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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

हमारे पकवान : खीर, बखीर और तसमयी

बहुत दिन के बाद आज खाने में खीर मिली तो सोचा कि इस मनपसंद व्यंजन पर कुछ रसमयी चर्चा हो। आज जो हमने खाया, यह वास्तव में तसमई थी। जब पर्याप्त मात्रा में दूध हो। महीन चावल निखालिस दूध में पकाया जाए। मेवा-मिश्री (शक्कर) पड़े, तो जो स्वादिष्ट व्यंजन बनेगा, वह है तसमई। लेकिन हमने इसे खीर का नाम दिया है।

बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि खीर वह है जिसमें दूध में चावल पके और अंत मे गुड़ मिलाया जाए। खीर शब्द क्षीर का तद्भव ही है। क्षीर दूध को ही कहते हैं। नीर-क्षीर विवेक का पद तो खूब प्रचलित है। त्रिदेवों में कल्याणकारी देव विष्णु का निवास क्षीरसागर में ही कहा गया है। ध्यान रखें कि गुड़ पहले मिलाया तो दूध फट जाएगा और खीर का मजा जाता रहेगा। तो खीर बनती है गुड़ मिश्रित करने से। 

एक दूसरा व्यंजन है बखीर। जब कचरस में चावल पके। वह भी नया चावल। आजकल हमारे घर में सरजू बावन कटने लगा है और एकदम नए चावल का भात भी मिल रहा है, ऐसा माताजी  बता रही थीं। तो नया चावल मतलब इस मौसम का चावल। कचरस मतलब गन्ने का पेरा हुआ कोल्हाड़ से आया हुआ ताजा रस। उसी में चावल पकाते हैं और बाद में थोड़ा सा दूध मिला देते हैं। तो बनता है बखीर। बताता चलूं कि न तो मुझे खीर पसंद है न बखीर। यद्यपि लालसा रहती है उर्वशी को पाने सरीखी।

एक चौथा व्यंजन बाद के समय मे लोकप्रिय हुआ है- सिवई। शमीम मियां ने एकबार सूखी सिवई खिलाई थी तबसे मेरे पाक में कोशिश वही सूखी सिवई बनाने की रहती है जिसमें दूध खोए की तरह हो जाता है और ड्राई फ्रूट्स तैरते रहते हैं। तसमई के प्रेमी हम भाई-बहन सिवई भी तसमई की तरह बनाते रहे हैं। मेरे बड़े भाई श्री शशिकान्त राय का दावा है कि वह तसमई बहुत स्वादिष्ट बनाते हैं। हालांकि हम सब उन्हें यह जिम्मा सौंपते हुए हमेशा डरते रहते हैं और वह बहुत उत्साह से बनाते हैं। और हम खा भी लेते हैं। खैर

       तो मीठे ने ऐसे हमारे रसोई में जगह बनाई थी कि जिस दिन तसमई बन जाती थी, उस दिन हम अतिप्रसन्न रहते। राजसी भोजन ग्रहण करते। 

       अब तो जीवन में पश्चिमी जीवन शैली ने ऐसे जगह बना ली है कि मीठा कई घरों की रसोई से गायब हो गया है। रेस्तरां और होटल के नवाचारी खाद्य और ऐसे पकवान जिसमें फ्यूजन है, ने हमें घेर लिया है। शीत ऋतु का आरंभ हो गया है तो आजकल गज़क मिलने लगा है। पहले गज़क तिल मिश्रित ही होता था। अब देखता हूँ कि गेंहू का गज़क भी मिलने लगा है। पित्जा और बर्गर और अनापशनाप ने हमें भ्रष्ट कर रखा है। 

          जिनकी थाली में आज भी कोई मीठा पकवान सुरुचिपूर्ण ढंग से रखा है, वह मेरे देखे सबसे अधिक भाग्यशाली है।

 

 

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शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

कथावार्ता : कद्दू की स्वादिष्ट तरकारी बनाने की विधि!

     रामचरित मानस की बहुत प्रसिद्ध अर्धाली है-
    'इहाँ कुम्हड़ बतिआ कोउ नाहीं।
     जे तरजनी देखि मर जाहीं।।'
     शिव धनुष टूटने के बाद भगवान परशुराम और लक्ष्मण का संवाद चल रहा है। लक्ष्मण परशुराम से कह रहे हैं कि यहां कुम्हड़े के बतिया यानी नवजात फल की बात नहीं हो रही कि तर्जनी दिखा देने से वह मुरझा जाएगा। आप सूर्यवंशी राजकुमारों से बात कर रहे हैं। बहरहाल, रामचरित मानस की यह चौपाई पढ़-सुनकर कुम्हड़े या कद्दू से जैसे वितृष्णा हो गयी थी। यह कोई तरकारी है या फल? कूष्माण्ड फल और बनती है तरकारी। और तो और इस कूष्माण्ड फल का आकार इतना बड़ा होता है कि बिना सामूहिक आयोजन के खप ही नहीं सकता। प्रतापगढ़ और प्रयागराज के विप्र समुदाय के बीच पूड़ी के साथ इसकी तरकारी के कॉम्बिनेशन की लोकप्रियता से मन किञ्चित ललचाया था लेकिन तब भी मैं इसकी तरकारी से चिढ़ता था। भैया को यह पसंद थी। वह जब तब यह लेते आते थे तो एक दिन हमने इसमें कुछ प्रयोग किये और पाया कि कद्दू को कुछ यूं पकाया जाए तो वह जिह्वा पर चढ़ जाती है। आप फॉलो करें!

सामग्री (दो जन के लिए)-
       एक करछुल से कुछ कम सरसों तेल,
पंचफोरन, (पंचफोरन जीरा, कलौंजी, मेथी, सौंफ और राई का बराबर मिश्रण आता है, लेकिन इस व्यंजन के लिए जीरा हटाकर अजवायन का प्रयोग किया जाए।)
कद्दू- आधा किग्रा,
आलू- दो-तीन मंझले आकार के।
लहसुन एक पोटी,
हरी मिर्च,
अदरख और 
नमक स्वादानुसार।

विधि-
        कद्दू और आलू को अलग अलग काट लें। आकार ठीक वैसा हो जैसा पपीता खाने के लिए काटते हैं। नॉन स्टिक कड़ाही में तेल गरम होने के लिए डालें। पंचफोरन डालें। पंचफोरन न हो तो मेथी से काम चला सकते हैं, जीरा नहीं डालना है। फिर लहसुन-मिर्च-अदरक के कटे टुकड़े  डालें। भुनते हुए जब लालिमा झलकने लगे तो आलू डालें। कुछेक मिनट के अंतराल पर कद्दू डाल दें। ध्यान दें कि सारी सामग्री पड़ जाने तक करछुल का प्रयोग नहीं करना है। इस तरह जो परत होगी, उसका क्रम यों होगा-
पंचफोरन-लहसुन-मिर्च-अदरख-आलू और कद्दू। आंच न्यूनतम। ढँक दें। कुछ अंतराल के बाद नमक छिड़क दें। ढँक दें। पकने दें। देखेंगे कि इतना सत्व बन गया है कि तरकारी पक सके। धैर्य रखें। देखते रहें कि कड़ाही से चिपक तो नहीं रहा। जब सत्व कम हो जाये, करछुल का प्रयोग करें। एकाध बार चला दें। सबको मिल जाने दें। कुछ अंतराल के बाद जब आलू पक जाए, (कद्दू पक चुका होगा) उतार लें। अगर हरी धनिया है- बारीक काटकर छिड़क लें। ढँक दें। पाँचेक मिनट के बाद रोटी के साथ  खाएं।
फिर मेरी तारीफ करें।
     धन्यवाद।

नोट- अपने रिस्क पर पकाएं।

सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

आपने जब देखा, तब की संख्या.