बाइबिल। बाइबिल की भाषा है अंग्रेजी। आपको अंग्रेजी नहीं आती- कोई बात नहीं। आप सीखें- हेलो, गुड मॉर्निंग, गुड नाईट, (गुड फ्राइडे भी!) हैप्पी बर्थडे, rip, ओके भी। उसके बाद तो आप हगी-मुत्ति सब सीख लेंगे।
ओबामा जब यह लेकर निकला है तो वह संता को घर घर पहुंचा रहा है। उस गड़ेरिये को घर घर में प्रवेश दे रहा है। हमारे राजनेता क्या कर रहे हैं? दलित, जाट, मुसलमान, आतंकवादी आदि इत्यादि खांचे में बांट रहे हैं। एक उठता है तो कहेगा कि राम की कहानी काल्पनिक है और दूसरा उठकर बताएगा कि कृष्ण ने कौरवों से छल किया। गांधी का एक अध्येता गोमांस भक्षण करते हुए अतिशय गौरव महसूस करेगा।
      तो ओबामा की यह छवि विशेष है। जब वह चुनाव लड़ रहे थे तो उनके खिलाफ दो बातें जा रही थीं- 1. वह मुसलमान हैं, 2. वह अश्वेत हैं। उन्होंने सिद्ध किया कि मुसलमान तो नहीं हैं, अश्वेत होने से अधिक वह अमरीकन हैं और उससे भी अधिक ईसाइयत के आक्रांता प्रचारक हैं।
      सच कहूं तो मुझे यह तस्वीर पसंद है। चाहता हूँ कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी इस पूरे सप्ताह औरंगजेब के शासनकाल में हुए सिख दमन और सिखों की वीरता को याद करते हुए आगे आएं। प्रणब मुखर्जी दुर्गापूजा में मन से शामिल हों। हामिद अंसारी ईदगाह में सामूहिक नमाज में शरीक हों। दूसरे माननीय स्थानीय पर्व उत्सव में खूब भागीदारी करें। 
भारत की विविधधर्मी संस्कृति को खूब रंगें, उसे और रंगीन और समृद्ध बनाएं।

सद्य: आलोकित!

जातिवादी विमर्श में चमकीला

 एक फिल्म आई है #चमकीला नाम से। उसके गीत भी हिट हो गए हैं। फिल्म को जातिवादी कोण से इम्तियाज अली ने बनाया है जो चमकीला नाम के एक पंजाबी गायक...

आपने जब देखा, तब की संख्या.