मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

झाँसी वाली रानी : सुभद्रा कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी 

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी 

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी


चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी


कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, 

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, 

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, 

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।


वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, 

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, 

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, 

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़। 


महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, 

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में, 

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में, 

सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।


चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई, 

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई, 

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई, 

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।


निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया, 

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया, 

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, 

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया। 


अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥



अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया, 

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया, 

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया, 

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया। 


रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 


छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात


छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात, 

कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात, 

उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात? 

जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात। 


बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार


रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार, 

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार, 

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार, 

'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'। 


यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान, 

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान, 

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान, 

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान। 


हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, 

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी, 

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी, 

मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी, 


जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम


इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम, 

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, 

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, 

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम। 


लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में, 

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में, 

लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में, 

रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में। 


ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार


रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार, 

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार, 

यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार, 

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार। 


अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

बुधवार, 27 नवंबर 2024

कुणाल की कहानी

कल शाम वसु के साथ यूँ ही बेसबब घूमते हुए हम एक होटल के नजदीक से गुजरे। बड़े अक्षरों में वहाँ KUNAL लिखा हुआ था। वसु इन अक्षरों को पहचानने लगे हैं तो हिज्जे करने के बाद उन्होंने पूछा कि इसका क्या हुआ?

"कुणाल" मैंने बताया।
"इसका मतलब"- उनका बहुत भला प्रश्न था।
"जिसकी आँखें हमेशा 'सुंदर' देखती हैं। इसका एक अर्थ सुंदर आंखों वाली एक चिड़िया भी है।"
"किसकी आँखें पापा?" -वसु के पास बात जारी रखने के लिए प्रश्नों की अंतहीन सीरीज हैं।
"कुणाल की।" मैंने कहा। "कुणाल, सम्राट अशोक का बेटा था। उसकी माँ तिष्यरक्षिता ने उसकी आँखें फोड़वा दी थीं।"
कहानी दिलचस्प हो गयी थी। अब वसु के पास स्वाभाविक प्रश्न थे।
-"क्यों?"
मैंने कहानी याद करने की कोशिश की। हमलोगों के पास अपने इतिहास को कहने-जानने के लिए कहानियों का अभाव है। बल्कि कहा जाए तो कहानियों को कहने-सुनने के अभ्यास का अभाव है। हम किस्से और गप्प में भरोसा रखने वाले लोग हैं। तो याद आने के बाद मैंने कुछ खिचड़ी बनाकर कहानी सुना दी।
-"कुणाल जब बड़ा हुआ तो उसके विवाह का प्रस्ताव आया। कपड़े, गहने और नारियल लेकर तिष्यरक्षिता के पिता अशोक के पास आये। मजाक मजाक में अधेड़ अशोक ने कहा कि 'क्या यह प्रस्ताव मेरे लिए है?' राजसभा में यह बात हँसी के फव्वारे में उड़ गई किन्तु धार्मिक प्रवृत्ति के कुणाल ने इसे गंभीरता से लिया। उसने कहा कि मजाक मजाक में ही पिता ने तिष्यरक्षिता को अपनी पत्नी के रूप में कामना की है। अतः मैं तिष्यरक्षिता से विवाह कैसे कर सकता हूँ? राजसभा में यह हड़कम्प मचा देने वाला मसला बन गया।" वसु के लिए यह सब अब अझेल होने लगा और समझ से बाहर लेकिन वह हुँकारी भरते रहे और अपनी उत्सुकता प्रकट करते रहे तो मैंने कहानी आगे बढ़ा दी।
"राजसभा में इस स्थिति की मीमांसा हुई और तय पाया गया कि कुणाल ठीक कह रहे हैं। एक विद्वान ने महाभारत की एक कथा सुनाई।"
अब वसु को एक अन्य सिरा मिल गया था। उन्होंने चहकते हुए कहा- "एक और कहानी?"
-"हाँ, महाभारत में एक कहानी आती है कि दो भाई थे। एक संन्यासी और एक गृहस्थ। एक बार संन्यासी अपने गृहस्थ भाई से मिलने आया। गृहस्थ के बगीचे में अमरूद के पेड़ थे। उनपर अमरूद फला हुआ था। संन्यासी के मन में इच्छा हुई कि काश यह खाने को मिल जाता। और यह इच्छा प्रकट करते ही वह 'धर्मच्युत' हो गया। उसे अपनी मानसिक पतन का आभास हो गया। तो भाई के आने के बाद उसने इस गलती की बात बताई। भाई ने विचार किया और दण्ड का विधान किया कि संन्यासी के दोनों हाथ काट दिए जाएं। ऐसा ही हुआ। लेकिन उस कहानी में फिर सब चीजें सामान्य हो गयीं क्योंकि दोनों भाइयों की धर्मपरायणता ने यथास्थिति कर दिया।"
वसु को कुछ समझ में आया बहुत कुछ नहीं। लेकिन उन्होंने पूछ लिया कि कैसे हुआ यह। तो मैंने पूछा कि कुणाल की कहानी सुननी है या नहीं?
"सुननी है।"
"तो, तय हुआ कि तिष्यरक्षिता का विवाह अशोक के साथ हो। तिष्यरक्षिता कुणाल की सौतेली माँ बनकर आयी। वह क्रोध में थी। कुणाल से विवाह नहीं होने से दुःखी थी।"
"एक बार कुणाल पढ़ने के लिए उज्जैन गए। राजा अशोक ने एक पत्र लिखा और भेजा। उस पत्र में तिष्यरक्षिता ने कुछ हेर फेर कर दिया। 'अधीयु' की जगह 'अंधीयु' कर दिया था। कुणाल ने यह पढ़ा तो स्वयं ही अपनी आँखें फोड़ लीं।"
"खुद से?"
"हाँ! खुद से। पापा की बात कैसे न मानता? फिर वह संन्यासी बन गया। बहुत साल बाद अशोक के राजसभा में लौटा। अशोक ने उसके नवजात बेटे 'सम्प्रति' को मौर्य वंश का उत्तराधिकारी बना दिया। अशोक का एक बेटा महेन्द्र और बेटी संघमित्रा श्रीलंका गए।"

भारत में प्राचीन काल में बहुत से प्रतापी राजा हुए हैं लेकिन उनके प्रति उपेक्षा और विशेष दृष्टि सम्पन्न इतिहासकारों ने उनका ठीक मूल्यांकन नहीं किया। हमारी पीढ़ी और बाद की पीढ़ी शायद ही उन्हें जान पाए।

पुरानी पोस्ट।

ai generated कुणाल 


रविवार, 24 नवंबर 2024

अमर बलिदानी गुरु तेगबहादुर जी

 आज सिख परंपरा के नवें गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान दिवस है। गुरु तेग बहादुर जी का शिरोच्छेद औरंगजेब ने करवा दिया था। इसलिए कि वह मतांतरण के विरुद्ध हिंद दी चादर बन कर डट गए थे। वह हर जोर जुल्म के खिलाफ दीवार बनकर खड़े हो गए थे। औरंगजेब ने उनकी हत्या करवा दी। उनका शव पहरे में रखा गया था। तब सिखों का एक समुदाय उनका शीश लेकर भागा और करनाल होते हुए आनंदपुर साहिब पहुंच गया।


जहां शिरोच्छेद किया गया, वह जामा मस्जिद, दिल्ली के पार्श्व में ही है, लाल किले के समीप। आजकल वहां शीशगंज गुरुद्वारा है। धड़ चुराकर एक प्यारा, लखी शाह वंजारा भागा और अपने घर में उनका संस्कार किया। इसके लिए उसने अपना घर ही जला डाला। जहां उनका धड़ जलाया गया, वहां आज रकाबगंज गुरुद्वारा है।

गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए पहले उनके सामने भाई मतिदास को जिंदा आरे से चीर दिया गया, उसके बाद भाई दयाला को उबलते पानी में फेंक कर मार डाला और आखिर में भाई सतीदास को ज़िंदा जला दिया गया।

यह सब बर्बर तरीके डर, दहशत और आतंक का वातावरण निर्मित करने के लिए किया गया। औरंगजेब ने सिखों पर बहुत जुल्म किए थे। अंग भंग, सार्वजनिक रूप से हत्या, हत्या के ऐसे तरीके जिसमें आत्मा कांप जाए, वह प्रयुक्त करता रहता था। सबके सामने उसने मतिदास को आरे से चीर दिया था।

उबलते पानी में किसी को डाल दिया जाए तो उसकी क्या दशा होगी, यह अनुमान से परे है किंतु मुगल शासक इसे एक प्रचलित तरीके की तरह प्रयुक्त करते थे। इससे उनकी क्रूरता और बर्बरता तो दिखती ही थी, अन्य समुदायों के प्रति उनका दृष्टिकोण भी झलकता था। सतीदास को जिंदा जला दिया गया था।

मुगलों के ऐसे अत्याचारों से भी बिना आतंकित हुए, अडिग रहकर सिखों ने अपना संघर्ष जारी रखा। गुरु तेगबहादुर ने अपने पुत्रों का बलिदान किया।
कालान्तर में दसवें गुरु गोविंद सिंह ने सशस्त्र प्रतिरोध किया। बलिदान किए। निहंगों का गठन किया।

गुरु तेगबहादुर जी धर्म के लिए अपना बलिदान करने वाले उन महान हुतात्माओं में से हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। अडिग रहे।

आज उनके बलिदान दिवस को अपने स्मरण में रखना आवश्यक है क्योंकि सभ्यता संघर्ष के बीचोबीच यह सबसे ऊंचा आकाशदीप है।

मंगलवार, 12 नवंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा: छठीं चौपाई

 संकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन।।


छठी चौपाई


श्री हनुमान चालीसा में छठी चौपाई में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा गया है और उनके पिता केशरी का पुत्र बताया गया है। हनुमान जी को महान तेजस्वी, महाप्रतापी कहकर समस्त संसार के लिए वंदनीय भी कहा है।


हनुमान जी एकादश रुद्र हैं। यह भगवान शिव का एक स्वरूप है। इस चौपाई के "सुवन" शब्द का अर्थ कोई कोई पुष्प और कोई "स्वयं" भगवान शिव लेता है। लेकिन यह बात समझना चाहिए कि हनुमान जी स्वयं महादेव ही हैं। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सभी अध्यायों (काण्ड) के आरंभ में भगवान शिव की स्तुति की है किंतु सुंदरकांड में हनुमान जी की ही वंदना है क्योंकि वह स्वयं ही भगवान शिव हैं।

हनुमान जी के पिता महाबलशाली कपि केशरी हैं। इसलिए उन्हें केशरीनंदन कहा गया है।

हनुमान जी के व्यक्तित्व का तेज और प्रताप ऐसा है कि वह समस्त संसार में पूजनीय हैं, वंदनीय हैं।


आइए #हनुमान_चालीसा का पाठ करते हुए हम सभी हनुमान जी की वंदना करें और उनके गुणों का बखान करें।

#जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की

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आठवां भाग

बुधवार, 6 नवंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा: आठवीं चौपाई

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

भाग - दस


श्री हनुमान चालीसा की आठवीं चौपाई में हनुमान जी को रसज्ञ कहा गया है जो भगवान श्रीराम के चरित्र के गुणगान से आनंदित होता है। वह प्रभु श्रीराम के चरित्र का बखान सुनने के सदा आकांक्षी हैं। यह उनकी सर्वाधिक अभिरुचि का क्षेत्र है। रसिया वह है जो तत्त्व ज्ञान रखता है और उसमें आनंद का अनुभव करता है। जब पिछली चौपाई में कहा गया कि हनुमान जी विद्यावान हैं तो उनकी विद्या की चर्चा में तत्त्वज्ञान आया है। इस जीवन का सबसे मूल्यवान तत्त्व रामकथा में है।
हनुमान जी राम कथा सुनने के रसिया हैं और उनके मन मस्तिष्क में हमेशा श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता हैं। यहां यह बताने का प्रयास है कि हनुमान जी भगवान श्रीराम के अनन्य उपासक हैं। यह उपासना श्रीराम, लक्ष्मण और श्री जानकी जी के सानिध्य में है।
तुलसीदास जी ने अपने श्रेष्ठ कवित्व का परिचय यहां दिया है। वह हनुमान जी की अनन्य भक्ति का परिचय देने के लिए ऐसे पद प्रयोग करते हैं।
श्रीहनुमान चालीसा में हनुमान जी के मन में जो हैं, वह अपने संपूर्ण रूप में हम सबके मन में भी बिराजें! इसी कामना के साथ लिखिए, जय श्री हनुमान जी!

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दसवां भाग, हनुमान चालीसा शृंखला

सातवीं चौपाई : श्री हनुमान चालीसा

विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।


सातवीं चौपाई


श्रीहनुमान चालीसा की सातवीं चौपाई में हनुमान जी को विद्यावान, गुणी और अत्यन्त चतुर बताया गया है। हनुमान जी विद्यावान हैं। वह विद्या के जानकार तो हैं ही, नियामक भी हैं। भारतीय सनातन परंपरा में विद्या और अविद्या बहुत गूढ़ विषय हैं। विद्या का मूल अर्थ है, सत्य का ज्ञान, परमार्थ तत्व का ज्ञान या आत्मज्ञान। इसके दो रूप हैं - परा और अपरा विद्या।

हनुमान जी गुणी कहे जाते हैं। और अत्यन्त चतुर भी। विद्या और गुण की उपस्थिति से यह चातुर्य आ ही जाता है। ऐसे अनेक अवसर रामायण में आए हैं जब हनुमान जी ने अपनी चतुराई से सफलता प्राप्त की है।

हनुमान जी के लिए एक अर्द्धाली में यह कहकर मान दिया गया है कि वह भगवान श्रीराम का काम करने के लिए आतुर हैं। आतुर में त्वरा है, शीघ्रता है और इससे काम शीघ्र ही संपन्न हो जाता है। इस प्रकार हनुमान जी की उपस्थिति से ही काम पूरा होने की संभावना शत प्रतिशत हो जाती है।

विद्यावान गुणी और अत्यन्त चतुर हनुमान जी को हम बारम्बार प्रणाम करते हैं और उनके चरणों में अपना शीश नवाते हैं!🙏


भाग - नौ


#जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की

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#चौपाई


नवां भाग, हनुमान चालीसा शृंखला

श्री हनुमान चालीसा: पांचवीं चौपाई

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे।

कांधे   मूंज   जनेऊ   साजे।।


पांचवीं चौपाई



श्री हनुमान चालीसा की पांचवीं चौपाई में हनुमान जी के स्वरूप को बनाने वाले उपकरणों का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी के हाथ में वज्र रहता है। यह वज्र गदा रूप में है। जो विशिष्टता वज्र की है अर्थात जो शत्रुओं का नाश करने वाला कठोर धातु से निर्मित है, वह सदैव हनुमान जी के हाथ में रहता है। इसका आशय है कि वह सदैव युद्ध के लिए सन्नद्ध रहते हैं। उनके दूसरे हाथ में ध्वजा है। यह ध्वजा विजय का चिह्न है। यह परिचायक है कि हनुमान जी विजय का प्रतीक हैं। वह जहां हैं, वहीं विजय है।

हनुमान जी यज्ञोपवीत धारण करने वाले द्विज हैं। उन्होंने मूंज का जनेऊ अपने कंधे पर रखा हुआ है। यह जनेऊ उनके पवित्र स्वरूप का परिचायक है।

तुलसीदास जी ने पांचवीं चौपाई में हनुमान जी की वीरता और पवित्रता को उनके द्वारा धारण किए जाने वाले उपादानों से स्पष्ट कर दिया है। गदा, ध्वज और जनेऊ! यह उनके बल, पराक्रम और पवित्रता के सूचक हैं।

ध्वजा उनकी विजयी उपस्थिति का सूचक है, वज्र शक्ति का और जनेऊ धर्म का।


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पांचवीं चौपाई!

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहला दोहा

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जस, जो दायक फल चारि।।  श्री हनुमान चालीसा शृंखला परिचय- #श्रीहनुमानचालीसा में ...

आपने जब देखा, तब की संख्या.