मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

जन्मभूमि : मानस शब्द संस्कृति

जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।

बेद पुरान बिदित जगु जाना।।

अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।

यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।


जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि।

उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।

जन्मभूमि : मानस शब्द संस्कृति 


पुष्पक विमान में बैठे हुए सूर्यवंशी राम, सीता को उन स्थलों से परिचित कराते लेकर आए जहां जिनसे वह परिचित न थीं। उन स्थानों पर रुके, जहां जाते समय विश्राम किया था। फिर पहुंचे अपनी #जन्मभूमि, अयोध्या जी। वह कपि समूह को दिखाने लगे।

वहां वह #जन्मभूमि के प्रति अपने प्रेम का बहुत रुचिर वर्णन करते हैं। बैकुंठ से अधिक महिमाशाली कहते हैं। बैकुंठ भी उन्हें उतना प्रिय नहीं, जितना अवधपुरी। अपने जन्म स्थान से यह प्रेम भारत और भारतीय जन की पहचान है।


महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" को स्वर्णमयी लंका के तुलना में रखा है जबकि गोस्वामी जी ने बैकुंठ के।


#रामकथा मे आज श्रीराम अपनी #जन्मभूमि अयोध्या जी लौट आए। चौदह वर्ष का वनवास बहुत बड़ा था, कठिन था। श्रीरामचरितमानस की कथा भी इसी के साथ पूरी हुई। इसके बाद उत्तर कांड है और उत्तर कांड रामकथा का प्रसाद है। उसे प्राप्त किया जाएगा किंतु उससे पूर्व यह कहना है कि जैसे भगवान श्रीराम अपने घर लौटे, सब लौटें। जो आदर्श उन्होंने स्थापित किया, वह ध्येय हो। उन्होंने जो मर्यादा स्थापित की, वह हमारा आदर्श रहे। सब सुखी हों, नीरोग हों, चिंतामुक्त रहें।

अन्त में,

यहां यह भी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं कि कई सौ साल की प्रतीक्षा के बाद रामलला का विग्रह अयोध्या जी में इस साल स्थापित हुआ है। इस महान परिघटना के बाद कल पहली श्रीरामनवमी है।

मैं इस पावन अवसर पर आप सबको "सियाराममय" जानकर प्रणाम करता हूं।


कहिए! जय श्री राम! 🚩

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

जय राम जी की ! इस शृंखला का जल्द समापन न करने का अनुरोध करता हूँ । रामचरितमानस में ऐसे अभी कई शब्द हैं जिन्का आज के आधुनिक हिन्दी के पाठकों को अर्थ पता नहीं है।आपकी यह शृंखला संदर्भ के काम आएगी । आपके इस कर्म के लिये साधुवाद!

सद्य: आलोकित!

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