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सोमवार, 4 मार्च 2024

गीध - दृष्टि : मानस शब्द संस्कृति

 

गीध - दृष्टि : मानस शब्द संस्कृति 


मैं देखउं तुम्ह नाहीं, गीधहि दृष्टि अपार।
बूढ़ भयउं न त करतेउं कछुक सहाय तुम्हार।।

प्रयोग के आधार पर शब्दों के अर्थ में विस्तार और संकोच होता रहता है। अपार अर्थात दूर तक देखने की क्षमता वाली #गीध_दृष्टि कालांतर में स्वार्थलोलुप और निकृष्ट मानी गई। गीधराज संपाती ने अपनी दृष्टि की सहायता से वानरों को रावण का ठिकाना बताया। उन्होंने अपनी असमर्थता भी जताई कि वह वृद्ध न होते तो अवश्य सहायता करते।

#मानस_शब्द #संस्कृति


सद्य: आलोकित!

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