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मंगलवार, 30 जनवरी 2024

अलक्षित : मानस शब्द संस्कृति

 

अलक्षित : मानस शब्द संस्कृति 

तेहि अवसर एक तापसु आवा।
तेजपुंज लघुबयस सुहावा।।
कबि अलखित गति बेषु बिरागी।
मन क्रम बचन राम अनुरागी।।

जिसे देखा न गया हो, वह #अलक्षित है। वह जो अभी प्रकट नहीं है। संभावनाशील। श्रीरामचरितमानस में "अलक्षित कवि" पद तपस्वी के लिए आया है। भाष्यकार इसकी पहचान नहीं कर पाते। अनुमान किया जाता है कि यह तुलसीदास हैं युवा, रामभक्त,तेजस्वी।

तुलसीदास भगवान श्रीराम के दर्शन के अभिलाषी हैं। वह कथा में अवसर देखकर प्रकट होते हैं और सबकी चरण वंदना करते हैं। वह अलक्षित हैं।
निराला ने अपने गीत "स्नेह निर्झर बह गया है" की अंतिम पंक्ति भी यही रखी है- "मैं अलक्षित हूं/यही कवि कह गया है।"
अपने समय के दो महान कवि, एक अभिव्यक्ति।

#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

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