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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

इब्ने इंशा की किताब से तीन अध्याय



मक्खन
"मक्खन कहाँ है?"
"मक्खन ख़त्म, खलास।"
सारा खा लिया?"
"नहीं, सारा लगा दिया। यह खाने की चीज थोड़े ही है। लगाने की है। जिसको लगाओ, फिसल पड़ता है।"
“जो फिसलेगा, उसकी टांग टूटेगी।"
“यह सोचना उसका काम है। हमारा काम तो लगाना है।"
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सवालात-
क्या तुमने कभी किसी को मक्खन लगाया है? अगर नहीं, तो मुझे लगाओ।

एक दुआ
"या अल्लाह! खाने को रोटी दे। पहनने को कपड़े दे। रहने को मकान दे। इज्जत और आसूदगी की जिन्दगी दे।"
"मियाँ, ये भी कोई माँगने की चीजें हैं? कुछ और माँगा करो।"
"बाबाजी! आप क्या माँगते हैं?"
"मैं? मैं ये चीजें नहीं माँगता। मैं तो कहता हूँ, अल्लाह मियाँ मुझे ईमान दे, नेक अमल की तौफ़ीक दे।"
"बाबाजी, आप ठीक दुआ माँगते हैं। इन्सान वही चीज तो माँगता है जो उसके पास नहीं होती।"

हमारा मुल्क
"ईरान में कौन रहता है?"
"ईरान में ईरानी कौम रहती है।"
"इंगलिस्तान में कौन रहता है?"
"इंगलिस्तान में अंग्रेजी कौम रहती है।"
"फ़्रांस में कौन रहता है?"
"फ़्रांस में फ्रांसीसी कौम रहती है।"
"ये कौन सा मुल्क है?"
"ये पाकिस्तान है।"
इसमें पाकिस्तानी कौम रहती होगी?"
"नहीं, इसमें पाकिस्तानी कौम नहीं रहती है। इसमें सिन्धी कौम रहती है। इसमें पंजाबी कौम रहती है। इसमें बंगाली कौम रहती है।इसमें यह कौम रहती है। इसमें वह कौम रहती है।"
"लेकिन पंजाबी तो हिंदुस्तान में भी रहते हैं। सिन्धी तो हिन्दुस्तान में भी रहते हैं। फिर ये अलग मुल्क क्यों बनाया था?"
"ग़लती हुई, माफ़कर दीजिए। आइन्दा नहीं बनायेंगे।"

{इब्ने इंशा (१९२७-१९७८) जन्मे पंजाब में। विभाजन ने उन्हें पाकिस्तानी बना दिया। वे मशहूर कवि थे। जगजीत सिंह ने इनकी कई गजलों को अपनी आवाज दी है। उर्दू की आखिरी किताब एक क्लासिक रचना है। उन्होंने इसमें तमाम अनुशासनों की हदें तोड़ दी हैं। एक साथ ही वे व्यंग्य की तीखी धार और हास्य बोध से चकित कर देते हैं।}

सद्य: आलोकित!

जातिवादी विमर्श में चमकीला

 एक फिल्म आई है #चमकीला नाम से। उसके गीत भी हिट हो गए हैं। फिल्म को जातिवादी कोण से इम्तियाज अली ने बनाया है जो चमकीला नाम के एक पंजाबी गायक...

आपने जब देखा, तब की संख्या.