बुधवार, 4 सितंबर 2013

लिंकन का पत्र, उस शिक्षक के नाम जिसके यहाँ उनका बेटा पहली बार पढ़ने गया.


सम्मानित महोदय,
 मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखना होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह बताएँ कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा लीडर बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पाँच रुपए के नोट से ज्यादा कीमती होता है।
आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाएँ। साथ ही यह भी कि खुलकर हँसते हुए भी शालीनता बरतना कितना जरूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्‍छी बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।
आप उसे किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को धूप, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज्यादा काम की हैं।
मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखना होगी कि नकल करके पास होने से फेल होना अच्‍छा है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा।
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी।
आपका
अब्राहम लिंकन

7 टिप्‍पणियां:

डॉ रमाकान्त राय ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार, यहाँ पधारने के लिए.
अगर आप यहाँ है तो कृपया अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराते जायें. अच्छा तो लगेगा ही, मेरे लिए उत्साहवर्धक भी होगा..

Reena Pant ने कहा…

आभार ,बहुत सुंदर प्रस्तुति ,आज इसे पढ़कर मन में यह इच्छा जरुर जागृत हुई की एक शिष्य ऐसा बन जाये ,जिसकी सोच ऐसी हो, भले ही वो लिंकन न हो

डॉ रमाकान्त राय ने कहा…

धन्यवाद !
यह पत्र एक मील का पत्थर है. यह अभिभावक, शिक्षक और छात्र, तीनों के लिए समान रूप से उपयोगी और महत्त्व का है.
आपका स्वागत..

virendra sharma ने कहा…


सारा सन्देश व्यक्ति को गुणा तीत होने की प्रेरणा दे रहा है , माध्यम बन रहा है।

डॉ रमाकान्त राय ने कहा…

गुण से परिपूर्ण..

Unknown ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति

Prem Chand Yadav ने कहा…

सादर प्रणाम सर। पढ़ कर के बहुत अच्छा लगा लेकिन मुझे एक-दो जगह पर अशुद्धियां दिखाई दी। मैं जानता हूं कि इस मामले में आप बहुत सतर्कता बरतते हैं। मैं चाहूंगा कि एक बार इस पर फिर से ध्यान दें।🙏

सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

आपने जब देखा, तब की संख्या.