शनिवार, 19 जनवरी 2019

कथावार्ता :

    मैंने महसूस किया है कि हमारी पीढ़ी के बहुतेरे लोग ग्रामीण जीवन के अनेक शब्दों से अपरिचित हैं। कृषि, रसोई, विभिन्न पेशे के शब्द हमारे दैनिक जीवन से दूर होते जा रहे हैं।

      आज से हम ग्रामीण जीवन से जुड़े हुए कुछ शब्दों का उल्लेख करेंगे और उनका अर्थ तथा व्यवहार का विवरण देंगे। उनके विषय में लालित्यपूर्ण चर्चा होगी। वस्तुतः ग्रामीण जीवन के शब्दों से हमारा परिचय इसलिए भी खत्म हो रहा है कि एक तो हम उस परिदृश्य से दूर होते जा रहे हैं, दूसरे पूंजीवादी संस्कृति ने न सिर्फ ग्रामीण बल्कि इसी के लगायत दुनिया भर की स्थानीय संस्कृतियों को ग्रसना शुरू किया है। फिर विज्ञान, तकनीक और सूचना के प्रचार प्रसार से जीवन शैली में बुनियादी बदलाव आ गए हैं। बाजार हमारे घर में बहुत भीतर तक पैठ बना चुका है और उपभोक्तावादी संस्कृति हमको और अधिक आश्रित करती जा रही है।
तो ऐसे समय में ग्रामीण जीवन के खजाने को लेकर आपके बीच उपस्थित रहूँगा।
कोशिश रोज किसी नए विषय पर बात करने की रहेगी।
तो इंतजार

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सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

आपने जब देखा, तब की संख्या.