रविवार, 6 जून 2021

'मनु'स्मृति

सम्यक् शर्मा

सम्यक शर्मा कथावार्ता पर इससे पहले दिशाभेद के एक दो और तीन सुललित निबंधों के साथ पदार्पण कर चुके हैं। दिशाभेद में उन्होंने अपने चिन्तन और शब्दक्रीड़ा से अपने इरादे स्पष्ट कर दिये थे। वह शब्दों से खेलते हैं और उनका बेहतरीन प्रयोग करते हैं। क्रिकेट उनका दूसरा प्यार है। पहले प्यार के बारे में हम बाद में बताएँगे।

'मनु'स्मृति में कहानी हैबचपन की मधुर स्मृतियाँ हैं और शब्दों के साथ गेंदबाजी-बल्लेबाजी और कमेंट्री है। दो खण्ड में है। सम्यक के निबंधकार से कहानीकार की यात्रा का आनन्द लें।  - सम्पादक

 

भाग -१ 'चीतोदय'

 

ज्ञापन नुमा : इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनाएँ वास्तविक हैं, जिनका हमसे पूरा-पूरा सम्बन्ध है। मने यह सत्य घटनाओं पर आधारित है। भई आधारित क्या, सत्य ही है। अतः मुलाहिज़ा फ़रमाएँ...

डाबर आँवला चुपड़कर बाल काढ़ ही रहे थे मनु कि बाहर चौखट पर खड़ी मम्मी ने पुकारा "सज लिया? कि अभी रह गयी है नैक और सजावट? जल्दी चल, नहीं तो अकेले ही चली जाऊँगी।" सायं साढ़े पाँच हो रहे थे, हाट के लिए निकलना थाफल, शाक आदि के क्रय हेतु। मम्मी के हड़काते ही त्वरित बाल काढ़कर और पॉण्ड्स का पॉडर (आगरे में बॉडी टैल्क कोई नहीं कहता) छिड़ककर सुगन्धित व सँवरे पाँच वर्षीय मनु चल दिए हाट को। अल्पवयस्क एवं शिष्ट थे इसलिए मम्मी की अंगुली पकड़कर ही सैर किया करते थे।

          सैयद तिराहे से अंदर ढलान की ओर मुड़ते ही दुकानें आरम्भ होती थीं। ढलान पर थोड़ा सा उतरते ही एक फल वाले की ठेल पर पहुँचे। मम्मी की क्रय-क्रिया (पर्चेज़िंग) आरम्भ हुई और मनु की पर्यवेक्षण-क्रिया (ऑब्सर्वेशन)। ठेल के सामने ही लुहार की दुकान थी (वर्कशॉप भी कोई नहीं कहता), जहाँ वह लुहार हथौड़े से पीट-पीटकर किसी छड़ को नरक के समान ऋजु (स्ट्रेट ऐज़ हैल!) किए दे रहा था। हथौड़े की ऐसा अद्भुत क्षमता देख मनु वशीभूत हो गए, विचारने लगे, "यदि मैंने इस हथौड़े को बल्ला बनाकर बल्लेबाज़ी की, तो क्या-क्या कर सकता हूँ।" हास्यास्पद यह कि माननीय मुंगेरीलाल ने इससे पहले कभी गली-क्रिकेट भी नहीं खेली थी, किन्तु कल्पना वानखेड़े पर दूधिया प्रकाश में एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय खेलने से नीचे की नहीं करते थे। खेलते भी कैसे, गली होती आस-पास तब न, घर के आगे तो दिल्ली से कलकत्ता जोड़ने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 2 बिछा दिया था प्रशासन ने। रक्तरंजित उन्नतिशील (ब्लडी प्रोग्रेसिव!)!

          अस्तु! ...दर्शकों से खचाखच भरे वानखेड़े मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध बल्लेबाजी करने उतर चुके हैं हथौड़ापाणि मनु। हाई कार्बन स्टील से निर्मित 10 से.मी. व्यास का वह लौह-बल्ला भारत को अंतिम गेंद पर जीतने हेतु चार रन दिलाने में अति सक्षम है। बस कनेक्ट हो जाए एक बार। स्टांस लेते समय साढ़े तीन फुटिये मनु चेते कि यदि यॉर्कर आ गई तो यह डेढ़ फुटिया हत्था धोखा ही दे जाएगा। अतएव तुरंत ड्रैसिंग रूम की ओर संकेत कर उन्होंने दो फुटिया हत्था मँगवा लिया। आप सोचिये कि मंगूस बल्ले की परिकल्पना के भी एक दशक पूर्व मनु क्या-क्या कल्पित कर लेते थे! मनु मनु नहीं थे, वे स्वयं (के) कल्पतरु थे। वे स्वयं से याचना कर जो माँगते थे, उसे तत्काल पा लेते थे, कल्पनाओं में। जैसे वानखेड़े पर पदार्पण, हथौड़ा, यॉर्करानुकूल लंबा हत्था इत्यादि-इत्यादि।

          बहरहालयुवा ब्रैट ली अंतिम गेंद फेंकने हेतु बढ़ चले तथा सुन्दर एक्शन से अंदर की ओर रिवर्स होती यॉर्कर फेंकी। मनु ने प्रकाश की गति से गेंद की लाइन एन्ड लेंथ परखी व ध्वनि की गति से डेढ़ कदम आगे बढ़ाए। अब वह तथाप्रक्षिप्त यॉर्कर एक अक्षम लो फ़ुल-टॉस बन मनु के चरणों में थी। गेंद चरण-कमलों को स्पर्श करती इससे पहले ही मनु की गदा ने उस पर प्रहार करके उसे गऊ-कॉर्नर की दिशा में भेजा। बलाघात इतना क्रूर था कि वह एक छक्के में तो प्रतिफलित हुआ ही, साथ ही उसने गेंद को अरब सागर में भेज उसे गेंद-योनि से मुक्त करा दिया। अभागन पचास ओवरों से कष्ट ही पा रही थी! कल्पनाओं में ही सही मनु ने जो चमत्कार किया वह भारत में अनगिनत पुरोधाओं के होते हुए भी अभूतपूर्व था। सचिन-फचिन जो सामान्यतः 'मात्र' डेढ़ किलो का ही बल्ला उठा पाते थे, वे क्या थे मनु के आगे, जिन्होंने साढ़े चार किलो के हथौड़े से छक्का जड़ ऑस्ट्रेलिया को नेस्तनाबूत कर दिया? (वह बात और है कि मनु को यह भी ज्ञात न था कि "साढ़े-चार" कितने होते हैं या "किलो" क्या होता है?)

          ख़ैर जीत सुनिश्चित होते ही दर्शकों में उन्माद था और चहुँ दिशाओं में चीत्कार। मनु भी मन में शौर्य व आँखों में गौरव लिए हथौड़ा हवा में लहराकर दर्शकों का अभिवादन कर रहे थे। मनु अब मनु नहीं रहे थे, वे चीता हो चले थे। जी हाँ, चीते का उदय अर्थात् चीतोदय हो चुका था। चीता ज्यों ही दूसरे छोर पर स्तब्ध खड़े अपने साथी बल्लेबाज़ की ओर बढ़ा, त्यों ही उसके कंधे पर मम्मी का हाथ आया और कानों में उनका स्वर " चल बेटा आगे, ले लिए फल।"

          आगे के घटनाक्रम के लिए बने रहें, हाट अभी शेष है।

 

हथौड़े के आगे जहाँ और भी है,

अभी चीते के इम्तहाँ और भी हैं।

                                                                                                                   जारी......

 

सम्यक शर्मा (Samyak Sharma)


(
सम्यक शर्मा  पर क्लिक करने पर ट्विटर पर पाये जाते हैं। उन्होंने अपने बारे में लिख भेजा है- ज्यों का त्यों उतार रहा हूँ- "सम्यक् शर्मा। आगरावासी। ब्रजभाषी। शहरी एवं ग्रामीण के बीच का हलुआ। दसवीं-बारहवीं आगरा से ही करी। यांत्रिक अभियांत्रिकी में बी.टेक. ग़ाज़ियाबाद के अजय कुमार गर्ग इंजीनियरिंग कॉलेज से करी। क्यों ही करी! क्रिकेट का आदी। फ़िज़िक्स और हिंदी से विशेष प्रेम। गणित से लगाव। बस।" - सम्पादक)

शनिवार, 29 मई 2021

पतंजलि का उत्पाद - मुल्तानी मिट्टी साबुन

कोरोना महामारी के भीषण दिनों में पतंजलि योगपीठ के बाबा रामदेव, एलोपैथ और आयुर्वेद के बहाने आईएमए (इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन) और कुछ बौद्धिक लोगों के निशाने पर हैं। महामारी के नियंत्रण में एलोपैथ ने सराहनीय भूमिका निभाई है, तथापि उसकी कार्यशैली और अल्टप्पू तरीके ने बहुत संदेह का वातावरण और आशंकाओं का घटाटोप बनाया है।

बाबा रामदेव और उनके योगपीठ ने आयुर्वेद, योगासन और जनता की जीवन शैली में अभूतपूर्व जगह बनाई है। उनका व्यापार भी बहुत तीव्र गति से फला-फूला है। यह सब बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, एलोपैथ के ठेकेदारों को नागवार गुजरा है। परिणामस्वरूप द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पतंजलि के ब्रांड तले एक साबुन पर हमने कभी अपना अनुभव साझा किया था, जो पठनीय है।

अब पतंजलि के उत्पादों में वह गुणवत्ता नहीं रही और कुछ हमारी अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं, किंतु चार वर्ष पहले तो यह नॉस्टेल्जिक लगता था।

पढ़िए!

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव ने एक साबुन उतारा है, नहाने के लिए। मुल्तानी मिट्टी के नाम/रूप से। महंगा है। 35 कीमत है। आज तीसरे दिन इस्तेमाल किया। 'मन पवन की नौका' (यह पद आचार्य कुबेरनाथ राय ने अपने एक निबंध संग्रह के लिए प्रयुक्त किया है। इसी नाम से उनका एक निबंध भी है) पर आरूढ़ हुआ तो यह साबुन लेकर गया गंगा किनारे, जल्लापुर गाजीपुर जहाँ हम यदा कदा नहाने जाया करते थे। वहां गंगा किनारे की मिट्टी में लोटते थे, उसी को साबुन/उबटन की तरह प्रयोग में लाते थे। किसी बाजारू साबुन की जरूरत ही न पड़ती थी। यह साबुन कुछ वैसा ही है। कुछ कुछ वैसा जैसा हम पीठ खुझलाने या एड़ियाँ घिसने के लिए झावाँ का इस्तेमाल करते हैं। क्या सुखद अहसास है। आपका मन करता रहेगा कि साबुन घिसते रहें घिसते रहें। कुछ वैसा सुख जैसा हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अनामदास का पोथा में पीठ घिसने का वर्णन किया है।

फोम और शॉवर जेल के इस जमाने में ऐसी स्पृहा पालना वैसे तो गवाँर होना/दिखना है लेकिन इस सुख को पा लेना अपने आप में एक नेमत है। जिनका जीवन शहरों में रहते रहते बहुत सॉफिस्टिकेटेड हो गया है, त्वचा नरम मुलायम हो गयी है और तनिक खरोंच भी जिनको लालिमा से भर देती है उनको यह सुख शायद ही मिले लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसी नाजुकी बस कहने की होती है।

तो लाइए बाबा रामदेव के पतंजलि उत्पाद श्रृंखला की यह अद्भुत पेशकश, जो आपको मन पवन की नौका पर बिठाकर अपने ग्रामीण बचपन में ले जायेगी।

महीनों न नहाने वाले 'बामपंथी' साथियों के लिए यह और शानदार अनुभव देगा।




(#Kathavarta, #कथावार्ता, #बाबा रामदेव, Ramakant Roy, Rama Kant Roy, रमाकांत राय,)

सोमवार, 24 मई 2021

घनानन्द की तेरह कविताएं

 

निसि द्यौस खरी उर माँझ अरीछबि रंगभरी मुरि चाहनि की।

तकि मोरनि त्यों चख ढोरि रहैंढरिगो हिय ढोरनि बाहनि की। 

चट दै कटि पै बट प्रान गएगति सों मति में अवगाहनि की।

घन आनंद जान लख्यो जब तेंजक लागियै मोहि कराहनि की।।

 

 

कान्ह परे बहुतायत मेंइकलैन की वेदन जानौ कहा तुम ?

हौ मनमोहनमोहे कहूँ नबिथा बिमनैन की मानौ कहा तुम ?

बौरे बियोगिन्ह आप सुजान ह्वैहाय कछू उर आनौ कहा तुम ?

आरतिवंत पपीहन कोघन आनंद जू ! पहिचानौ कहा तुम ?

 

 

मंतर में उर अंतर मैं सुलहै नहिं क्यों सुखरासि निरंतर,

दंतर हैं गहे आँगुरी ते जो वियोग के तेह तचे पर तंतर। 

जो दुख देखति हौं घन आनंद रैनि-दिना बिन जान सुतंतर,

जानैं बेई दिनराति बखाने ते जाय परै दिनराति कौ अंतर।

 

 

सावन आवन हेरि सखीमनभावन आवन चोप विसेखी।

छाए कहूँ घनआनंद जानसम्हारि की ठौर लै भूलनि लेखी।

बूंदैं लगैसब अंग दगैंउलटी गति आपने पापनि पेखी।

पौन सों जागत आगि सुनी हीपै पानी सों लागत आँखिन देखी॥

 

निसि द्यौस खरी उर माँझ अरीछबि रंगभरी मुरि चाहनि की।

तकि मोरनि त्यों चख ढोरि रहैंढरिगो हिय ढोरनि बाहनि की।

चट दै कटि पै बट प्रान गएगति सों मति में अवगाहनि की।

घनआनंद जान लख्यो जब तेंजक लागियै मोहि कराहनि की।।

 

 

वहै मुसक्यानिवहै मृदु बतरानिवहै

लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।

वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,

वहै हँसि दैनहियरा तें न टरति है।

वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,

वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।

आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की

सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।।

 

 

बहुत दिनान की अवधि-आस-पास परे,

खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान कौ।

कहि-कहि आवन सँदेसो मनभावन को,

गहि-गहि राखत हैं दै-दै सनमान कौ।

झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास ह्वै कै,

अब न घिरत घन आनंद निदान कौ।

अधर लगै हैं आनि करि कै पयान प्रान,

चाहत चलन ये सँदेसो लै सुजान कौ।।

 

 

छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद

तृषित चषनि लालकबधौ दिखाय हौ।

चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही

मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।

लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्यायनेह

भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।

बिरह जरत जिय जानिआनि प्रान प्यारे,

कृपानिधिआनंद को धन बरसाय हौ।।

 

 

घन आनंद जीवन मूल सुजान कीकौंधनि हू न कहूँ दरसैं।

सु न जानिये धौं कित छाय रहेदृग चातक प्रान तपै तरसैं।

बिन पावस तो इन्हें थ्यावस हो नसु क्यों करि ये अब सो परसैं।

बदरा बरसै रितु में घिरि कैनितहीं अँखियाँ उघरी बरसैं॥

 

१०

 

अति सूधो सनेह को मारग हैजहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।

तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौझिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं।

घन आनंद प्यारे सुजान सुनौयहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।

तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो कहौमन लेहु पै देहू छटाँक नहीं।।

 

११

 

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति।

साँझ तें भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।

जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति।

मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।।

 

१२

 

प्रीतम सुजान मेरे हित के निधान कहौ

कैसे रहै प्रान जौ अनखि अरसायहौ।

तुम तौ उदार दीन हीन आनि परयौ द्वार

सुनियै पुकार याहि कौ लौं तरसायहौ।

चातिक है रावरो अनोखो मोह आवरो

सुजान रूप-बावरोबदन दरसायहौ।

बिरह नसायदया हिय मैं बसायआय

हाय ! कब आनंद को घन बरसायहौ।।

 

१३

 

मीत सुजान अनीत करौ जिनहाहा न हूजियै मोहि अमोही!

डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही!

एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान-बटोही!

हौं घनआनँद जीवनमूल दई कित प्यासनि मारत मोही !!

 

घनानंद

रविवार, 2 मई 2021

ईवीएम में गड़बड़ी कैसे और कब

 -डॉ रमाकान्त राय

हर चुनाव से पहले और बाद में यह प्रवाद चर्चा में आ ही जाता है कि ईवीएम में गड़बड़ी की जाती है अथवा की जा सकती है। यद्यपि ईवीएम से चुनाव प्रक्रिया बहुत पारदर्शी और निष्पक्ष होती है तथापि जब तब यह चर्चा ज़ोर पकड़ती है कि ईवीएम हैक हो गयी है। चुनाव प्रक्रिया के क्रम में कुछ ऐसे चरणों के बारे में जानना इस चर्चा में एक प्रभावी हस्तक्षेप हो सकता है। अगर ईवीएममें गड़बड़ी करना हो तो कितने स्तरों पर “मैनेज” करना पड़ेगा! यह एक जटिल प्रश्न बन जाता है। फिर भी यह सोचें कि इसमें गड़बड़ी की गयी तो एक ऐसा मौका ढूँढना पड़ेगा कि कब और कैसे यह हो सकेगा।

#EVM

   ईवीएम में गड़बड़ी करने के लिए सबसे पहले तो जनपद के जिलाधिकारी को अपने विश्वास में लेना पड़ेगा। यदि जिलाधिकारी, जो जिला निर्वाचन अधिकारी होता है, चाह ले कि ईवीएम में गड़बड़ी करना है तो उसे क्या क्या करना पड़ेगा? आइये, इसे समझने का प्रयास करते हैं।

ईवीएम में गड़बड़ी करने के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी को जिले भर की मशीनों को "सेट" करना पड़ेगा। अब ईवीएम में विविपैट भी जुड़ गया है। यह उपकरण ईवीएम से जुड़ा रहता है और प्रत्येक मत के बाद एक पर्ची उगलता है। इस पर्ची का मिलान अंतिम गणना से कर सकते हैं। तो इस तरह तीनों उपकरणों को “सेट” लिए जिला निर्वाचन अधिकारी को सभी तकनीकी समूहों के ईवीएम सेट करनेवाले लोगों को राजी करना पड़ेगा। कहना न होगा कि यह बहुत सूक्ष्म स्तरीय तैयारी से संभव हो सकेगा। जो अगले स्तर पर ही निष्क्रिय हो जाएगा। जिला निर्वाचन अधिकारी रिटर्निंग अधिकारी को इसके लिए राजी करेगा, जो उसी का आदमी हो। रिटर्निंग अधिकारी, सहायक रिटर्निंग अधिकारी को विश्वास में लेगा। जिलाधिकारी को सीडीओ, एसपी, डीवाईएसपी, बीएसए, डीआईओएस आदि सभी अधिकारियों को इसके लिए मनाना पड़ेगा। यह सभी अधिकारी उस चुनाव प्रक्रिया के कोर टीम का अंग रहते हैं।

मान लीजिए कि यह सब सेट हो गए। सेट करके मनचाही मशीनों का वितरण कर दिया गया तो पीठासीन अधिकारी के हाथ जो मशीन आई है, उसे वह जब चाहे तब चेक करने के लिए स्वतंत्र रहता है। इससे पहले, लगभग 40 बूथ पर एक जोनल मजिस्ट्रेट की नियुक्ति होती है, जिसके अंतर्गत औसतन 5 सेक्टर मजिस्ट्रेट रहते हैं। चुनाव के दिन इन मजिस्ट्रेट साहिबान  को क्षेत्र में रहना रहता है। इस प्रक्रिया में सेक्टर मजिस्ट्रेट हर दो घंटे पर जोनल को सूचित करते रहते हैं। यह जोनल मजिस्ट्रेट क्लास वन गजटेड अधिकारी रहता है। जोनल मजिस्ट्रेट के नीचे सेक्टर मजिस्ट्रेट रहता है।वह भी उच्च पदाधिकारी रहता है। उसे वाहन मिलता है, उसकी सुरक्षा में एक दारोगा अलग वाहन में रहता है। दारोगा चार पांच पुलिस कर्मी के साथ रहता है। सेक्टर मजिस्ट्रेट के साथ दो पुलिसकर्मी या/और दो होमगार्ड रहते हैं। वह औसतन 10 बूथ का प्रभारी रहता है।

          सेक्टर मजिस्ट्रेट पीठासीन अधिकारी, प्रथम मतदान अधिकारी, द्वितीय मतदान अधिकारी और तृतीय मतदान अधिकारी के सीधे संपर्क में रहता है। इस तरह वह औसतन 40 मतदान कर्मियों से सीधे जुड़ा रहता है। चुनाव वाले दिन से ठीक पहले पोलिंग पार्टी के रवाना होने से लेकर उन्हें पहुंचाने तक सेक्टर मजिस्ट्रेट क्षेत्र में रहता है। शाम को वह सभी बूथ का निरीक्षण करता है और सबको पारिश्रमिक उपलब्ध कराता है। सुबह मतदान शुरू होने से पूर्व उसे एक बूथ पर रहना होता है। आशय यह है कि वह सभी बूथ का सीधा प्रभारी रहता है। प्रातःकाल मतदान शुरू होने से पूर्व सेक्टर मजिस्ट्रेट और जोनल मजिस्ट्रेट एक एक बूथ पर उपस्थित रहते हैं।

          मतदान प्रारंभ होने से पूर्व पीठासीन अधिकारी एजेंट नियुक्त करते हैं। यह एजेंट प्रत्याशी द्वारा अधिकृत होते हैं। उनकी उपस्थिति में मॉक पोल होता है। मॉक पोल एक विशिष्ट चरण है। इसकी चर्चा पीठासीन अधिकारी को अपनी डायरी में करना पड़ता है। मॉक पोल में सभी प्रत्याशियों के नाम के आगे का बटन दबाकर लगभग 50 मत डाले जाते हैं। मशीन बंद किया जाता है। वहीं एजेंट्स के समक्ष गणना की जाती है और दिखाया जाता है कि जिस प्रत्याशी को जितना मत दिया गया, उतना ही परिणाम में प्रदर्शित हो रहा है। सही हो तो एजेंट्स सम्मति देते हैं। गलत होने की बात बहुत कम बार दिखती है।एजेंट्स जब सम्मति देते हैं तो ईवीएम का डाटा शून्य किया जाता है। एजेंट्स को यह दिखाया जाता है। एक पर्ची इस तरह लगाकर सील की जाती है कि कोई उसे हटाने का प्रयास करे तो वह फट जाए। इस पर्ची पर एजेंट्स और पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर रहते हैं। अब मतदान शुरू होता है। मतदान शुरू होने से पहले मशीन की स्थिति सबसे सामने स्पष्ट की जाती है। दिनभर पीठासीन अधिकारी बीस तरह के आगंतुकों को बताता रहता है कि इतना वोट पड़ गया। एजेंट्स वहीं नजर गड़ाए रहते हैं। डाले गए वोट और मशीन में दिखा रहे वोट बराबर हैं अथवा नहीं, इसकी जांच करते रहना पड़ता है। कोई भी आकर देख सकता है। एजेंट्स अलग नाक में दम किए रहते हैं। हर बूथ पर सुरक्षा कर्मी रहते ही हैं। उन्हें भी गड़बड़ी करने के लिए अपने पाले में करना पड़ेगा। पत्रकार, मीडियाकर्मी, पर्यवेक्षक आदि आदि का चक्रमण चलता रहता है। मतदान पूर्ण होने पर फिर एक पर्ची, एजेंट्स के हस्ताक्षर वाली सील की जाती है। अब ईवीएम बक्से में बंद होकर जमा हो गई। जमा करते समय पीठासीन अधिकारी अपने हस्ताक्षर से युक्त एक प्रमाणपत्र जारी करता है कि उस बूथ पर इतने मत डाले गए और मशीन इतने समय पर क्लोज़ की गयी।

          जहां ईवीएम जमा होती है, वह स्ट्रॉन्ग रूम कहा जाता है। जमा होने के बाद वह घर भी सील कर दिया जाता है। कड़ा पहरा लगा दिया जाता है। उस कक्ष को बीच में नहीं खोला जा सकता। खोलने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। अगर टेम्पर करने के लिए खोला गया तो सुरक्षाकर्मियों को जोड़ना होगा। मतगणना के दिन स्ट्रॉन्ग रूम को वैसा ही सीलबंद मिलना चाहिए, जैसा ईवीएम रखते समय था। जब मशीन गणना के लिए लाई जाती है, तो मतगणना अधिकारी एजेंट को दिखाता है कि डिब्बा सीलबंद है। वह सील हटाकर पर्ची निकालता है और दिखाता है। एजेंट देखता है कि पर्ची पर उसका ही हस्ताक्षर है। मशीन में वही समय दर्ज है, जो उसके समक्ष बंद करते समय बताया गया था।

          मतदान समाप्त होने पर हर एजेंट को वह संख्या उपलब्ध कराई जाती है, जितना मतपेटी में रहती है। एजेंट मिलान करता है कि मतगणना शुरू होने से पहले ईवीएम में उतने ही मत प्रदर्शित हो रहे हैं। तब मतगणना शुरू होती है। इस क्रम में मतगणना अधिकारी, जो पृथक व्यक्ति होता है, कागज मिलाता है।

          इस प्रक्रिया में अन्य कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष व्यक्ति जुड़े रहते हैं। यह प्रक्रिया बहुस्तरीय होती है और इसमें कहीं भी चूक, त्रुटि अथवा गड़बड़ी की जाए तो उसी दम उद्घाटित हो जाती है। सबको साध लेने पर भी सील, पर्ची आदि के प्रमाण नहीं बदले जा सकते। यह व्यवस्था फुलप्रूफ है। अगर कोई इतनी व्यवस्था के बाद भी अड़ियल रवैया अपनाता है तो उससे पूछा जाना चाहिए कि ईवीएम मशीन में गड़बड़ी किस चरण में हो सकती है! गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले इस प्रश्न पर बगलें झांकते हैं। और तब भी कोई नहीं मानता तो उसे कहिए कि आप पप्पू हैं!



(#evm, ईवीएम, ईवीएम में गड़बड़ी कैसे और कब , कथावार्ता, kathavarta, कथावार्ता1, kathavarta1 रमाकान्त राय,)



असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

इटावा, उत्तर प्रदेश

पिन 206001

मोबाइल नंबर 983895242- royramakantrk@gmail.com

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

मुल्ला नसीरुद्दीन की दो कहानियाँ

१.

 

मुल्ला भीख मांगने गया। एक सम्पन्न घर देखकर उसने गुहार लगाई। घर में बहू थी। उसने मुल्ला को भीख देने से इन्कार कर दिया और भगा दिया। मुल्ला निराश होकर अपना मुँह और झोला लटकाए चल पड़ाकुछ दूर जाकर ही उस घर की मालकिन, सास आते हुए दिखी। उसने पूछा- क्या हुआ मुल्ला? 

मुल्ला बोला- तुम्हारी बहू ने भीख भी नहीं दी। 

सास ने कहा- अच्छा! उसकी यह मजाल। घर चलो। 

मुल्ला लौटा। घर आकर सास ने कुर्सी निकाली। कुछ पल बैठी रही। फिर दरवाजे पर जाकर मुल्ला से कहा- जाओ, भीख नहीं मिलेगी? मेरे रहते बहू कौन होती है मना करने वाली।

 

२.

 

मुल्ला एकबार अपने दोस्त के घर गया। दोस्त ने उसे शराब परोसी। मुल्ला ने कहा कि मैं शराब नहीं पीऊँगा। 

एक तो मैं मुसलमान हूँ और हमलोगों में शराब हराम है।

दूसरी बात, मैंने अपनी मरती बीवी को वादा किया था कि कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा।

और तीसरी बात यह कि मैं घर से पीकर आया हूँ

 

-कथावार्ता की प्रस्तुति!


(मुल्ला नसीरुद्दीन, mulla nasiruddin, kathavarta, kathavarta1, डॉ रमाकान्त राय,  ramakant roy)

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

घुमक्कड़ी के शीर्ष पुरुष : राहुल सांकृत्यायन

-डॉ रमाकान्त राय

मेरे स्कूल के दिनों में ही यह धारणा बनी थी और खूब आतंकित करती थी कि राहुल सांकृत्यायन संस्कृत, अङ्ग्रेज़ी, तिब्बती, ल्हासा, चीनी आदि 84 भाषाओं के जानकार थे। उनकी किताब "तुम्हारी क्षय" में उन्हें 26 भाषाओं का ज्ञाता कहा गया है। उनका यात्रावृत्त "अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा" पाठ के रूप में था। उसमें एक शेर था-

          सैर कर दुनिया की गाफिल, ज़िंदगानी फिर कहाँ।

           ज़िंदगानी फिर मिली तो, नौजवानी फिर कहाँ॥

और यह शेर जैसे मंत्र की तरह याद हो गया था। कतई रोमांटिक था यह। कालांतर में राहुल सांकृत्यायन की कई कृतियों से परिचित होने का मौका मिला। इसमें "वोल्गा से गंगा" की अनेकश: चर्चा सुनता था। "वोल्गा से गंगा" नाम ऐसा था कि यात्रावृत्त की छवि बनती थी

यह जानना आवश्यक है कि "वोल्गा से गंगा" यात्रावृत्त नहीं है। यह काल्पनिक कहानियों का संग्रह है, जिसमें आर्यों के विषय में कई मनगढ़ंत बातें, उलजलूल स्थापनाएं हैं। राहुल सांकृत्यायन का असली नाम केदारनाथ पाण्डेय था। मुझे कुछ वर्ष पूर्व उनके गांव जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। यह आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में अवस्थित है।  उत्तर प्रदेश सरकार उनके सम्मान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की एक बस का परिचालन उनके गांव से दिल्ली के लिए करती है। यह बस प्रतिदिन प्रातःकाल इसी गांव से खुलती है और दिल्ली जाती है। एक बस दिल्ली से चलकर देर शाम इस गांव में पहुंचती है।

राहुल सांकृत्यायन ने विपुल साहित्य सृजन किया है। बौद्ध धर्मग्रंथों के खोज और उनका हिन्दी रूपान्तरण कर उन्होंने साहित्य की खूब सेवा की है। तिब्बत और नेपाल आदि से अनेकों बौद्ध ग्रन्थों को प्रकाश दिया। उन्होंने हिन्दी साहित्य में आदिकाल को सिद्ध सामंत काल कहा है और यह एक मजबूत स्थापना है। उन्होंने त्रिपिटक का हिन्दी अनुवाद किया। शास्त्रज्ञ होने के साथ-साथ निःसंदेह वह घुमक्कड़ी के बहुत बड़े आइकन हैं। उन्होंने खूब विदेश यात्रा भी की। श्रीलंका, तिब्बत और रूस की कई बार। आखिरी दिनों में रूस गए। लौटे। उनका निधन दार्जिलिंग में हुआ। उन्होंने अपने घुमक्कड़ी को खूब प्रचारित किया। बौद्ध बन गए और मार्क्सवादी कम्यून के लिए समर्पित हुए।

राहुल सांकृत्यायन का समूचा लेखन पश्चिमी सभ्यता के रंग से अनुप्राणित है। इसलिए उसपर मिशनरीज की छाप है। उनका विपुल लेखन और कम्यून उन्हें खूब चर्चित करता है।

अपने एक लेख में राहुल सांकृत्यायन ने स्वामी सहजानंद सरस्वती को बहुत सम्मान से याद किया है। भारत में किसान आंदोलन को उठाने और आगे बढ़ाने में स्वामी सहजानन्द सरस्वती के योगदान को उन्होंने बहुत उदारमन से स्वीकार किया है।

घुमक्कड़ी के लिए हिंदी में जब कुछेक रचनाकारों का उल्लेख किया जाता है तो राहुल सांकृत्यायन अग्रगणित किए जाते हैं। मेरी तिब्बत यात्रा, यूरोप यात्रा और एशिया के दुर्गम भूखंडों में उनकी ठीक ठाक कृतियां हैं।

आज जन्मदिन पर आजमगढ़ के इस केदारनाथ पाण्डेय का भावपूर्ण  स्मरण!

 

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असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

इटावा, उत्तर प्रदेश

पिन 206001

मोबाइल नंबर 983895242- royramakantrk@gmail.com

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