शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

चार _आम और मिर्जा गालिब

 "मिर्ज़ा ग़ालिब" नाम से जो टीवी बायोपिक है, उसमें मिर्ज़ा आम खा रहे हैं। एक सज्जन यह कहकर कि वह आम नहीं खाते, महफिल में हैं।


तभी कहीं से एक गधा उन लोगों के पास आता है। हजरात कहते हैं- "गधे ने आम सूंघकर छोड़ दिया। मिर्ज़ा, आम तो गधे भी नहीं खाते।"

कथावार्ता : सांस्कृतिक पाठ का गवाक्ष


मिर्ज़ा कहते हैं- "गधे हैं, तभी आम नहीं खाते।"


#चार_आम

गुरुवार, 30 जून 2022

चार आम और मौलाना

       सालिम अली ने आत्मकथा "एक गौरैया का गिरना" में लिखा है कि उनके फ्रिज में 08 अलफांसो आम थे। एक मौलाना आए। उन्हें आम ऑफर किया गया। उन्होंने आठो आम दबा दिए।

     फ्रिज में रखे आम का स्वाद द्विगुणित हो जाता है। गांव में पानी भरी बाल्टी में आम रखकर खाने के पीछे यही भावना है।

      सबेरे सबेरे पद्म (लंगड़ा) का सेवन करते हुए अलफांसो और मौलाना की याद हो आई।

#चार_आम






शनिवार, 25 जून 2022

Kathavarta : भूपेंद्र भारतीय का व्यंग्य, ‛मेंगो डेमोक्रेसी’ में कटहल-वाद....!!

 -भूपेन्द्र भारतीय

आम का मौसम शिखर पर है। कोई सुबह उठते ही #चार_आम दबा रहा है तो कोई दो आम चूसकर दो-चार हो रहा है। कुछ नौसिखियें शाम का समापन आम के जूस से कर रहे हैं। वहीं कुछ बुद्धिजीवी आम को चूस-चूसकर स्वाद लेने का आनंद ले रहे हैं। इधर देखने में आया है कि डूड पीढ़ी आम को काटकर खाने में ही अपनी शान समझ रही हैं ! इस बीच इसी मौसम में कटहल भी कोई कम तेवर नहीं दिखा रही हैं। उसका तेल अलग ही चढ़ा हुआ है। उसके नाम से मेंगो डेमोक्रेसी में एक नया वाद ही चल निकला है, “जिसे कई आरामपसंद बुद्धिजीवी कटहल-वाद कहने लगे हैं।

एक तरफ आम आदमी आम मचकाने में मगन है। कटहल प्रेमी कटहल-वाद चलाने में पूरा जोर लगा रहे हैं। वहीं मेंगो डेमोक्रेसी में कुछ कट रहा है तो बहुत कुछ मेंगोमय हो रहा है।

हम सब जानते है कि लोकतंत्र में आम आदमी मेंगो की तरह होता हैं। जिसे डेमोक्रेसी के सैनिक कभी भी चुस कर फेंक सकते हैं। जिस तरह से कटहल को काटने के लिए चाकू पर हल्का-सा तेल लगाया जाता है, डेमोक्रेसी के सैनिक भी इसी तरह से आम आदमी के वोट आम व खास चुनाव में काटते हैं। आम आदमी अपने को आम लोकतंत्र का सिपाही समझता है लेकिन वह हर आम व सामान्य चुनाव में शिकार हो जाता है। मेंगो डेमोक्रेसी में माननीयों का लोकतांत्रिक मिक्सर आये दिन मेंगो मेननाम का जूस बनाते रहते है। कभी पांच सितारा होटलों में कटकर, तो कभी अंतरात्मा की आवाज़ के कारण डाक बंगलों व सर्किट हाउस में मेंगो मेन का सर्वे भवन्तु सुखिनःकरके...!

इधर विद्वानों के मत अनुसार जब से मेंगो डेमोक्रेसी में कटहल-वाद आया है बाकि सारे वाद इस वाद के सामने बेबुनियाद होते जा रहे हैं। कटहल-वाद में राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं का ऐसा तगड़ा बघार लगाया जा रहा है कि उसके सामने बाकि सारें वादों की सांसें फूल रही हैं। एक राज्य में जबतक मेंगो मेन सरकार बनाता है, “तबतक दूसरे राज्य में मेंगो डेमोक्रेसी करवट बदल लेती है। वहीं तीसरे राज्य से खबर आती है कि कोई कच्ची-पक्की डेमोक्रेसी को ही तोड़ कर किसी रिसॉर्ट में ले गया है।" बेचारी मेंगो डेमोक्रेसी के पांच साल होटल-होटल व एक राज्य से दूसरे राज्य में कटहल-वाद से छुपने में ही निकल जाते हैं।

 सर पसे की वाल से

इधर आमों का मौसम चलता रहता है और आम आदमी आम चूसते-चूसते टीवी पर यह मेंगो डेमोक्रेसी का मेगा ड्रामा देखने का आनंद भी उठाता रहता है। कटहल-वाद के जनक लगे हैं डेमोक्रेसी को काटने-पीटने-जलाने में ! कुछ पत्थर-वीर पत्थर फेंककर मेंगो डेमोक्रेसी पकने ही नहीं देना चाहते हैं। कोई अपनी मेंगो मांगों के लिए रेलगाड़ियों को जला रहा है, तो कोई आम आदमी बने मेंगो ट्वीट कर रहा है। मौसम विभाग हर बार की तरह इस बार भी आम से कुछ खास बारिश के संकेत बता रहा है। इधर बाजार में अब सभी तरह के आम आसानी से खरीदें जा सकते हैं। बस आपकी जेब में कुछ खास लोगों का फोटो लगा कागज पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। फिर आप बाजार से निकलते हुए कुछ भी व कैसे भी आमोखास को खरीद सकते हो !

इन सब झंझटों से दूरी बनाकर भी कुछ भलें आम आदमी चारों पहर तरह-तरह के आम दबा रहे हैं। कोई किसी फाईल को आगे बढ़ाने के नाम, तो कोई कम्प्यूटर के डाउन होते सर्वर को गति देने के लिए आम (मेंगो डेमोक्रेसी) का सहारा ले रहा है। शाकाहारी आम आदमी कटहल पकाकर ही अपने वादे पूरा कर रहा हैं। इन दिनों मेंगो डेमोक्रेसी में चारों दिशाओं से हवा चल रही है। कहीं गर्मी कम हो रही है तो कहीं उमस बढ़ने लगी है। लगता है बरखा-रानी अपनी फुहारों की यात्रा पर निकल चुकी है। देखते हैं आम आदमी आमरस का आनंद कबतक ले पाता है, वहीं कटहल-वाद के झंडाबरदार कहाँ तक अपनी साग पका पाते हैं व साख बचा पाते हैं....!


(कथावार्ता आम प्रेमियों के लिए एक विशेष कोना रखता है। देश में आम का मौसम आते ही हर तरफ वैष्णव भाव ज़ोर मारने लगता है, इससे प्रेरित हो #कथावार्ता ने आम प्रेमियों के सम्मान में एक कॉलम शुरू किया है। बीते दिन ट्विटर परआम ट्विटर की बात चली थीभूपेंद्र भारतीय का व्यंग्य इस कड़ी में पहला लेख --

भूपेंद्र भारतीय

भूपेंद्र भारतीय मध्यप्रदेश के एक महाविद्यालय में वकील बनाते हैं। वह जाने माने व्यंग्यकार और स्तंभकार हैं। देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र- पत्रिकाओं में आपके आलेख और व्यंग्य प्रकाशित होते रहते हैं। वह घुमक्कड़ी के शौकीन हैं। व्यंग्य आधारित उनकी पुस्तक प्रकाशकों की मेज पर रखी हुई है। - संपादक)

 

संपर्क-

205, प्रगति नगर,सोनकच्छ,

जिला- देवास, मध्यप्रदेश (455118)

मो. 9926476410

मेल- bhupendrabhartiya1988@gmail.com

 


बुधवार, 4 मई 2022

बौद्ध धर्म को संकुचित करते आधुनिक बौद्ध

-पीयूष कान्त राय

संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विसेज एक्जाम 2016 बैच की टॉपर टीना डाबी ने हाल ही में सीनियर आईएएस अधिकारी प्रदीप गवांडे के साथ शादी कर ली । यह उनका दूसरा विवाह है। उनकी शादी कई कारणों से चर्चा में रही और आए दिन ट्विटर एवं अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए इसका प्रचार भी हुआ। अब उनके विवाह की तस्वीरें सुर्खियां बनी हुई है। बौद्ध भिक्षु कश्यप आनंद द्वारा बौद्ध पद्धति से शादी समारोह संपन्न कराया गया जिसके साक्षी के रूप में भगवान बुद्ध की छोटी सी मूर्ति के साथ बाबा साहब अंबेडकर की बड़ी तस्वीर रखी गई थी।

इसमें कोई शक नहीं है कि भगवान बुद्ध ने अपने जीवन काल में तपोबल और ज्ञान से जो दर्शन दिया वह संपूर्ण रूप से ग्राह्य है। बौद्ध धर्म के प्रचार में महान सम्राट अशोक ने जिस  दूरदर्शी दृष्टि का परिचय दिया उसने आगे चलकर बौद्ध धर्म  को अपने मूल रूप से जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । अशोक के अलावा भी कई शासकों एवं दार्शनिकों ने बौद्ध धर्म के विषय में सकारात्मक रुख अपनाए। लेकिन आज के दौर में महात्मा बुद्ध के बाद बौद्ध धर्म में अंबेडकर का स्थान हो गया है। अंबेडकर आजीवन हिंदू रहे। उन्होंने हिंदू रहते हुए इसकी कुरीतियों को दूर करने का हरसंभव प्रयत्न किया। जीवन की संपूर्ण कृतियां उन्होंने हिंदू रहते ही उद्धेलित की थी। अपनी मृत्यु से केवल कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म को अंगीकार किया था। देखा जाए तो बौद्ध दर्शन, चिंतन एवं इसके प्रचार-प्रसार में अंबेडकर का कोई योगदान नहीं रहा है। इसके बावजूद आज एक प्रतिक्रियावादी समूह अंबेडकर को बौद्ध दर्शन के प्रणेता के रूप में स्थापित करने में अपना सामर्थ्य झोंक दिया है। यह दृष्टि बौद्ध दर्शन जैसे महान मूल्यों के प्रति संकुचित दृष्टि पैदा करता है, जो हिंदुओं में एक खास वर्ग को लक्षित करके प्रचारित किया जाता है। अंबेडकर ने एक बार कहा था कि "मैं पैदा तो हिंदू हुआ हूँ लेकिन मैं हिंदू मरूँगा नहीं।" इस बात में उन्होंने कहीं भी बौद्ध धर्म का जिक्र नहीं किया है। 

यह जानना आवश्यक है कि अपने जीवन काल में गांधी और अंबेडकर दोनों को इस्लाम और ईसाई मत में दीक्षित करने के कई प्रयास हुए। गांधी ने तो गीता के "स्वधर्मे निधनं श्रेय" कहकर सच्चा हिंदू बने रहने का संकल्प किया किंतु भीम राव अम्बेडकर ने हिंदू न रहने के संकल्प का पालन किया। हालांकि यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने ईसाई अथवा इस्लाम स्वीकार नहीं किया।

वास्तव में धर्म के मसले पर अंबेडकर स्वयं ही अस्पष्ट थे। उन्होंने इस्लाम और ईसाई समुदाय की तीखी आलोचना की है। हालाँकि मृत्यु के कुछ दिन पहले उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया ,लेकिन वह सिर्फ उनकी हिंदू धर्म के प्रति कुंठा का प्रतिक्रियावादी स्वरूप था । आज भी उनके कट्टर समर्थकों में वही प्रतिक्रियावादी विचारधारा का समावेश झलकता है। यह पूरा मामला अपने आप में विचारणीय है।

पीयूष कान्त राय

(पीयूष कान्त राय मूलतः गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के हैं। उनकी पाँखें अभी जम रही हैं। साहित्य और साहित्येतर पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी में फ्रेंच साहित्य में परास्नातक के विद्यार्थी हैं। वह फ्रेंच भाषा, यात्रा और पर्यटन प्रबन्धन तथा प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व के अध्येता हैं और फ्रेंच-अङ्ग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद सीख रहे हैं। साहित्य और संस्कृति को देखने-समझने की उनकी विशेष दृष्टि है। टीना डाबी प्रकरण में नव बौद्ध वृत्ति पर समसामयिक घटनाक्रम पर उनकी यह विशेष टिप्पणी।)

रविवार, 1 मई 2022

हमारे खिलौने

     - डॉ रमाकान्त राय

    वसु और वैष्णवी के लिए खिलौने लेने का मन था । एक फुटपथिया दुकान पर खड़ा हुआ । प्लास्टिक और रबर की विविध वस्तुएं थीं । खेलने के लिए बनाई गयी । सर्वाधिक मात्रा शोर करने वाली खेल सामग्री की थी । सीटी, पिपिहरी, झुनझुने और चें-पें करने वाले बहुतायत थे । दूसरी बड़ी संख्या वाहनों की थी । कार, बस, हेलीकॉप्टर और विमान बहुत थे । आग्नेयास्त्र तीसरे स्थान पर बहुतायत में थे । बन्दूक, पिस्तौल और इसी तरह के खिलौने ।

        मैंने गेंद चुनी । स्पंज वाली गेंद का दोनों ने नुकीले दांतों से कुतर कर देख लिया था कि सब निस्सार है । इसलिए इस बार प्लास्टिक की गेंद चुना । पिछली बार एक गुब्बारा लाया था तो वह मात्र दस सेकेण्ड उनके साथ रहा और तेज आवाज के साथ फूट गया । बहरहाल, गेंद के बाद मेरी कामना थी कि किसी पशु, पक्षी, जीव आदि के प्रतिरूप वाले खिलौने हों तो अच्छा ! दूकानदार मेरा मुंह ताकने लगा ।

      एक बछड़ा कम कुत्ता ज्यादा जैसा कुछ मिला । ले आया । वह पहिये पर चलता है । मिट्टी के खिलौने बेच रहे एक अन्य के पास एक मुर्गा मिला । एक हिरण भी । गुल्लक भी था । जहां मिट्टी के खिलौने थे, वहाँ जमीन से जुड़े हुए पारम्परिक खिलौने थे ।  जहां प्लास्टिक वाले और यांत्रिक खिलौने थे वहाँ की दुनिया पृथक थी । कृत्रिम ।

      मैंने देखा कि पारम्परिक खिलौने जहां सामाजिक मूल्यों की प्रतिष्ठा करने वाले और इको फ्रेंडली थे वहीं कारखाने में बने हुए प्लास्टिक और लोहा-लक्कड़ के बने हुए खिलौने हिंसक और क्रूरता भरने वाले । ऐसे खिलौने, जो ऐश, हिंसा और शोर का भाव भरने वाले हैं । मन में इच्छा, आकांक्षा और कुण्ठा भरने वाले । बाजार हमें ऐसा ही बनाना चाहता है । हम इसकी अंधी दौड़ में जाने अनजाने शामिल हैं ।

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

हास्य का फूहड़ स्वरूप चिंताजनक है!

- पीयूष कान्त राय

  इस बार ऑस्कर अवॉर्ड सेरेमनी में उपजे विवाद ने महिलाओं के सौंदर्यबोध एवं उससे जुड़ी चर्चा के साथ-साथ कॉमेडी के वर्तमान स्वरूप को भी बहसतलब बना दिया है। ऐसा नहीं है कि नारीवाद संबंधी बहसों में यह कोई नया अध्याय है। इस तरह की चर्चा समय समय पर होती रही है और सौन्दर्य के मानकों पर जब तब प्रश्न चिह्न खड़े किए जाते रहे हैं।  लेकिन यह विवाद जो दिन प्रतिदिन नाटकीय स्वरूप ले रहा है उसने ह्यूमर या कॉमेडी के नाम पर भद्देपन के बाजार को फिर से गरमा दिया है। क्रिस रॉक, जो एक जाना माना मसखरा (स्टैंड अप कोमेडियन) हैं और प्रसिद्ध ऑस्कर अवार्ड सेरेमनी में मंच संचालन कर रहे थे, ने उस मंच से जैडा पिंकेट (विल स्मिथ, प्रसिद्ध अभिनेता और किंग रिचर्ड फिल्म के लिए ऑस्कर पुरस्कार विजेता की पत्नी) का मजाक बनाया और वहां मौजूद सभी दर्शक हंसने लगे। क्रिस रॉक ने जैडा पिंकेट के बाल विहीन सिर को लक्षित कर अपशब्द कहे, जिससे आहत होकर विल स्मिथ ने उन्हें मंच पर ही घूंसा मार दिया। ऑस्कर के आयोजकों ने इस अभद्र व्यवहार पर विल स्मिथ को दस वर्ष के लिए ऑस्कर समारोह में आने से प्रतिबंधित कर दिया। इस घटना के बाद कॉमेडी के औचित्य पर प्रश्न चिह्न खड़े होने लगे हैं।

कॉमेडी जनित हास्य दुनिया की परेशानियों से लड़ने का जज्बा प्रदान करता है लेकिन उस कॉमेडी का क्या मतलब रह जाता है जिसके पीछे नफरत या संकुचित भावना के प्रसार की मंशा छिपी हो। दूसरों का मजाक बनाना अब कॉमेडी की नई परिभाषा बन गया है। एक निश्चित एवं सामाजिक मान्यताप्राप्त मापदंड में स्त्रियों को पारंपरिक रूप से देखने की आदत बन चुकी है। इस विषय पर नारीवादी लेखिका सिमोन द बुववॉर ने प्रतीकात्मक व्यंग्योक्ति करते हुए कहा है कि "सबसे पहले तो उसके पंख काट दिए गए, इसके बाद उसे कोसा जाने लगा कि वो उड़ना नहीं जानती है"। क्रिस रॉक ने भी यही किया। उन्हें जैडा पिंकेट का बाल विहीन सिर हास्यास्पद लगा। स्त्री के सौन्दर्य बोध का पारंपरिक रूप से इतर रूप उसे हास्यास्पद क्यों लगा?

जैडा पिंकेट और विल स्मिथ

महान हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन के बारे में कहा जाता है कि वह जब सबसे अधिक खुश होते थे तब वह स्वयं का ही मजाक उड़ाते थे। पर्दे पर अपने आप को ऊल-जुलूल स्थिति में परोसकर उन्होंने मूक फिल्मों में कॉमेडी के उच्चतम आयाम तय किये। 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी लेखक मोलिएर ने अपने साहित्य एवं सशक्त भाषा के माध्यम से कॉमेडी का जो आख्यान किया, वह व्यक्तिकेंद्रित न होकर समाज में फैली कुरीतियों पर कटाक्ष होता था। मोलिएर के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह लुई 14वां का दरबारी था। दरबार के उस मध्यकालीन दौर में अपने गुणवत्तापूर्ण कॉमेडी नाटकों के माध्यम से उसने फ्रांसीसी भाषा को वैश्विक पहचान दिलाई। इसके इतर आज का कॉमेडी व्यक्ति, धर्म या लिंगविशेष पर केंद्रित है। कॉमेडी के इस दौर ने स्त्रियों के विषय में संकुचित धारणा बना दी है। वह कॉमेडियन्स का सहज लक्ष्य हैं।

भारत जैसे देश में इस विधा को निम्न कोटि का बना दिया गया है। स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर भद्दी गालियां परोसी जा रही हैं जो दर्शकों द्वारा खूब सराही भी जा रही हैं। धर्म विशेष खासकर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाना कॉमेडी में प्रगतिवाद का प्रतीक बनता जा रहा है। खास बात यह है कि इस तरह के शो में अच्छी खासी भीड़ जुट रही है। कॉमेडी के नाम पर गाली, अपशब्दों का प्रयोग, व्यक्तिविशेष का अपमान एवं धर्म जैसे बेहद संवेदनशील मुद्दे का मजाक बनाने के खिलाफ कोई सेंसर बोर्ड नहीं है।

जब तक व्यक्ति केंद्रित फूहड़पन को बड़े मंचों से कॉमेडी का नाम दिया जाएगा तथा इसका समर्थन किया जाएगा तब तक इस तरह के ओछे मजाक करके अपना जेब भरने वालों की गाड़ी चलती रहेगी। इस तरह के वाहियात एवं संकुचित मानसिकता वाले कॉमेडियंस का हर माध्यम से बहिष्कार करने की जरूरत है ताकि ऐसे सामाजिक जहर को फैलने से रोका जा सके एवं साफ-सुथरी कॉमेडी को मुख्यधारा में जगह दी जा सके।

पीयूष कान्त राय

(पीयूष कान्त राय मूलतः गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के हैं। उनकी पाँखें अभी जम रही हैं। साहित्य और साहित्येतर पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी में फ्रेंच साहित्य में परास्नातक के विद्यार्थी हैं। NET परीक्षा उत्तीर्ण हैं। वह फ्रेंच भाषा, यात्रा और पर्यटन प्रबन्धन तथा प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व के अध्येता हैं और फ्रेंच-अङ्ग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद सीख रहे हैं। साहित्य और संस्कृति को देखने-समझने की उनकी विशेष दृष्टि है। 

ऑस्कर समारोह के ताज़ा विवाद पर उनकी विशेष टिप्पणी।)

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

मी लार्ड बताएं, शरीफ लोग कहां जाएं ?

-डॉ नीहारिका रश्मि

          सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में 11 फरवरी, 2022 को यह निर्णय दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार उन दंगाइयों को दिया गया वसूली नोटिस वापिस ले; जिन्होंने सी ए ए और एन आर सी आंदोलन के समय सरकारी सम्पत्ति को क्षति पहुंचाई थी । सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को खुद ही निर्णयकर्ता बताकर क्या साबित करने की कोशिश की है ? क्या एक चुनी गई सरकार दंगाइयों को सजा नहीं दे सकती? इस निर्णय से सुप्रीमकोर्ट साबित क्या करना चाहती है? कि लोग सरकार के हर निर्णय पर फिजूल के प्रश्न खड़े करें, पत्थरबाजी करें, पुलिस को मारें, आम जनता को परेशान करें और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार कुछ भी ना करें । दरअसल यह मामला सी ए ए के विरोध में देशभर में एक समुदाय विशेष द्वारा हुए उग्र प्रदर्शनों; जो बहुत हिंसक भी थे, जो मदरसों से या मस्जिदों से संचालित थे, उन्होंने उग्र प्रदर्शन करके जनजीवन को मुश्किल में डाला प्रशासन को मुश्किल में डाला सरकारी संपत्ति को नष्ट किया उनको सबक देने के लिए योगी सरकार ने दंगाइयों से वसूली का नोटिस निकाला जिसमें किसी के ऊपर मनमर्जी से दोष नहीं थोपा गया विभिन्न टी वी चैनल्स द्वारा की गई रिकॉर्डिंग से दोषियों की पहचान की गई । यहां यह याद रहे सरकार रिकॉर्डिंग नहीं कर रही थी, प्राइवेट टीवी चैनल्स रिकॉर्डिंग कर रहे थे। उनकी रिकॉर्डिंग के आउटपुट से दंगाइयों की पहचान करके फिर उन्हें नोटिस दिए गए हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट को गलत क्या लगा ? क्या किसी को यह छूट है कि वह सरकार के हर फैसले का विरोध पत्थरबाजी करके सरकारी संपत्ति को नष्ट करके करें ? सुप्रीम कोर्ट के इरादे क्या हैं ? क्या कहना चाह रहा है सुप्रीम कोर्ट? क्या वह देख नहीं रहा के जब से मोदी जी की सरकार आई है कुछ लोगों को हर अच्छी बुरी बात पर मिर्ची लग जाती है और वह सीधे दंगे पर उतर आते हैं । यदि किसी सरकार की किसीनीति से विरोध होता है तो विरोध करने के लोकतांत्रिक तरीके होते हैं। आप उन तरीकों से विरोध करिये, कोर्ट में अपील करिये, पानी सिर से ऊपर हो जाये तब प्रदर्शन किये जा सकते हैं। ऐसा देखा गया कि CAA के खिलाफ प्रदर्शन में तो संवैधानिक पद पर बैठे प्रधानमंत्री मोदी को छोटे छोटे मासूम बच्चों से भी गालियां दिलवाई गईं, दंगों की न केवल तैयारी की गई बल्कि दंगे किये गए, सड़कें महीनों बाधित रखी गईं और दुहाई सभी प्रदर्शनकारी संविधान की दे रहे थे । भारत सरकार चुपचाप तमाशा देख रही थी, सुप्रीम कोर्ट चुपचाप तमाशा देख रहा था। जी हाँ! वह सुप्रीम कोर्ट, जो कुख्यात देश विरोधी आतंकवादी के लिए आधी रात को भी दुकान खोल कर बैठ जाता है, सड़ी सड़ी बातों पर खुद संज्ञान ले लेता है उसे दिल्ली में ही सिर पर चढ़े ये प्रदर्शनकारी नहीं दिखे, पूरा देश, देश के पूरे समर्थ लोग बंधक से बने बैठे थे ।

          सवाल यह है कि कुछ लोगों को इस देश में क्या परेशानी है? आपको मोदी पसंद नहीं तो आपने इंदिरा गांधी को कितना फेवर किया? उन्होंने तो प्यार से कहा था, दो या तीन बस। इस कौम ने उनकी बात भी नहीं मानी एक के दस और बीस पैदा करते रहे और अपनी गरीबी और बेरोजगारी का ठीकरा सरकारों पर थोपने लगे।

          कोर्ट होते हैं अपराधियों को सज़ा देने के लिए न कि उन्हें छुट्टे सांड की तरह घूमने की आज़ादी देने के लिए (इस तरह की शब्दावली उपयोग करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ, पर अब पानी सिर के ऊपर हो गया है)। इस तरह की प्रतिक्रिया करके कुछ समुदाय साबित क्या करना चाहते हैं? हिज़ाब जैसे फिजूल के मुद्दों को तूल देकर पूरे देश मे शहर दर शहर प्रदर्शन करना क्या है? यह पूरे विश्व को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि ये भारत मे बहुत परेशान हैं, इनके अधिकारों को कुचला जा रहा है इनको दबाया जा रहा है? स्कूल ड्रेस के मुद्दे को धार्मिक पहनावे पर रोक का रंग दे दिया गया है। जबकि वह लड़की अपने साथ चार प्रोफेशनल कैमरामैन ले गई थी, जो उसके हर मूवमेंट को कुशलता से शूट कर रहे थे। इस मुद्दे पर पूरे देश में इतना तनाव बना दिया गया कि UP चुनाव में वोट डालने के पहले भी महिलाओं के हिज़ाब उतरवाकर वोटर कार्ड से चेहरा मिलान नहीं किया गया। कोई व्यक्ति अपनी पहचान छुपाकर अलग अलग नामो से कितने ही वोट डाल सकता है, क्या यही लोकतंत्र है? क्या यह संवैधानिक स्थिति है? तो फिर संविधान की इज्जत कौन कर रहा है कौन नहीं, यह स्पष्ट है । यह मीठा मीठा गप कड़वा कड़वा थू वाली बात है। दरअसल संविधान और देश के लिए इज़्ज़त इन लोगों के मन मे है ही नहीं । ये सिर्फ अधिकारों के लिए संविधान की दुहाई देते हैं । कर्तव्यों के पालन की बात इनके धर्म में दूर दूर तक नहीं है । कानपुर से ऐसी खबर भी आ गई कि वोटिंग से पहले कुछ महिलाओं ने हिज़ाब न उतारने के लिए हंगामा किया । क्या ये महिलाएं बैंक खातों में हिज़ाब वाली फोटो लगाती हैं ,बैंक लोन के खातों में हिज़ाब वाली फोटो होती है?

          सुप्रीम का अर्थ होता है सबके ऊपर। सुप्रीम कोर्ट कैसे इस तरह के लोक लुभावन फैसले ले सकती है । कोर्ट का काम न्याय करना है न कि अन्याय करना । चुनी हुई योगी सरकार के प्रशासनिक फैसले लेने के अधिकार को पलटना अर्थात कोर्ट जन सामान्य को यह संदेश देना चाह रही है कि असहमति के नाम पर कोई भी जाति कोई भी कम्युनिटी पुलिस को सेना के जवानों को घायल कर सकती है, मार सकती है, बसें जला सकती है, सामान्य जनता को जान से मार सकती है, कोई भी अपराध कर सकती है, सड़क रोक सकती है और सरकार काबू न करे तो भी कोर्ट फटकारेगी और काबू करे ,आगे भविष्य के लिए सबक देना चाहे तो अपराधी कोर्ट चले जाएँगे। सुप्रीम कोर्ट भी चले जायेंगे, सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम वकीलों की लाखों में फीस दे देंगे (इन वकीलों और अपराधियों के बैंक खातों के ट्रांजिक्शन की बारीकी से जांच होनी चाहिए) लेकिन दंड राशि नहीं भरेंगे । चूंकि अपराधी अपने को गलत नहीं मान रहे तो कोर्ट ने पुचकार कर कहा कोई बात नहीं जुर्माना मत भरो । टैक्स भरने के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करने वाला मध्यम वर्ग तो है ना। उसको टैक्स पर टैक्स, सब टैक्स (उपकर ) लगाकर डीजल पेट्रोल महंगा करके हम देश का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाये रखेंगे, मुफ्त में सुविधाएं भी सबको देंगे; तुम जैसे देश विरोधी कौम को भी दस बीस बच्चे पैदा करने वाले को भी फिकर नॉट! सरकारी खर्च तो निकल ही आएंगे। येन केन प्रकारेण तुम तो एश करो । कोर्ट तो जनसामान्य को डराने के लिए हैं। कोर्ट जाने से पहले उसकी रूह काँप जाए कि बार बार पेशी पर जाने के खर्चे कहां से लाएगा? वकीलों की मोटी मोटी फीस कहाँ से देगा? वाह! मेरा भारत वाकई महान।

          सुप्रीम कोर्ट को तो ऐसे उपद्रवियों को सजा देनी चाहिए जो बेवजह सरकार के हर कार्य को कठघरे में खड़ा करते है बल्कि हिंसक प्रदर्शन करके शहर को देश को प्रदेश को बंधक बनाते हैं। कोई भी पार्टी इनसे कड़ाई से नहीं निपटेगी क्योंकि उसे वोटों का डर है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को ही जनसंख्या नियन्त्रण और गैरकानूनी गतिविधियों पर लगाम लगानी चाहिए । ये कब तक इस तरह की हरकतें करके देश के विकास में बाधा डालेंगे? ऐसा करने की छूट किसी को नहीं होनी चाहिए । 21 फरवरी, 22 के दैनिक भास्कर में गुजरात विशेष कोर्ट का 7000 पन्नों का फैसला आया कि आतंकवादी आदमखोर बाघ की तरह होते हैं जो मासूम लोगों का शिकार करते हैं उन्हें समाज मे खुला नहीं छोड़ा जाना चाहिए । ठीक उसी प्रकार गलत सोच वाले लोग भी देश समाज के लिए खतरनाक होते हैं जो दूसरों को भड़काकर देश में अशांति पैदा करते हैं । न्याय कौमनिरपेक्ष होता है, व्यक्ति निरपेक्ष होता है। वह किसी कौम विशेष के लिए अपनी परिभाषा नहीं बदल लेता माय लार्ड!!!!!!

 

(डॉ नीहारिका रश्मि ने हमें यह लेख भेजा और देश में चल रही विभिन्न घटनाओं पर अपना आक्रोश व्यक्त किया। उनका यह लेख इसी क्रोध और आक्रोश की सहज अभिव्यक्ति है। कथावार्ता की टीम ने निश्चित किया है कि वह अपने ब्लॉग/वैबसाइट पर राजनीतिक लेखों को भी प्रकाशित करेगी। उसी के अनुक्रम में यह आलेख। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी। आप हमारे यू ट्यूब चैनल कथावार्ता के लिए भी साहित्यिक रचनाएँ/पाठ आदि प्रेषित कर सकते हैं। - संपादक)


डॉ नीहारिका रश्मि

डॉ नीहारिका रश्मि

1986 से प्रकाशित और आकाशवाणी (रेडियो) पर प्रसारित हो रही विख्यात लेखिका। स्टोरीज, कविता, लेख। नाटक स्क्रिप्ट राइटिंग में वर्कशॉप with मनोहर श्याम जोशी, अरुण कौल, मुकेश शर्मा (तत्कालीन चिल्ड्रन फ़िल्म विकास निगम अध्यक्ष), दो लेखों के कारण मध्य प्रदेश की सरकारों का फैसला बदला, एक कहानी संग्रह प्रकाशित, कविता संग्रह व लेख संग्रह प्रकाशित होने वाला है। अब तक कई डॉक्यूमेंट्रीज बनाईं जो टूरिजम बायोग्राफिकल ,सोशल अवेयरनेस एंड ट्रैफिक पर हैं ।

Kabirabazzar.com रन किया, 65 पोएट्स वीडियो रिकॉर्ड किये जिनमे स्व विट्ठल भाई पटेल (झूठ बोले कौआ काटे) भी हैं ।

फिल्में- नाभिपट्टनम नेमावर, पानी देवता, अलख निरंजन, जुआ महापर्व, ग्वालियर ग्लोरी, विट्ठल भाई एक बहु आयामी व्यक्तित्व आदि । Cms फ़िल्म फेस्टिवल में सहभागिता ।

संपर्क- 

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सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

आपने जब देखा, तब की संख्या.