मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

चॉकलेट दिवस पर ग्रामवासिनी प्रिया से।

(चॉकलेट दिवस पर विशेष)

मेरी ग्रामवासिनी प्रिया
जब चौका बासन हो जाए
और लिपा जाये चूल्हा
कहीं दूर पूरब में झींगुर सनसनाने लगें
और निचाट सन्नाटा अम्मा को डराने लगे
मेरे बारे में सोचना
.
जब पौ फटे
गाय को सानी पानी करके
बछ्ड़े को छोड़ देना
दूध की एक धार बाल्टी में
दूसरी गाय के मुँह पर डालोगी तो
मुझे याद करना
.
मेरी ग्रामवासिनी प्रिया
जब गोबर पाथना
तब ऐसे थपकी देना
जैसे मेरी पीठ पर थपकी देती थी माँ,
यह मेरे श्रम का परिहार करती है।
.
मेरी ग्रामवासिनी प्रिया
मैं चैत्र में आऊँगा
उस समय आसमान भी हमारे बारे में सोचता है।

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बेहद शानदार और उम्दा प्रस्तुती है।
आपकी रचनाएं यहां भी प्रकाशन के लिए आमत्रित है::::
संपादक / प्रकाशक
AKSHAYA GAURAV Online Hindi Magazine

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

रमाकांत जी आपकी इस कविता से ज्ञात होता है कि आप का गावो से भरपूर लगाव है तथा इस कविता में बहुत अच्छा वर्णन किया गया है शब्दनगरी पर भी प्रकाशित सकते हैं जिससे आपकी रचनाएं अधिक से अधिक लोगो तक पहुंच सके .......

सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

आपने जब देखा, तब की संख्या.