रविवार, 5 अगस्त 2018

धम्मपद से

चरञ्‍चे नाधिगच्छेय्य, सेय्यं सदिसमत्तनो।
एकचरियं दळ्हं कयिरा, नत्थि बाले सहायता॥
-(धम्मपद-बालवग्गो)

यदि शील, समाधि या प्रज्ञा में विचरण करते हुये अपने से श्रेष्ठ या अपना जैसा सहचर न मिले, तो दृढता के साथ अकेला विचरण करे। मूर्ख च्यक्ति से सहायता नही मिल सकती।

सोमवार, 28 मई 2018

कथावार्ता : नमो अन्धकारं : पढ़ने का सलीका

यथार्थ के अनेक रंग होते हैं
और उन सबको समेटने का अन्त
एक अंधेरे में होता है।

-पिकासो

किसी रचना को पढ़ते हुए उसमें चित्रित पात्रों अथवा घटनाओं का साम्य बिठाना और उसे चर्चा के केंद्र में रखना सबसे घटिया दर्जे की आलोचना कही जा सकती है। वस्तुतः जब कोई रचनाकार इस तरह अभिव्यक्त करता है तो इसे किसी व्यक्ति/घटना से जोड़कर देखने के बजाय एक प्रवृत्ति के रूप में देखना चाहिए। रचना का अंग बनते ही वह एक वृत्ति में रूपायित हो जाती है। दूधनाथ सिंह की लंबी कहानी 'नमो अन्धकारं' इसी तरह की घटिया आलोचना का शिकार बनी थी।...

आज नमो अन्धकारं पढ़ते हुए बार बार खयाल आया कि दूधनाथ सिंह ने जिस वृत्ति को इस कृति में रखा है, उसकी चर्चा आखिर क्यों नहीं हुई। समूचा आलोचकीय समाज उसमें निजी जीवन और परिचित चेहरे क्यो तलाशने लगा था? मुझे यह कृति अपने अंतर्विरोधों की सफल अभिव्यक्ति के लिहाज से अच्छी लगी। 'मठ' ऐसी ही वासनाओं और दुरभिसंधियों का गढ़ रहता है जो इस लंबी कहानी में आया है और ऐसे ही मठ और गढ़ ढहाने के लिए लोग संकल्पबद्ध होते रहे हैं। मुक्तिबोध आखिर किस मठ को ढाहने के लिए आह्वान करते हैं?
नमो अन्धकारं ऐसी कई वृत्तियों को बेनकाब करता है और हमारे समक्ष उघाड़ देता है, जिससे हम लाभार्थी होना चाहते हैं लेकिन उसका ठप्पा लगने से बचना चाहते हैं। क्या यह कहानी इलाहाबाद की गलीज जिंदगी का दस्तावेज नहीं है? क्या इसमें बड़े बड़े मठाधीशों की पोल पट्टी नहीं है? क्या इसमें कॉमरेड्स की कलई नहीं उघड़ती? पियक्कड़ी और परनारिगमन तो इस वासना-पंक का एक सहज दुलीचा है। दूधनाथ सिंह इसी अंधकार में यथार्थ की कई कई छवियां घोलते हैं और सबको दागदार बनाकर रख देते हैं।
नमो अन्धकारम पढ़ा जाए तो यह न देखा जाए कि इसमें कौन किस भूमिका में है, यही रचना के साथ न्याय है।

सोमवार, 28 अगस्त 2017

नया ज्ञानोदय- जुलाई-2017 अंक



#नया_ज्ञानोदय पत्रिका एक अजीब संकल्पना वाली पत्रिका है। उसके विज्ञापन में यह लिखा जाता है कि उसका हर अंक विशेषांक है और वह अपने रचनाकारों के संपर्क में है। ऐसे में 'योजना के बाहर की रचनाओं में विलंब स्वाभाविक है।' ठीक बात है। बाहरी लोगों को इस पत्रिका में जगह कैसे मिलेगी? गुणा-गणित से! सम्पर्क से!! तो रचनाकारों!! नया ज्ञानोदय में छपना है तो इंस्टिट्यूशनल एरिया का चक्कर काटना शुरू कर दीजिए। खैर!! बात यह नहीं करनी है।
बात करनी है, पत्रिका के जुलाई अंक में छपी विविधता भरी कहानियों पर। अव्वल तो समझ में नहीं आया कि "संवाद एकाग्र" पर केंद्रित इस अंक में कहानियों और रचनाओं के चयन का तर्क क्या है?संवाद एकाग्र से क्या आशय है, यह संपादकीय स्पष्ट भी नहीं करता। सम्पादकीय केंद्रित है शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं को समझने के सूत्र पर। यद्यपि यह बहुत सूक्ष्म विवेचन है। फिर भी,
अंक में नरेंद्र नागदेव की कहानी 'हाउस ऑफ लस्ट' अच्छी लगी। पंकज सुबीर और विवेक मिश्र की कहानियाँ पढ़ूँगा। इसमें तीसरी कहानी रूपनारायण सोनकर की है-'ई.वी.एम.'। यह कहानी क्या है, एक रूपक है। पिछले दिनों विधानसभा चुनाव के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ई. वी. एम. पर सवाल उठाए गए कि इस मशीन के माध्यम से धाँधली की गई है और बटन चाहे जो दबाओ, वोट वांछित जगह पर गिनने के लिए दर्ज हो जाता है। यद्यपि यह एक ऐसी बात थी जिसे हजारों गोएबल्स ने अपने दसो मुख से सैकड़ो दफा दुहराया था और लोगों को भरमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी; तब भी कई विद्वानों ने यह अभियान जारी रखा था। रूप नारायण सोनकर की यह कहानी इसी संकल्पना का एक भोंडा से रूपक है।बहुत वाहियात और बेसिर-पैर का।
कहना इतना भर है कि उस एक झूठ को स्थापित करने में नया ज्ञानोदय भी शामिल हो गया है और तमाम जन संचार के माध्यमों के साथ साहित्य को भी, विशेषकर कथा साहित्य को भी झोंक दिया है।
इसी अंक में Mangalesh Dabral सर का साक्षात्कार छपा है और बहुत हैरानी की बात है कि साक्षात्कर्ता ने उन (पहाड़ में पले-बढ़े) से यह प्रश्न पूछा है कि 'उत्तराखंड राज्य बने हुए 10 वर्ष से अधिक समय हो गया है'। मैं होता तो टोकता कि 17 साल हो गए हैं। खैर,
और आखिर में, अंक में Uma Shankar Choudhary जी की कविता छपी है। अपनी कविता 'लौटना' के आरम्भ में ही वह रचते हैं कि--

"सच के लिए मैंने टेलीविजन देखना चाहा
परंतु वहां अंधेरा था
आज के अखबार के सारे पन्ने कोरे थे"

तो मैंने सोचा कि सचाई के लिए जब कवि टेलीविजन के पास जा रहा है तो मैं पत्रिका क्यों पढ़ रहा हूँ?



 ----  https://www.facebook.com/ramakantji

सच्ची कहानी- झूठा कथाकार


कहते हैं कि एक गांव में एक बेहद उत्पाती किस्म का व्यक्ति रहा करता था। समूचे गांव के लोग उसकी हरकतों से परेशान थे। उसने जिंदगी में कभी किसी का भला नहीं किया था। वह निरंतर इस उधेड़बुन में लगा रहता था कि लोगों को परेशान कैसे रखा जाए। परेशान रखने के लिए उसने कई ऐसी तकनीक और तरकीबें अपना ली थी जिनसे लोगों की नाक में दम आ गया था। वह ऐसा करके बहुत सुख का अनुभव करता था।
गांव में कोई भी ऐसा नहीं रहा होगा जो उससे दुःखी ना हो। यद्यपि वह बहुत चापलूस पसंद व्यक्ति था और जी-हुजूरी उसका खुराक थी, फिर भी ऐसा देखा गया था कि वह उन लोगों को भी परेशान करने से बाज नहीं आता था जो लोग सदैव उसके हित की पूर्ति के लिए उसके आगे-पीछे घूमा करते थे। कहने का आशय यह कि गांव की सारी जनता उससे त्रस्त थी।
लेकिन जैसा कि सब के साथ होता है। एक दिन उसका अंत समय आ गया। अपने अंत समय को नजदीक जान वह बहुत दुखी हुआ। उसे इस बात का दुख सबसे अधिक था कि मेरे मरने के बाद गांव वालों को कौन परेशान करेगा।
खैर अपने अंतिम समय में उसने गांव के कुछ गणमान्य लोगों को बुलाया। बहुत अनुनय विनय करने के बाद उसने अपनी आखिरी इच्छा जाहिर की। उसने कहा कि हालांकि वह अभी तक गांव वालों को बहुत परेशान करता आया है और उसे इसका खेद है तो वह चाहता है कि जीते जी नहीं तो मरते समय इसका प्रायश्चित कर ले। और प्रायश्चित का तरीका यह है कि जब वह मर जाए तो उसके खास स्थान पर खूंटा ठोक दिया जाए। और उसकी लाश को लाठियों से पीटते हुए श्मशान ले जाया जाए। गांव वाले इस प्रस्ताव से बहुत प्रसन्न हुए। आखिर उसकी शरारतों से तंग जो थे।
फिर एक दिन मर गया। उसकी अंतिम इच्छा के अनुरूप उसके खास अंग में गाँव वालों द्वारा खूंटा ठोक दिया गया और उसकी अर्थी को लाठियों से पीटते हुए शमशान की तरफ ले जाने लगे।
फिर जो हुआ वह पूरे गांव के इतिहास में नहीं हुआ था। किसी ने पुलिस को खबर कर दी और पुलिस ने मृत शरीर के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में सारे गांव को लॉकअप में बंद कर दिया।
बहुत बाद में लोगों को पता चला की मरते मरते भी उसने गांव वालों को चैन से न रहने दिया।

डिस्क्लेमर --इस कहानी का अभी हाल-फिलहाल और मेरे आस-पास से कोई संबंध नहीं है।

सद्य: आलोकित!

जातिवादी विमर्श में चमकीला

 एक फिल्म आई है #चमकीला नाम से। उसके गीत भी हिट हो गए हैं। फिल्म को जातिवादी कोण से इम्तियाज अली ने बनाया है जो चमकीला नाम के एक पंजाबी गायक...

आपने जब देखा, तब की संख्या.