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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

लबार: मानस शब्द संस्कृति

साँचेहु मैं लबार भुजबीहा।
जौं न उपारिअ तव दसजीहा॥
लबार: मानस शब्द संस्कृति 



सभा में ऊलजलूल और निरर्थक, हास्यजनक बात करनेवाले व्यक्ति को #लबार कहा जाता है। विदूषक।
अंगद की बातों से आहत होकर रावण ने उन्हें इसी संज्ञा से जोड़ दिया तब उन्होंने कहा कि हे बीस भुजाओं वाले रावण, यदि मैंने तुम्हारी दसों जीभ न उखाड़ ली तो मैं लबार हूं।

लबार अनावश्यक और असंगत हस्तक्षेप करने वाले लोग हैं। अधिक बोलने वाले और निरर्थक, मूर्खतापूर्ण बात करने वाले हैं।

#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

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