रविवार, 28 अप्रैल 2024

जातिवादी विमर्श में चमकीला

 एक फिल्म आई है #चमकीला नाम से। उसके गीत भी हिट हो गए हैं। फिल्म को जातिवादी कोण से इम्तियाज अली ने बनाया है जो चमकीला नाम के एक पंजाबी गायक के जीवन पर आधारित है। चमकीला अश्लील गीत गाता था, यह कहकर पंजाब में उनकी हत्या कर दी गई। निर्देशक ने इसे जातिवादी हिंसा की तरह परोसा है।

चमकीला का एक दृश्य


इस फिल्म में परिणति चोपड़ा हैं, इसलिए इसका प्रमोशन भी हो रहा है।

चमकीला अश्लील बोल वाले गीत गाता था, वह अनुसूचित जाति का था। इसे नायक के मुंह से ही कहलवाया गया है।

चमकीला के अश्लील गीतों का बचाव करते हुए भोजपुरी गीतों में अश्लील गीत को लाया जा रहा है। अव्वल तो यह कहना है कि भोजपुरी गीतों से चमकीला की तुलना निरर्थक है। जिस समय चमकीला गा रहा था, भोजपुरी समाज बहुत उत्कृष्ट साहित्य रच रहा था। यहां तक कि भिखारी ठाकुर जैसे लोगों के बिदेसिया और भोजपुरी समाज के चैता, कजरी आदि की धूम थी। और तरल तथा संवेदनशील गीत थे। पंजाबी कभी उसकी बराबरी नहीं कर सकता।


पंजाब की किसी घटना का जस्टिफिकेशन भोजपुरी से करके क्या वाहियात काम कर रहे हैं लोग। भोजपुरी समाज अकुंठ समाज है। अब अब्राहमिक प्रभाव में भोजपुरी जगत थोड़ा उदंड व्यवहार कर रहा है जिससे लोग विचलित हैं। चूंकि वह आर्थिक रूप से उतना समृद्ध नहीं है, इसलिए सब उसे निशाने पर रखते हैं।


सच्चाई यह है कि #भोजपुरी समाज जोगीरा और कबीरा आदि भी बहुत मुक्त भाव से रचकर आनंद में अभिव्यक्त करता है। इसलिए पंजाबी अश्लीलता और मनबढ़ अभिव्यक्ति को भोजपुरी से नहीं जोड़ना चाहिए। पंजाबी अश्लीलता सांस्कृतिक दूषण है। चमकीला उसका निकृष्ट रूप रख रहा था।

अस्तु!

कहना है कि #चमकीला के बहाने #हिन्दू समाज में फूट डालने और जातिगत विभेद को उभारने के प्रयास को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। दूसरे यह ध्यान देने की बात है कि #लोकसभा_चुनाव_2024 से ठीक पहले पंजाब में इम्तियाज यह फिल्म ले आए हैं जब अलग अलग क्षेत्रों में जातीय अस्मिता उभारी जा रही है।


तीसरे, घटनाओं की व्याख्या के जो टूल प्रयुक्त हो रहे हैं, वह समरस करने की मंशा से नहीं।


भारत में सिनेमा बहुत सशक्त माध्यम है। फिल्में बनें तो इनपर सूक्ष्म दृष्टि रखी जाए और प्रवाद फैलाने की कोशिश को रोकी जाए। दुर्भाग्य से हिंदू समाज ही इनके निशाने पर है और समाज सुधार की इनकी चिंता हिंदू समाज में प्रविष्ट कर ही हो पाती है। दुनिया का सबसे उन्नत और तार्किक सोच वाला समाज हिन्दू समाज है। उसके हर क्रिया प्रतिक्रिया का एक निश्चित और सुचिंतित आधार है। अब्राहमिक प्रभाव से आप्लावित लोग अपने समुदाय की कूपमंडूकता को देखें। मुक्त हों।


सबका कल्याण हो।

1 टिप्पणी:

Sujeet tiwari ने कहा…

ये पढ़ना जरूरी है इसलिए कि फिल्मों के माध्यम से गढ़े जा रहे नैरेटिव को समझ पाए।मैंने गौर किया है कि फिल्में देखने जा रहे अधिकांश युवा इस बात से अनजान रहते हैं कि फ़िल्म का निर्माता किस विचार को ध्यान में रखकर फ़िल्म बना रहा है उसका क्या विचार है वो फिल्मों को देखकर बहुत बातें सच मान लेते हैं उस समय ऐसे लेखों को पढ़ना बहुत जरूरी हो जाता है।धन्यवाद गुरुदेव🙏🏼

सद्य: आलोकित!

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